देहरादून (ब्यूरो)। पिछले दो वर्षों से दुनियाभर में कोविड का कोहराम रहा है। दून भी इससे अछूता नहीं रहा। लेकिन, अब तक इसका असर पीछा नहीं छोड़ रहा है। सच्चाई ये है कि पोस्ट कोविड पेशेंट्स के अलावा जिन्होंने अपने परिजनों को खोया, अब वे नई बीमारी का शिकार हो रहे हैं। वे मानसिक समस्या से दो-चार हो रहे हैं। मैमोरीज रिकॉल होने या आर्थिक स्थिति कमजोर होने से ऐसे लोग नए अस्पतालों में पहुंच रहे हैं। श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल के मानसिक रोग विभाग के एचओडी डॉ। शोभित गर्ग का कहना है कि इसको मेडिकल साइंस में शैडो पैंडेमिक कहा जाता है। एंग्जाइटी के कारण नशे में जा रहे हैं और इलनैस फोबिया का शिकार हो रहे हैं। डॉ। गर्ग कहते हैं कि उनकी ओपीडी में रोजाना 15-20 परसेंट तक पेशेंट्स पहुंच रहे हैं। ये सरासर मानसिक समस्याएं हैं और समय रहते इनको कंट्रोल न किया गया तो यह मानसिक रोग में भी तब्दील हो सकता है।
ऐसी समस्याएं आ रही सामने
-इलनैस फोबिया
-ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिस्ऑर्डर (ओसीडी)
-पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रैस डिस्ऑर्डर (पीटीएसडी)
-शैडो पैंडेमिक
पेशेंट्स के बॉडीज में आ रहे चैंजेज
विशेषज्ञों के अनुसार मानसिक रोग विभाग में पहुंचने वाले पेशेंट्स कोरोना की हिस्ट्री दे रहे हैं। यही वजह है कि अस्पताल प्रशासन की ओर से इस पर डाटा कलेक्शन के साथ रिसर्च पर भी काम चल रहा है। डॉ। गर्ग कहते हैं कि पोस्ट कोविड हो चुके पेशेंट्स में बॉडी चैंजेज के साथ ही सिस्टेमिक चैंजेज देखने को मिल रहे हैं। इसको लॉन्ग कोविड इफेक्ट्स कहा जाता है और लोगों की कार्यशैली में भी इसका असर पड़ रहा है। जिसका समय पर जानना, पहचानना व इलाज कराना जरूरी है। डिस्ट्रिक्ट अस्पताल की मनोचिकित्सक डॉ। निशा कहती हैं कि फैमिली मेंबर की सडन व अनएक्सपैक्टेड कोरोना से मौत हो जाना पेशेंट्स को डिप्रेशन में डाल रहा है। इसको पीटीएसडी (पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रैस डिस्ऑर्डर), ओसीडी (ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिस्ऑर्डर) व कोविड स्ट्रैस सिंड्रोम भी कहा जाता है। मैमोरीज रिकॉल होने पर ज्यादा पेशेंट्स के दिमाग में कई ख्याल पैदा हो रहे हैं।
दून में अभी भी आईसीयू बेड रिजर्व
दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कोविड नोडल अफसर डॉ। अनुराग अग्रवाल कहते हैं कि उनके पास भी कुछ ऐसे पेेशेंट्स आ रहे हैं कि जो या तो खुद कोविड पेशेंट्स रहे हैं फिर जिनके पैरेंट्स की कोविड से मौत हो गई हो। उनकी फिक्र है कि कहीं उन्हें दोबारा कोविड की शिकायत तो नहीं है। जिनकी काउंसिलिंग भी कराई जा रही है। डॉ। अनुराग के अनुसार अभी भी दून में आईसीयू बेड रिजर्व में रखे गए हैं। जिससे किसी भी पेशेंट्स में ऐसी संभावनाएं दिखने पर ट्रीटमेंट दिया जा सके।
अच्छी मेडिसिंस उपलब्ध
डॉ। निशा का कहना है कि मार्केट में ऐसे पेशेंट्स के लिए अच्छी मेडिसिन उपलब्ध हैं। जिनके साइड इफैक्ट्स नहीं के बराबर हैं। माइल्ड सिम्टम्स होने पर डॉक्टर्स से कंसल्टेशन के जरिए ऐसी मानसिक समस्याओं पर आसानी से कंट्रोल पाया जा सकता है। बताया कि इसके लिए मनोचिकित्सक से रेगुलर कंसल्टेशन जरूरी है।
ऐसे बरतें एहतियात
-नशे का सेवन बिल्कुल न करें।
-बच्चों में हो रहे बदलाव से रहें अवेयर।
-बच्चों को करीब से जानें व पहचानें।
-रुटीन एक्सरसाइज हो।
-फिजिशियन व मानसिक रोग विशेषज्ञ की हेल्प लें।
-समय पर अपने नजदीकी लोगों की हेल्प लें।
-इलेक्ट्रॉनिक गेजेट्स का कम यूज करें।
ये दिख रहे लक्षण
-बार-बार हाथ धोना।
-टच होने पर अनसेफ फील करना।
-सर्दी, जुकाम होने पर बीमारी का डर।
-नींद की दिक्कत।
-काम में मन नहीं लगना।
-मैमोरी लॉस हो जाना।
-कंसंट्रेशन में कमी।
-याद आने पर अचेत हो जाना।
-बार-बार बीमार होने का डर।
-ऑफिस न जाना।
-निगेटिव बातें ज्यादा करना।