- बढ़ी फीस के बाद अब बुक्स के लिए पैरेंट्स परेशान
- बुक सेलर्स के पास अवेलेबल नहीं हैैं किताबें, कैसे होगी पढ़ाई
देहरादून, 31 मार्च (ब्यूरो): नेशनल एजुकेशन पॉलिसी के तहत शिक्षा में कुछ बदलाव किए गए हंै। इसके तहत मेडिकल और लॉ की पढ़ाई को शामिल नहीं किया गया है। पहले दसवीं और बारहवीं का पैटर्न को फॉलो किया जाता था। परंतु, अब नई नेशनल एजुकेशन पॉलिसी में अलग-अलग पैटर्न फॉलो किया जाएगा। जिससे कि 12 साल की स्कूल शिक्षा होगी और 3 साल की फ्री स्कूल शिक्षा होगी। इसके तहत प्री नर्सरी भी शामिल होगी। इसके तहत 6 प्लस का बच्चा ही क्लास फस्र्ट में एडमिशन ले सकेगा। जिससे कि उस पर किताबों का बोझ पहले ही न पड़े। इसके साथ ही नर्सरी कलास में ज्यादा से ज्यादा करिकुलम एक्टिविटी को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया हैं।
बुक सेलर्स के पास नहीं स्टॉक
नेशनल एजुकेशन पॉलिसी को बेशक उत्तराखंड सरकार ने स्वीकार कर लिया हो। लेकिन, कई स्कूल अब भी ऐसे है जिन्होंने एनईपी लागू करने का हवाला देते हुए बुक्स भी बदल दी हैं। यहीं नहीं कई बुक्स ऐसी हैैं जो स्कूल की ओर से दिए गए पब्लिशर्स के नाम से मिल ही नहीं रही। लेकिन, ऐेसे में पैंरेंटस के लिए बुक्स अवेलेबल कराना मुश्किल हो गया हैं।
बुक सेलर कर रहे मनमानी
पैरेंट्स के अनुसार स्कूल की ओर से बुक सेलर का नाम लिखकर भेज दिया जाता है, हर साल बुक्स बदली जा रही हैं। जिस बुक सेलर के पास स्कूल प्रबंधक पैरेंट्स को भेजता है उसके पास भी बुक्स मौजूद नहीं है। आलम ये है कि एक पब्लिशर्स की बुक्स केवल कुछ ही बुक सेलर के पास मौजूद होती है। जबकि, कई बार चक्कर काटने के बाद भी बुक्स नहीं मिल पाती हैं।
ये आ रही समस्या
- मनमाने बुक सेलर के पास भेज रहे स्कूल प्रबंधक
- फीस में बढ़ोत्तरी बन रही पैरेंट्स के लिए परेशानी
- बुक सेलर के पास भी उपलब्ध नहीं हो पा रही बुक्स
- एनईपी के तहत बुक्स बदलने का दे रहे हवाला।
- स्कूल की ओर से ही जारी की जा रही कॉपी।
एनईपी के तहत सरकार की ओर से नियम लागू कर दिए हैं। लेकिन, जब तक सेंटर से बुक्स नहीं आ जाती हैं तब तक बुक्स में कोई बदलाव नहीं किया जा रहा हैं। एनसीईआरटी की ओर से ही किताबें लगाई जा रही हैं।
डा। स्वाति आनंद, प्रिसिंपल धर्मा इंटरनेशनल स्कूल
अभी नेशनल एजुकेशन पॉलिसी तो लागू कर दी है। लेकिन, अब तक स्टेट की ओर से कोई भी इसमें नियम लागू नहीं किया गया है। ऐसे में बुक्स एनसीईआरटी के साथ प्राइवेट पब्लिशर्स की लगाना मजबूरी है।
दिनेश बत्र्वाल, प्रिसिंपल दून इंटरनेशनल स्कूल
लगातार पैरेंन्ट्स स्कूल व पब्लिशर्स की मनमानी के कारण परेशान हैं। जबकि, उन्हें ज्यादा से ज्यादा एनसीईआरटी की बुक्स लगानी है। जबकि 4 बुक्स एनसीईआरटी की है बाकि 15 प्राइवेट पब्लिशर्स की होती है। जिसका बोझ पैरेंट्स पर पड़ता हैं।
आरिफ खान, अध्यक्ष एनएपीएसआर
हर साल स्कूलों की फीस में 10 परसेंट से ज्यादा का इजाफा हो रहा है। जिसका बोझ तो पड़ ही रहा है। इस पर जहां किताबें लेने के लिए भेजा जा रहा है वहां भी बुक्स नहीं मिल पा रही है। कोई इस पर पांबदी नहीं कर पा रहा।
शिवानी जोशी सकलानी, निवासी बद्रीश कॉलोनी