देहरादून, (ब्यूरो): दून में रेशम का काम 1900 के आस-पास से शुरू हुआ था। यहां की रेशम कलाकारी ने अब नया रूप ले लिया है और अब यह पहाड़ों से निकलकर रैंप वॉक तक पहुंच चुकी है। सिल्क से बने प्रोडक्ट्स जितने खूबसूरत दिखते हैं, उन्हें बनाने में उतनी ही मेहनत लगती है। साल में दो बार, मार्च और सितंबर-अक्टूबर के महीनों में, कीटपालन का काम किया जाता है। प्रेमनगर स्थित सेरीकल्चर डिपार्टमेंट में निरीक्षक राजीव चौहान का कहना है कि ये तीन महीने कीटपालन के लिए परफेक्ट टेम्प्रेचर वाले दिन होते हैं।
फैशन स्टेटमेंट बना सिल्क
जैसे-जैसे ट्रेंड बदल रहे हैं, लोगों की डिमांड भी बदल रही है। अब सिल्क को एक फैशन स्टेटमेंट के रूप में देखा जा रहा है, और इसके कई तरह के प्रोडक्ट्स मार्केट में आ रहे हैं। प्रेमनगर में स्थित सेरीकल्चर डिपार्टमेंट न केवल सिल्क के प्रोडक्शन पर काम कर रहा है, बल्कि इससे जुड़े 2,500 किसानों को रोजगार भी दे रहा है। दून में सिल्क के रॉ मेटेरियल से लेकर फाइनल प्रोडक्ट तक का सफर तय किया जा रहा है। बेहतर क्वालिटी और डिजाइन की साडिय़ां 20 से 30 हजार तक की बिक रही हैैं। फंक्शन हो या शादी लोग सिल्क पहनना पसंद कर रहे हैं यही कारण है की पिछले एक साल में उत्तराखंड में मौजूद आउटलेट्स ने एक करोड़ की सेल की है।
रेशम बना रोजगार
दून और आसपास के इलाकों में कुल 24 रेशम फार्म हैं, जहां कीटपालन किया जाता है। इन फार्मों से करीब 2,500 लोग जुड़े हुए हैं, जो न केवल फार्म में बल्कि अपनी खुद की जमीन पर भी शहतूत के पेड़ लगा रहे हैं। ये किसान साल में दो बार शहतूत के पत्ते तैयार करते हैं और कीटपालन करते हैं, जिससे वे घर बैठे 20,000 से 25,000 रुपये कमा रहे हैं।
कीटपालन का तरीका
दून से करीब 23 किमी दूर रेशम केंद्र सभावाला में लगभग 4 एकड़ जमीन पर शहतूत के पेड़ लगे हुए हैं। यहां 200 से 300 रेशम कीटपालक जुड़े हुए हैं, जो शहतूत के पत्तों को तैयार करते हैं और रेशम कीटों की देखभाल करते हैं। इसकी शुरुआत सबसे पहले शिशु पालन से किया जाता है। हैचिंग के बाद, अंडों से सिल्क वर्म निकलते हैं और करीब 10 दिनों तक इन्हें केंद्र पर ही देख भाल के लिए रखा जाता है। इसके बाद ट्रे में शहतूत के पत्ते काटकर उनके ऊपर सिल्क वर्म रखे जाते हैं, शहतूत के पत्ते खाने के बाद, अपने सिर को हिलाकर लार से एक लंबे धागे का घोल बनाते हैं, जिसे कोया कहते हैं। कोया या ककून को गर्म पानी में उबालने के बाद, मशीन की मदद से उनके अंदर से धागा निकाला जाता है। एक ककून से निकले धागे की लंबाई लगभग 1,000 मीटर होती है।
रेशम फेडरेशन और सिल्क स्टोर
प्रेमनगर में स्थित उत्तराखंड रेशम फेडरेशन के सिल्क स्टोर में कई तरह के प्रोडक्ट्स मौजूद हैं, जिन्हें कारीगर दिन-रात की मेहनत से तैयार करते हैं। मैन्युफैक्चरिंग प्लांट में तैयार प्रोडक्ट्स को सिल्क स्टोर के जरिये लोगों तक पहुंचाया जाता है।
इन जगहों पर मौजूद है रेशम फार्म
विकासनगर
नायगांव
सिंधीवाला
सभावाला
आदूवाला
अंबाड़ी
लक्ष्मीपुर
सहसपुर
सेलाकुई
झाजरा
हरबर्टपुट
डोईवाला
लच्छीवाला
रेशम माजरी
रानीपोखरी
धर्मूचक
घमंडपुर
जॉलीग्रांट
2023-24 में रेशम प्रोडक्शन
1.6 लाख किलो ककून हुआ तैयार
1 करोड़ रुपये के प्रोडक्ट्स की बिक्री
80 लाख रुपये के धागे की बिक्री
उत्तराखंड में सिल्क के आउटलेट्स
प्रेमनगर
मसूरी
ऋ षिकेश
सिल्क से तैयार हो रहे प्रोडक्ट्स
साड़ी
सूट
कुर्ता
शॉल
मफलर
टोपी
वेस्टकोट
टाई
ऑथेंटिक डिजाइन पर काम
उत्तराखंड रेशम फेडरेशन में टेक्सटाइल इंजीनियर के पद पर काम कर रहे अंकित ख्याति का कहना है कि पब्लिक की डिमांड और ट्रेंड को ध्यान में रखते हुए, हम दूसरे स्टेट्स के आर्ट फॉर्म को भी अपना रहे हैं। जैसे कि, बनारसी साड़ी और दुपट्टे के डिजाइन यहीं तैयार किए जा रहे हैं। इसके अलावा, इस समय जिस तरह की टाई बना रहे हैं, उसके आलावा और ऑथेंटिक डिजाइनों पर भी काम कर रहे हैं।
हमारे यहां शहतूती रेशम के अलावा ओक टसर और एरी रेशम तैयार किया जाता है, लेकिन दून का जो क्लाइमेट है शहतूती रेशम की क्वालिटी के लिए बेस्ट मन जाता है। रेशम का काम दून को पहचान देने के साथ यहां के किसानो को भी रोजगार दे रहा है, आने वाले समय में हम कोशिश कर रहे हैं की दून में बनाये जा रहे रेशम के प्रोडट्स को विदेश में भी पहचान मिल सके।
-प्रदीप कुमार, डिप्टी डायरेक्टर, सेरीकल्चर डिपार्टमेंट.
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