देहरादून (ब्यूरो) वैसे तो हम सभी की पहली गुरु मां ही होती हैं, लेकिन आज जिनकी बात हम कर रहे हैं, उनकी मां न सिर्फ उनकी पहली गुरु थी बल्कि उनकी पहली स्कूल टीचर भी थीं। हम बात कर रहे हैं पौड़ी गढ़वाल के पीपली गांव की रहने वाली सुमन चमोली की, जिन्हें पांच सितम्बर को शैलेश मटियानी पुरस्कार से नवाजा जा रहा है। मां टीचर थीं, इसलिए सुमन का बचपन से ही टीचर बनने का सपना था। सुमन ने इस सपने को साकार किया और आज उनके इसी समर्पण और मेहनत की बदौलत उन्हें राज्य स्तरीय सम्मान मिल रहा है।
बच्चों को सिखाया सफाई का महत्व
1994 में बीटीसी कम्प्लीट करने के बाद सुमन ने पहली बार पौड़ी के एक स्कूल में पढ़ाना शुरू किया था तब वहां न तो लाइट थी, न पानी और न ही सड़क की सुविधा। इसी वजह से बहुत कम बच्चे स्कूल आते थे। सुमन ने सबसे पहले बच्चों को सफाई रखना सिखाया और गांव में जाकर महिलाओं और लड़कियों को भी साफ-सफाई के प्रति जागरूक किया। साथ ही लड़कियों की पढ़ाई पर जोर दिया। सुमन के इस सफर में कई स्कूल बदले, लेकिन उनका बच्चों को पढ़ाने का तरीका कभी नहीं बदला। उनका मानना है कि बच्चे तभी सीखते हैं जब वो खुद से कुछ करते हैं या फिर अपनी आंखों से देख कर सीखते हैं। वो बच्चों को मैथ और साइंस पढ़ाती थीं, जिसमें वो छोटे-छोटे एक्टिविटी और प्रैक्टिकल कराती थीं, ताकि बच्चे जल्दी सीख सकें।
कोविड में भी नहीं रुकीं
जहां एक तरफ कोरोना के दौरान हर तरफ सन्नाटा था और स्कूल भी बंद हो गए थे, वहां सुमन को बस इस बात की चिंता रहती थी कि कैसे वो बच्चों की पढ़ाई को जारी रख सकें। उन्होंने बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाना शुरू किया। शाम के समय बच्चों के पास फोन होते थे, इसलिए सुमन ने उनके पेरेंट्स से बात करके उन्हें गूगल मीट ऐप का इस्तेमाल सिखाया और हर शाम बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। साथ ही उन्होंने यूट्यूब पर भी एक चैनल बनाया ताकि बच्चों की पढ़ाई में कोई रुकावट न आए। सुमन कहती हैं कि उनको असली अवॉर्ड तब मिलता है जब उनके पढ़ाए हुए बच्चे सफल होते हैं और अपना नाम बनाते हैं। चाहे वो दीक्षा पोर्टल जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म हों या स्कूल में एक्टिविटी करानी हो, सुमन हमेशा आगे रहती हैं ताकि बच्चों का फ्यूचर बेहतर हो सके। और अपने साथ काम कर रहे लोगों साथ मिल कर हर वो काम को मुमकिन कर दिखाया जो उन्होंने सोचा था।
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