देहरादून(ब्यूरो) दून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी यानि आईएमए आईएमए के गौरवमयी इतिहास का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सैटरडे को एक बार फिर से 394 जीसी सैन्य अफसर बनने जा रहे हैैं। इनमें मित्र देशों के जीसी भी शामिल हैं। मतलब, आईएमए के 92 सालों के इतिहास में इसी एकेडमी से करीब 65 हजार से ज्यादा सैन्य अफसर देश और मित्र देशों की सेना में शामिल हो चुके हैं। करीब 1,400 एकड़ में फैला आईएमए अपने इस इतिहास के लिए देश में पहचान रखता है। यहां के चैटवुट हॉल, खेत्रपाल ऑडिटोरियम, सोमनाथ स्टेडियम, सलारिया एक्वाटिक सेंटर, होशियार सिंह जिम्नेजियम न केवल आकर्षण का केंद्र हैं। बल्कि, देशभक्ति के प्रति प्रेम को भी आकर्षित करते हैं। आईएमए में कैडेट्स की चार कंपनियों की चार बटालियन वाली एक रेजिमेंट भी तैयार है। यहां कैडेट्स को ट्रेनिंग के साथ तमाम प्रकार के स्पोट्र्स, एडवेंचर एक्टिविटीज, फिजिकल ट्रेनिंग, आम्र्स ट्रेनिंग और लीडरशिप डेवलेपमेंट में भाग लेने का मौका मिलता है।
65628 सैन्य अफसर हुए पासआउट
65628 सैन्य अफसरों को देने का इतिहास समेटे आईएमए से निकले कई ऐसे अफसर शामिल रहे हैं, जिन्होंने आर्मी चीफ की भी जिम्मेदारी संभाली। उनके देशभक्ति योगदान व बलिदान को देखते हुए उनके नाम पर एकेडमी में कई ग्राउंड व स्टेडियम को भी नाम दिया है। इसके अलावा कई ऐसे अधिकारी भी शामिल रहे हैं, जिन्होने लेफ्टिनेंट जनरल और बिग्रेडियर के पद पर पहुंचकर कई युद्धों का सफल नेतृत्व किया।
इन मित्रों देशों के जीसी ने ली ट्रेनिंग
नेपाल, कजाकिस्तान, म्यांमार, ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान, मालदीप, ईथोपिया, अफगानिस्तान, जापान, भूटान, श्रीलंका, सूडान, तुर्कमेनिस्तान, मॉरिशियस, उज्बेकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीप व किर्गिजिस्तान शामिल हैं।
889 अफसरों ने दिया सर्वोच्च बलिदान
खेल व अन्य गतिविधियों में आईएमए से निकले आर्मी अफसरों ने अन्य क्षेत्रों में भी बेहतरीन प्रदर्शन किया। युद्ध में साहस, शौर्य व पराक्रम प्रदर्शित करने पर मिलने वाले वीरता पदक खुद उनके नेतृत्व कौशल की कहानियां बयां करने के लिए काफी हैं। आईएमए से पासआउट सैकड़ों अफसरों ने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया है।
आईएमए का म्यूजियम खास
दून स्थित आईएमए का म्यूजियम भी खास है। यहां पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी की पिस्तौल मौजूद है, जो भावी सैन्य अफसरों में जोश भरती है। ईस्टर्न कमांड के जनरल ऑफिसर कमांडिंग ले। जनरल अरोड़ा ने ये पिस्तौल आईएमए के गोल्डन जुबली वर्ष 1982 में प्रदान की थी। इसके अलावा 1971 के युद्ध से जुड़ी दूसरी वस्तु है पाकिस्तान का ध्वज। भारतीय सेना ने इस ध्वज को पाकिस्तान की 31 पंजाब बटालियन से 7 से 9 सितंबर तक चले युद्ध के दौरान कब्जे में लिया था। इसके अलावा 1971 में हुए युद्ध की एक अन्य निशानी जनरल नियाजी की कॉफी टेबल बुक भी एकेडमी में है। ये निशानी कर्नल (रिटा।) रमेश भनोट ने जून 2008 में आईएमए को दी।
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