देहरादून,(ब्यूरो): उत्तराखंड आपदा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। यहां मानसून में हर समय लैंडस्लाइड का खतरा बना रहता है। ऐसे में यहां आपदा के दौरान हेलीकॉप्टर सेवा की मदद ली जाती है। लेकिन इस बार से आपदा में हेलीकॉप्टर के साथ ही ड्रोन सेवा को भी शामिल कर लिया है। आपदा के दौरान ड्रोन की मदद ली जाएगी। इसके लिए आपदा प्रबंधन विभाग ने 900 वॉलेंटियर्स को तैयार किया है। ड्रोन एक्सपर्ट इन वॉलेंटियर्स को माउंटेनियरिंग की भी ट्रेनिंग दी गई है। नेहरू पर्वतारोहण संस्थान उत्तरकाशी से माउंटेनियरिंग के गुर सीखने के बाद इन वॉलेंटियर्स को आपदा कार्यों में लगाया गया है।

आपदा प्रबंधन में ड्रोन बनेगा मददगार
इस बार आपदा में ड्रोन से भी मदद ली जाएगी। इसके लिए आपदा प्रबंधन विभाग ने नौ सो वॉलेंटियर्स तैयार किए हैं। इन सभी को नेहरू पर्वतारोहण संस्थान से ट्रेनिंग दिलाई गई है। जिससे विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले राज्य में वॉलेंटियर्स को रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान पहाडिय़ों पर चढऩे-उतरने में किसी तरह की अड़चनों का सामना न करना पड़े।

प्रभावितों को मिलेगा क्विक रिस्पांस
इस बार मानसून सीजन में हेलीकॉप्टर के साथ ड्रोन इस्तेमाल और जनसहभागिता बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है, जिससे आपदा के दौरान स्थानीय लोग तुरंत रिस्पांस कर सके। सचिव आपदा प्रबंधन डॉ। रंजीत सिन्हा ने बताया कि आपदा के दौरान हेलीकॉप्टर के साथ ड्रोन भी इस्तेमाल किए जाएंगे।

ऋषिकेश में दो डाक स्टेशन
आपदा प्रबंधन विभाग ने शुरुआती दौर में ऋषिकेश शहर में ड्रोन उड़ान के लिए दो डाक स्टेशन बनाए हैं। ड्रोन को डायल 112 सेवा से भी जुड़ दिया गया है। किसी घटना की सूचना 112 पर मिलने पर उस स्थान के लिए तत्काल ड्रोन भी रवाना किया जा रहा है।

ड्रोन सर्विस सेवा में शामिल
ड्रोन की जरूरत को देखते हुए आईटीडीए से सर्विस सेवा के रूप में ड्रोन लेने का निर्णय लिया गया है। जरूरत के समय ड्रोन प्रोवाइडर से रेंट पर ड्रोन लेकर इस्तेमाल किया जाएगा।

रेंट पर भी लिया जा सकेगा ड्रोन
ड्रोन की जरूरत को देखते हुए आईटीडीए से सर्विस सेवा के रूप में ड्रोन लेने का निर्णय लिया गया है। क्योंकि अगर ड्रोन खरीदते हैं तो उसको खरीदने के खर्च के साथ ही ऑपरेटर का भी खर्च आता है। ऐसे में आपदा विभाग ने निर्णय लिया है कि जरूरत के समय ड्रोन प्रोवाइडर से रेंट पर ड्रोन लेकर इस्तेमाल किया जाएगा। वर्तमान समय में ड्रोन की क्षमता भी बढ़ गई है। उन्होंने बताया कि स्थानीय स्तर पर लोग किसी भी घटना के दौरान तत्काल रिस्पांस कर सकते हैं।

किट के साथ होंगे उपलब्ध
दरअसल, हर जगह तत्काल होमगार्ड, सिविल डिफेंस, पुलिस और एसडीआरएफ को नहीं भेज सकते हैं, क्योंकि इसमें समय लगता है। आपदाओं को देखते हुए 900 स्वयंसेवकों को नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग (एनआईएम) से प्रशिक्षित किया गया है। इनको पूरी किट भी उपलब्ध कराई गई है।

डॉप्लर रडार से भी रखी जा रही नजर
सचिव आपदा डॉ। रंजीत सिन्हा ने बताया कि प्रदेश में सुरकंडा देवी, मुक्तेश्वर और लैंसडौन तीन जगहों पर डॉप्लर रडार लगाए हैं। एक रडार करीब 100 किमी दायरे में मौसम का पैटर्न डिटेक्ट करता है और रियल टाइम डाटा देता है। ये रडार क्लाउड थिकनेस और क्लाउड लोकेशन भी तत्काल बता देते हैं, जिससे आधे घंटे पहले ही सटीक पूर्वानुमान हो जाता है।

उत्तराखंड राज्य आपदाओं को लेकर बेहद संवेदनशील है। यहां मानसून भूस्खलन का हर समय खतरा बना रहता है। सड़कों के टूटने से आपदा प्रबंधन में दिक्कतें आती है। ऐसे क्षेत्रों में ड्रोन राहत कार्यों में मददगार साबित होगा।
डॉ। रंजीत सिन्हा, सचिव, आपदा प्रबंधन

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