देहïरादून (ब्यूरो)। दरअसल, वन विभाग के मुताबिक दून-मसूरी रोड पर कई ऐसे पेड़ हैं, जो बूढ़े हो चुके हैं और उनका हटाया जाना अनिवार्य है। यही वजह है कि कई बार तेज बारिश, आंधी व तूफान के कारण टूटकर सड़क पर गिर जाते हैं। जिससे आम जन को खासा नुकसान उठाना पड़ता है। पहले भी ऐसी दो घटना सामने आई। डीएफओ दून एनएम त्रिपाठी के मुताबिक किए गए सर्वे मे पाया गया कि दून-मसूरी रोड पर करीब 42 ऐसे पेड़ मिले, जो पूरी तरह खोखले हैं। उन्हें हटाया जाना जरूरी है। लेकिन, कुछ सामाजिक संगठन पुराने व बेशकीमती पेड़ बताकर इसका विरोध कर रहे हैं। जिससे इनको इन इलाकों से हटाया जाना संभव नहीं हो पा रहा है। जबकि, विभाग ने इसको लेकर काफी प्रयास किए।
मसूरी रोड पर गिरा पेड़ बूढ़ा नहीं, हरा था
दूसरी तरफ सिटीजन फॉर ग्रीन दून के हिमांशु अरोड़ा का कहना है कि वन विभाग का ये आरोप सरासर एकतरफा है। सच्चाई ये है कि दो दिन पहले मसूरी रोड पर जो पेड़ गिरा, वह पूरी तरह से हरा-भरा पेड़ था। इसके अलावा हकीकत ये भी है कि वन विभाग के पास किसी पेड़ के बूढ़े होने का कोई साइंटिफिक पहलू नहीं है। महज वन विभाग के कर्मचारियों के सर्वे के तौर पर हरे पेड़ों को बूढ़ा पेड़ कह देना उचित नहीं होगा। सिटीजन फॉर ग्रीन दून के हिमांशु कहते हैं कि दून में विकास के नाम पर जिन इलाकों में सड़क बनाई है, उन इलाकों में हरे-भरे पेड़ों का कॉन्क्रीटाइजेशन किया जा रहा है। यानि पत्थर व कोलतार से उनका गला घोंटा जा रहा है। जबकि, उसके तने को चौड़ा होने के लिए पहले से ही जगह छोड़ी जानी चाहिए।
एनजीओ की ओर से सुझाव
-साइंटिफिक तरीके से बूढ़े पेड़ों का हो सर्वे
-एफआरआई के पास मौजूद है इक्विपमेंट
-बूढ़े पेड़ों के सर्वे के लिए एक्सपट्र्स कमेटी का गठन हो
-कमेटी में एफआरआई के अलावा पर्यावरणविद हों शामिल
-वन विभाग को पास बूढ़े पेड़ होने का कोई जस्टिफिकेशन नहीं
इन इलाकों में पेड़ों का घोटा जा रहा गला
-तेगबहादुर रोड
-कैनाल रोड
-राजपुर रोड
-यमुना कॉलोनी
-सहारनुपर रोड
-राजेंद्र नगर
-चकराता रोड
-झड़ीपानी
-सहस्रधारा रोड
-रिंग रोड
90 परसेंट इलाकों में पेड़ों का घोंट दिया गला
सामाजिक संगठनों का ये भी तर्क है कि पीडब्ल्यूडी की ओर से शहर के जिन इलाकों में सड़क बनाई जा रही है। उस इलाके में पेड़ के चारों ओर पेड़ को पूरी तरह से कवर कर दिया जा रहा है। जिससे उस पेड़ की ग्रोथ नहीं हो पा रहे है। ऐसे में पेड़ तेज हवा, आंधी व तूफान में सड़कों पर गिर रहे हैं। घनी आबादी वाले इलाके झड़ीपानी का भी उदाहरण बताया गया है। इस प्रकार से 90 परसेंट इलाकों में हरे पेड़ों को कंक्रीट में तब्दील कर दिया जा रहा है। जिससे पेड़ को हवा, पानी तक नसीब नहीं हो पा रहा है।
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वन विभाग ने सर्वे में कई पेड़ों का चिन्हीकरण हुआ है। लेकिन, सामाजिक संगठन विरोध कर रहे हैं। वे हरे-भरे पेड़ का हवाला देकर इनके खिलाफ में उतर रहे हैं।
-एनएम त्रिपाठी, डीएफओ दून।
पेड़ों के गिर कर टूटने के पीछे विभाग जिम्मेदार हैं। पेड़ों के ग्रोथ में उनके ग्रोथ को चारों ओर से रोका जा रहा है। वन विभाग के पास बूढ़े व खोखले पेड़ होने का भी साइंटिफिक पहलू नहीं है।
-हिमांशु अरोड़ा, सिटीजन फॉर ग्रीन दून।
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