देहरादून,(ब्यूरो): इन्वेस्टर्स समिट को लेकर सरकार ने बड़े-बड़े दावे किए थे। कहा था कि इससे न केवल प्रदेश में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप होगा, बल्कि रोजगार के अवसर पर पैदा होंगे। करीब 7 लाख रोजगार सृजित करने का सरकार ने दावा किया था, समिट को छह माह कंप्लीट हो गए हैैं, लेकिन अभी तक रोजगार दिखाई नहीं दे रहा है। बेरोजगारों का आरोप है कि सरकार हवा में बात कर रही है। 7 लाख तो दूर की बात है एक 1 हजार रोजगार भी सृजित नहीं हुए। कागजों में ही रोजगार के सब्जबाग दिखाए जा रहे हैं। बेरोजगारों का कहना है कि अभी तक एक भी कंपनी की ओर से रिक्रूटमेंट नहीं किया गया है। कौन-कौन सी कंपनी किस क्षेत्र में इन्वेस्ट कर रही हैं, इसका भी सरकार ने कोई जानकारी शेयर नहीं की है।

कहां दिया 50 हजार को रोजगार
दिसंबर 2023 में दून के एफआरआई में आयोजित किए गए इन्वेस्टर्स समिट के दौरान राज्य सरकार ने दावा किया था कि 7 लाख से अधिक बेरोजगारों को रोजगार दिया जाएगा। सरकार के अफसरों ने बताया कि पिछले छह में करीब 75 हजार करोड़ का राज्य में इन्वेस्टमेंट के एग्रीमेंट हो गए हैं। कई कंपनियों को जमीन उपलब्ध कराकर काम शुरू कर दिया है। अभी तक किए गए इन्वेस्टमेंट के विपरीत करीब 50 हजार रोजगार सृजित हो चुके हैं, लेकिन ग्राउंड पर यह आंकड़ा कहीं दिख नहीं रहा है।

दून में 92336 बेरोजगार पंजीकृत
एम्प्लॉयमेंट डिपार्टमेंट के देहरादून रीजन में करीब 92336 बेराजगार पंजीकृत हैं। बेरोजगारों का कहना है कि अभी तक उन्हें एक भी कंपनी का न तो बुलावा आया है और न ही किसी कंपनी ने रिक्रूटमेंट किया है। ऐसे में 50 हजार रोजगार किसे दिए गए, यह समझ में नहीं आ रहा है। कंपनियों से दो हजार एमओयू के बावजूद अभी तक दो हजार युवाओं को रोजगार नहीं मिल पाया।

कागजों में रोजगार के आंकड़े
बेरोजगारों ने सवाल खड़े करते हुए सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि क्या सरकार विदेशों में नौकरियां बांट रही है। जब उद्योग उत्तराखंड में लग रहे हैं, तो रोजगार भी यहीं मिलना चाहिए। कहा कि हकीकत है कि सरकार रोजगार को लेकर सिर्फ हवा में है। इन्वेस्टर्स समिट के नाम पर बेरोजगारों के साथ छलावा किया जा रहा है।

कंपनियों से कहां कितने एमओयू
नाम इन्वेस्टमेंट
यूनाइटेड किंगडम 12500
दुबई 15475
दिल्ली 26575
चेन्नई 10150
बेंगलुरू 4600
अहमदाबाद 24000
मुंबई 30200
रुद्रपुर 27476
हरिद्वार 38820
एनर्जी कान्क्लेव 40423
अन्य 27000
(इन्वेस्टमेंट करोड़ में)

न नौकरी मिली, न इन्वेस्टमेंट
दून में 2023 से पहले 2018 में पहला इन्वेस्टर्स समिट हुआ। तब सीएम त्रिवेंद्र रावत थे। तब भी सरकार ने 1.22 लाख करोड़ के एग्रीमेंट साइन होने का दावा किया और 2 लाख रोजगार सृजित होने का दावा किया। लेकिन हकीकत यह नहीं न तो किसी कंपनी ने इन्वेस्टमेंट किया और न ही सिंगल पर्सन को रोजगार ही मिला। हालांकि आधिकारिक तौर पर बताया गया कि 5 वर्षों के दौरान करीब 22 परसेंट काम ग्राउंड पर उतरा। 29 हजार करोड़ इन्वेस्टमेंट होने के बाद भी रोजगार सृजित नहीं हुआ। इस बार 3 लाख 56 हजार करोड़ के करार के सापेक्ष अब तक 50 हजार बेरोजगारों को रोजगार सृजित हो गया, लेकिन एक भी बेरोजगार को नौकरी नहीं मिली।

उद्योगों के लिए 7 हजार एकड़ जमीन
अफसरों की मानें तो उद्योगों के लिए 7 हजार एकड़ जमीन का लैंड बैंक तैयार किया गया है, दावा किया जा रहा है कि कई नामी कंपनियां उत्तराखंड में इन्वेस्टमेंट कर रही हैं। लैंड बैंकों में आवश्यकता के अनुसार उद्योगों को जमीन उपलब्ध कराई जा रही है, ताकि वह जल्द से जल्द उद्योग स्थिापित कर सकें।

नहीं हुई उद्योग मित्रों की तैनाती
इन्वेस्ट करने वाली कंपनियों का काम आसान हो, इसके लिए सरकार उद्योग मित्र रखने का दावा किया था। स्वास्थ्य, शिक्षा, ऊर्जा समेत अलग-अलग फील्ड में काम के एक्र्सपट को उद्योग मित्र के पदों पर रखा जाना था। इन उद्योग मित्रों का काम कंपनियों की लैंड रिक्वायरमेंट, एनओसी समेत सभी कार्य करने थे, ताकि इन्वेस्टर्स को उद्योग स्थापित करने में किसी तरह की प्रॉब्लम को फेस न करना पड़े, लेकिन इसका भी कहीं अता-पता नहीं है।

92336
बेरोजगार हैं दून रीजन में
50166
फीमेल
42170
बेरोजगार मेल
50000
हजार युवाओं को रोजगार का दावा
2000
से अधिक एमओयू हुए हैं साइन
700000
रोजगार इन्वेस्टर्स समिट से सृजित होने का किया गया दावा

करोड़ों खर्च, नतीजा सिफर
इन्वेस्टर्स समिट के नाम पर 500 करोड़ खर्च किए गए, लेकिन इसका नतीजा अब तक कुछ भी नहीं है। न कंपनियां रुचि ले रही हैं और न रोजगार के साधन डेवलेप हो रहे हैं, जो हो रहा है वह कागजों तक ही सिमटा हुआ है।

सरकार ने इन्वेस्टर्स समिट से पूर्व बड़े-बड़े दावे किए थे। 7 लाख को रोजगार मिलेगा। साढ़े तीन लाख करोड़ के इन्वेस्टमेंट से प्रदेश का कायाकल्प होगा। पिछले छह माह में ऐसा कहीं भी कुछ भी नजर नहीं आ रहा है।


जिस जोर-शोर के साथ समिट का ढिंढोरा पीटा गया था वैसा कुछ जमीन पर नजर नहीं आ रहा है। बातें हवा-हवाई ही साबित होती दिख रही है। छह माह गुजर गए, लेकिन न तो कोई कंपनी रिक्रूटमेंट कर रही है और न ही कंपनियों का कोई अता-पता है।

सरकार पलायन रोकने पर जोर दे रही है, लेकिन अभी तक सरकार ने यह साफ नहीं किया है कि पर्वतीय इलाकों कितने उद्योग लग रहे हैं। यदि पहाड़ों में उद्योग नहीं लगेंगे तो के पलायन के दावे सिर्फ भाषणों के सिवाय कुछ नहीं है।
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