देहरादून(ब्यूरो) स्लोवेनिया की राजधानी लुबलियाना में भारत की राजदूत नम्रता कुमार की मौजूदगी में उत्तराखंड के प्रमुख वन संरक्षक वन्यजीव व चीफ वाइल्ड लाइफ डा। समीर सिन्हा और ट्रिग्लाव नेशनल पार्क के डायरेक्टर डा। टिट पोतोनिक ने एमओयू पर साइन किए। सहमति पत्र के मुताबिक दोनों नेशनल पार्कों को एक-दूसरे के सिस्टर पार्क का दर्जा दिया जाएगा। दोनों नेशनल पार्कों के बीच मैनेजमेंट के एक्सीपीरियंस शेयर किए जाएंगे। प्रचार-प्रसार के साथ वल्र्ड लेवल पर फॉरेस्ट मैनेजमेंट में स्लोवेनिया और उत्तराखंड की बेस्ट प्रैक्टिसेज को प्रस्तुत करने का मौका मिलेगा।
यूरोपियंस भी करेंगे विजिट
फूलों की घाटी और ट्रिग्लाव नेशनल पार्क के सिस्टर पार्क बनने से फॉरेस्ट व संरक्षित क्षेत्र मैनेजमेंट में राज्य के योगदान को वल्र्ड लेवल पर पहचान मिलेगी। पब्लिक पार्टिसिपेंट्स से फॉरेस्ट मैनेजमेंट के प्रयासों व प्रचार-प्रसार से स्थानीय समुदायों के योगदान को भी इंटरनेशनल लेवल पर मान्यता मिलेगी। मॉडर्न टेक्नोलॉजी साझा होगी। मानव-वन्यजीव संघर्ष, जंगल की आग, जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों से सामना करने में भी हेल्प मिलेगी। यूरोप में वैली का प्रचार होगा और घाटी की ओर रुख करेंगे।
भारतीय दूतावास करेगा मदद
उत्तराखंड व स्लोवेनिया के बीच सहमति बनने के बाद अब स्लोवेनिया में भारतीय दूतावास के सहयोग से मुहिम आगे बढ़ेगी। इस सिलसिले में जल्द ही स्लोवेनिया का प्रतिनिधिमंडल उत्तराखंड आएगा।
दोनों हेरिटेज में समानताएं
उत्तराखंड में स्थित फूलों की घाटी नेशनल पार्क व स्लोवेनिया के ट्रिग्लाव नेशनल पार्क दोनों को यूनेस्को की ओर से विश्व प्राकृतिक धरोहर घोषित किया गया है। दरअसल, वैली ऑफ फ्लावर की स्थापना 1982 में हुई थी। इसका क्षेत्रफल 87.5 वर्ग किमी है। जबकि, ट्रिग्लाव नेशनल पार्क स्लोवेनिया का एकमात्र नेशनल पार्क है, जिसकी स्थापना 1981 में हुई थी। इसका क्षेत्रफल 880 वर्ग किमी है। ट्रिग्लाव शिखर स्लोवेनिया की सबसे ऊंची चोटी है। जिसकी ऊंचाई 2863.65 मीटर है।
ट्रिग्लाव पार्क ऐल्प्स पर्वतों की बीच
फूलों की घाटी राष्ट्रीय पार्क जैसे उत्तराखंड हिमालय क्षेत्र में स्थित है। वैसे ही ट्रिग्लाव पार्क भी जूलियन ऐल्प्स पर्वतों के बीच स्थापित है। यहां की परिस्थितियां, अवसर व चुनौतियां कई मायनों में फूलों की घाटी नेशनल पार्क के जैसे है।
सीएम व वन मंत्री ने खुशी जताई
बताया गया है कि ये पहला मौका है, जब उत्तराखंड ही नहीं, भारत के किसी संरक्षित क्षेत्र ने विदेश के किसी संरक्षित क्षेत्र के साथ सहयोग के लिए इस प्रकार की कोई सहमति बनी है। इस पर सीएम पुष्कर सिंह धामी व वन मंत्री ने खुशी जताई है।
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