देहरादून ब्यूरो। उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में राजस्व पुलिस व्यवस्था 1874 से लागू है। इस व्यवस्था के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में कानून-व्यवस्था पुलिस के बजाय पटवारी के पास होती है। पटवारी भूराजस्व के साथ ही इन क्षेत्रों में आपराधों के मुकदमे भी दर्ज करता है और केस अदालतों में फाइल करके पैरवी करता है। हथकड़ी लगाने का अधिकार भी इन क्षेत्रों में पटवारी के पास ही होता है। लेकिन, राज्य में अब जल्द ही यह ऐतिहासिक व्यवस्था इतिहास बन जाएगी।
अंकित हत्याकांड से मिली हवा
वैसे से करीब 7 महीने पहले ही नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से राजस्व पुलिस व्यवस्था खत्म करने के लिए कहा था, लेकिन अंकिता भंडारी हत्याकांड में राजस्व पुलिस की लापरवाही सामने आने के बाद इस मामले को फिर हवा मिली। विधानसभा अध्यक्ष ने इस बारे से सरकार को पत्र लिखा और हाल में कैबिनेट की बैठक में इस बारे में फैसला ले लिया गया।
अंग्रेजों की देन राजस्व पुलिस
पहाड़ों में राजस्व पुलिस की बेमिसाल व्यवस्था का जनक अंग्रेज कमिश्नर जीडब्ल्यू ट्रेल को दिया जाता है। उन्होंने पटवारियों के 16 पद सृजित कर उन्हें पुलिस, राजस्व और भू अभिलेखों का काम सौंपा था। उन्होंने तत्काली गवर्नर जनरल को पत्र लिखा था कि पहाड़ी क्षेत्र में अपराध नाममात्र के हैं। यहां की भौगौलिक, जनसांख्यिकीय और सामाजिक आर्थिक हालात के देखते हुए यहां राजस्व पुलिस की व्यवस्था होनी चाहिए।
शेड्यूल डिस्ट्रिक्ट एक्ट
ब्रिटिश भारत में 1861 में पुलिस एक्ट लागू किया गया। 1974 में जब शेड्यूल डिस्ट्रिक्ट एक्ट आया तो ट्रेल के सिफारिश को आधार मानकर इस एक्ट की धारा 6 में पहाड़ी क्षेत्रों के लिए राजस्व पुलिस की व्यवस्था की गई। वर्ष 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार यह व्यवस्था राज्य के 60 प्रतिशत हिस्से में अब भी लागू है।
1225 पटवारी सर्किल
राजस्व पुलिस व्यवस्था में कुछ गांवों को मिलाकर पटवारी सर्किल बनाये गये हैं। फिलहाल उत्तराखंड में 1225 पटवारी सर्किल हैं, जिनमें राजस्व पुलिस व्यवस्था चल रही है। अब इन सभी सर्किलों को सिविल पुलिस के हवाले किया जाना हैं। इसके लिए नए थाने और पुलिस चौकियों बनाने के साथ ही बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी भी भर्ती किये जाने हैं। इसी नई व्यवस्था के लिए केन्द्र सरकार से 750 करोड़ रुपये मांगे गये हैं।
बेहतर काम रहा पटवारी का
बेशक हाल के दिनों में यह चर्चा आम रही है कि राजस्व पुलिस ठीक से कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी नहीं संभाल पाती। लेकिन आंकड़ों पर नजर डालें तो राजस्व पुलिस क्षेत्र में सिविल पुलिस क्षेत्र के मुकाबले बेहतर परिस्थितियां रही हैं। 2015-16 में राज्य के 60 परसेंट राजस्व पुलिस क्षेत्र में कुल 449 केस दर्ज किये गये थे। जबकि बाकी 40 परसेंट सिविल क्षेत्र में यह संख्या 9 हजार से ज्यादा थी।
90 परसेंट मामलों में सजा
अपराधियों को सजा दिलाने के मामले में भी राजस्व पुलिस सिविल पुलिस के मुकाबले बेहतर रही है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि सिविल पुलिस मर्डर के 42.4, रेप के 28.6, अपहरण के 29.3 मामलों में ही सजा दिला पाई, जबकि राजस्व पुलिस ने इस तरह के लगभग 91 परसेंट मामलों में सजा दिलाई।