सूफी गायक कैलाश खेर की केदारनाथ परफॉरमेंस पर उत्तराखंड के लोकगायकों ने दर्ज कराया एतराज
-केदारनाथ प्रोजेक्ट के लिए कैलाश खेर को सरकार ने दिया है अच्छा खासा बजट
-धन की बर्बादी कहने से भी नहीं चूक रहे हैं उत्तराखंड के नाराज लोक कलाकार
DEHRADUN: सूफी गायक कैलाश खेर का मशहूर भक्ति गीत बगड़-बम पर विरोध शुरू हो गया है। रविवार को केदारपुरी में अपने अंदाज से उन्होंने लोगों को मंत्रमुग्ध भी किया, लेकिन करोड़ों का ये बगड़-बम तमाम लोगों की आंखों में चुभ रहा है। खास तौर पर उत्तराखंड के लोक कलाकारों ने इस पर आंखें तरेर ली हैं। कैलाश खेर की गायकी से किसी को दिक्कत नहीं है, लेकिन भारी भरकम प्रोजेक्ट पर वह लाल-पीले जरूर हो रहे हैं।
दस करोड़ से ज्यादा का प्रोजेक्ट!
केदारनाथ के प्रमोशन के लिए हरीश रावत सरकार किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है। ये ही वजह रही है कि कैलाश खेर को प्रमोशन का प्रोजेक्ट दिया गया है। केदारपुरी में आयोजित कार्यक्रम भी इसी प्रोजेक्ट का हिस्सा रहा है। हालांकि प्रोजेक्ट के बजट को लेकर अलग-अलग तरह की बातें सोशल मीडिया पर चल रही है। दस करोड़ से ज्यादा का यह प्रोजेक्ट बताया जा रहा है। वहीं, कहीं-कहीं साढे़ तीन से चार करोड़ तक के बजट की बात कही जा रही है।
सियासी मुददा भी बन गया पुनर्निर्माण
ख्0क्फ् में प्रकृति की मार से बेजार हुए केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण को हरीश रावत सरकार अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता में लेते हुए आगे बढ़ी है। पुनर्निर्माण के काम के साथ ही प्रमोशन पर सरकार ने खास ध्यान दिया है। फिर सीएम के खुद कई बार केदारनाथ पहुंचने की बात हो या ज्यादा से ज्यादा टीमों को वहां भेजने का मामला, प्रमोशन की सरकार की भूख लगातार दिखी है। जाने-अनजाने पुनर्निर्माण का मामला उत्तराखंड में सियासी भी बन गया है। विधानसभा चुनाव को देखते हुए इस पर सरकार का खास जोर है।
जैसा कि बताया जा रहा है कि कैलाश खेर को इस प्रोजेक्ट के लिए मोटी रकम दी गई है, तो मैं इसे उत्तराखंड के धन की बर्बादी मानता हूं। केदारनाथ धाम का प्रमोशन होना चाहिए, लेकिन बजट का सदुपयोग भी जरूरी है। सरकार ने राज्य गीत बनवाया, तो मैंने एक पैसा नहीं लिया, क्योंकि ये मेरे लिए भावनात्मक मामला था। फिर राज्य की आर्थिक स्थिति को देखा जाना भी जरूरी है।
-नरेंद्र सिंह नेगी, प्रख्यात लोक गायक
-पहाड़ की धरती पर पैदा हुए लोक कलाकारों को भूलकर केदारनाथ का प्रमोशन किस तरह से कराया जा रहा है, ये समझ से परे है। केदारनाथ के प्रमोशन में लोक कलाकारों की भूमिका सुनिश्चित की जानी चाहिए थी, अब सरकार उन्हें भूलकर आगे बढ़ना चाहती है, तो क्या कहा जा सकता है।
हीरा सिंह राणा, प्रख्यात लोक गायक
हमारे राज्य में तमाम प्रतिभाएं ऐसी हैं, जिन्हें राज्य सरकार यदि केदारनाथ के प्रमोशन के काम में लगाए, तो वे बेहतर रिजल्ट दे सकती हैं। दुर्भाग्य से पहाड़ के लोक कलाकारों के लिए सरकार की जेब से पैसे नहीं निकलते और दिल्ली-मुंबई के बडे़ कलाकारों के लिए खजाने का मुंह खोल दिया जाता है। यह सचमुच दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।
-राजेंद्र चौहान, संगीतकार।