देहरादून, ब्यूरो: घाटे का हवाला देकर एक ओर निगम बिजली के दाम बढ़ाने को यूईआरसी पर दबाव बना रहा है, वहीं दूसरी ओर अधिकारियों और कर्मचारियों को करोड़ों रुपये के लैपटॉप, सैलफोन और टैबलेट फ्री में बांट रहा है, खास बात यह है कि पूर्व में भी इनमें से कई कार्मिकों को लैपटॉप बांटे गए हैं, अब फिर से उन्हें लैपटॉप बांटकर धन की बरबादी का आरोप लग रहा है।

कंज्यूमर पर पड़ेगा भार
इधर इस भारी भरकम बजट की भरपाई ऊर्जा निगम उपभोक्ताओं के ऊपर डालने की तैयारी कर रहा है। हाल ही में ऊर्जा निगम ने घाटे का हवाला देकर यूईआरसी में 16 प्रतिशत बिजली रेट बढ़ाने की पिटीशन फाइल की है। यदि यूईआरसी पिटीशन एक्सेप्ट करता है, तो इसका खामियाजा प्रदेश के करीब 30 लाख उपभोक्ताओं को बिजली बढ़ोत्तरी के रूप में भुगतना होगा।

कैटेगरीवाइज बजट तय
ऊर्जा निगम ने ड्राफ्ट्समैन से लेकर अधिशासी अभियंता और मुख्य अभियंता तक अलग-अलग स्लैब में लैपटॉप, सैलफोन और टैब का निर्धारण किया है। लैपटॉप के लिए मुख्य अभिंयता और महाप्रबंधक स्तर के अधिकारियों लिए 65 हजार, एसई, जेई से लेकर एक्सईएन स्तर के लिए 45 हजार रुपये तय किया गया है। जबकि सैलफोन और टैब के लिए मुख्य अभियंता स्तर के अधिकारियों के लिए 40 हजार, एसई और डीजीएम स्तर के लिए 35 हजार, जेई और एई के लिए 25 हजार, ड्राफ्ट्समैन, एएओ, आशुलिपिक, लाइनमैन, टीजी प्रथम व द्वितीय को 15 हजार रुपये तक खरीद की सीमा तय की गई है। कुल मिलाकर लगभग 2 हजार अधिकारी-कर्मचारियों को इसका लाभ मिलेगा, जिस पर करीब 7 से 8 करोड़ रुपये खर्चे का अनुमान है।

3 साल बाद कबाड़
लैपटॉप, सैलफोन और टैब के खराब होने पर कार्मिकों को स्लैब के अनुसार 33.33 प्रतिशत हर साल मेंटेनेंस के लिए मिलेंगे। इनकी लाइफ 3 साल रखी गई है। इसके बाद ये उपकरण कबाड़ हो जाएंगे। तीन साल बाद निगम को इससे कोई लेना देना नहीं है।

जीएसटी अलग से देगा निगम
लैपटॉप, सैलफोन और टैब की खरीद कार्मिक खुद करेंगे। निर्धारित राशि के भुगतान के लिए वह बिल ऊर्जा निगम में जमा करेंगे। खरीद की तय राशि पर जो भी जीएसटी लगेगा उसे निगम अलग से भरेगा।

इंटरनेट के लिए भी मंथली रेंट
फोन, लैंडलाइन और ब्रॉड बैंड कनेक्शन के लिए अधीक्षण अभियंता और डीजीएम स्तर के अधिकारी अनलिमिटेड खर्च कर सकेंगे, जबकि एक्सईएन और समक्ष के लिए 1000 रुपये, सहायक अभियंता और समक्ष के लिए 800 रुपये और बाकी के लिए 500 रुपये निर्धारित किया गया है। सवाल यह है कि जब कार्मिकों को फोन दिया जा रहा है, तो लैंडलाइन किसलिए और जब फोन पर इंटरनेट दिया जा रहा है, तो बॉड बैंड किसलिए। ये तमाम सवाल निगम की मितव्ययिता पर सवाल खड़े कर रहा है।


यह मामला आयोग के संज्ञान में नहीं है। यदि प्रकरण नियामक आयोग के समक्ष आएगा को इस पर कार्रवाई की जाएगी।
एमके जैन, सदस्य (तकनीकि), यूईआरसी, उत्तराखंड