देहरादून (ब्यूरो) उत्तराखंड की खेती में आ रही चुनौतियों और यहां के प्राकृतिक खुशबूदार पौधों को देखते हुए, साल 2003 में सरकार ने इस केंद्र की नींव रखी थी। इसका मकसद यहां की ऐरोमेटिक इंडस्ट्री को बढ़ावा देना और लोकल लोगों की इकोनॉमिक कंडीशन सुधारना है। इस केंद्र में सगंध पौधों की खेती, प्रॉसेसिंग और मार्केटिंग का ध्यान रखा जाता है, जिससे यहां के किसानों की अच्छी कमाई हो रही है।

सगंध पौध केंद्र पर एक नजर
- 109 ऐरोमा क्लस्टर बनाए गए हैं, ताकि सगंध पौधों की खेती, प्रॉसेसिंग और मार्केटिंग सही तरीके से हो सके।
- 2003-04 में लैमनग्रास की खेती शुरू की गई थी। आज इसके 30 क्लस्टर्स में 993 हेक्टेयर जमीन पर खेती हो रही है, जिससे 5572 किसान जुड़े हैं। हर साल 576 क्विंटल लैमनग्रास तेल का उत्पादन होता है।
- पहाड़ी इलाकों में डेमस्क गुलाब की खेती भी प्रमोट की गई है। 35 क्लस्टर्स में 1253 किसान हर साल 276 क्विंटल गुलाब जल का प्रोडक्शन कर रहे हैं।
- 29 क्लस्टर्स में 1551 किसान कैमोमिल की खेती कर रहे हैं, जिससे हर साल 905 क्विंटल फूलों का प्रोडक्शन हो रहा है।

किसानों एमएसपी की सुविधा
सगंध पौध केंद्र ने उत्तराखंड के किसानों के लिए 22 तरह के खुशबूदार तेलों के मिनिमम सपोर्ट प्राइस (एमएसपी) भी तय किए हैं, ताकि किसानों को बेहतर दाम मिल सकें। यह उत्तराखंड को देश का पहला ऐसा राज्य बनाता है, जो एरोमा सेक्टर में किसानों को एमएसपी दे रहा है। इसकी वजह से इस सेक्टर का टर्नओवर 2002 में 1 करोड़ रुपये से बढ़कर 2019 में 85 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।

परफ्यूम इंडस्ट्री में बड़ी उपलब्धि
उत्तराखंड में सुगंधित तेलों के बिजनेस में बड़ी पहल की गई है। सेलाकुई को इंडियन स्टैंडड्र्स ब्यूरो और इंडियन फार्माकोपिया कमीशन की तरफ से नेशनल स्टैंडर्ड बनाने के लिए चुना है। स्थानीय एरोमेटिक फ्लोरा पर रिसर्च करके 12 तरह के सुगंधित तेल तैयार किए गए हैं, जिन्हें हिमालयन माइनर एसेंशियल ऑयल के नाम से परफ्यूम इंडस्ट्री में उतारा गया है। ये तेल पहली बार कॉमर्शियल लेवल पर बनाए गए हैं और आने वाले समय में ये राज्य के खास प्रोडक्ट्स बन सकते हैं।

फ्री पैकेजिंग, मार्केटिंग की सुविधाएं
तीर्थयात्रियों के बीच इन तेलों की मार्केटिंग के लिए पिल्ग्रिम मार्केटिंग की शुरुआत की गई है। इसके तहत किसानों को मुफ्त में पैकेजिंग और एडवरटाइजिंग सामग्री जैसे शीशियां, रैपर्स और बॉक्स दिए जा रहे हैं। इसके अलावा इसकी पहचान को और बढ़ाने के मकसद से सुगंधिम उत्तराखंड और ज्वैल्स ऑफ हिमालय नाम से 14 सुगंधित तेल लॉन्च किए गए हैं। जिन्हें नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर पहचान दिलाने के लिए एरोमा प्रॉसेसिंग सेंटर और परफ्यूम लैब भी बनाये गए हैं। उत्तराखंड की खास फसलों से इन तेलों के अलावा हर्बल एक्सट्रेक्ट्स और ओलियोरेसिन जैसे प्रोडक्ट्स भी बनाए जा रहे हैं। साथ ही, नए सुगंधित प्रोडक्ट्स पर भी रिसर्च जारी है।


सगंध पौध केंद्र के जरिये न सिर्फ उत्तराखंड को एक पहचान मिल रही है बल्कि यहां हजारों किसानों को भी रोजगार मिल रहा है। आने वाले समय में हम इस काम को और भी आगे लेकर जाने की तैयारियों में लगे हुए हैं। यहां तैयार हो रहे प्रोडक्ट सेफ हैं और लोगों को काफी पसंद भी आ रहे हैैं।
-निपेंद्र चौहान, डायरेक्टर, सगंध पौध केंद्र सेलाकुई

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