देहरादून, (ब्यूरो): अपने लिए जीना तो सभी को आता है। लेकिन, कई ऐसे भी होते हैं, जिन्हें दूसरों के लिए जीना, उनके जीवन स्तर को ऊपर उठाने में ही जीने का आनंद आता है। ऐसे ही कुछ लोग शामिल हैं, जिन्होंने अपने के साथ समाज को भी कुछ देने का प्रण लिया है। उन्हें में से एक हैं गीता मौर्या। उनकी मेहनत के बदौलत कई महिलाएं अब आत्मनिर्भर हो चुकी हैं। जबकि, शिक्षा के लिए कदम बढ़ाने वाले आरिफ खान ने भी जरूरतमंद बच्चों के लिए निशुल्क बुक बैंक की शुरुआत कर बच्चों की चेहरों पर मुस्कान ला दी है। जबकि, विजय राज ऐसे शख्स हैं, जो मामूली सैलरी में समाज सेवा का दम भरते हैं। एक रिपोर्ट

महिलाओं की राह बनाई आसान

गीता मौर्या ने हमेशा अपनी और आसपास की महिलाओं के लिए नया रास्ता बनाने का सपना देखा है। लेकिन, इस रास्ते पर चलना जितना आसान लगता है, उतना था नहीं। एक वक्त ऐसा भी आया था, जब उनके घरवालों ने उनके लिए घर के दरवाजे तक बंद कर दिए थे। गीता मौर्या बताती हैं कि जब उन्होंने घर से बाहर काम करना शुरू किया था। तब कई बार घर लौटने में देर हो जाती थी। बदले में सुनने को मिलता कि 'तुम क्या कर रही हो, इससे कुछ नहीं होगा और वो अपने साथ दूसरों का भी समय बर्बाद कर रही हैं। लेकिन, उन्होंने कभी हार नहीं मानी।

2014 में उठाया बड़ा कदम

वर्ष 2014 में गीता मौर्या ने स्वयं समूह सहायता से जुडऩे का फैसला लिया, उन्होंने 9 मुस्लिम महिलाओं को साथ में जोड़ा। उनके सामने चुनौती ये थी कि उनके परिवारजन उनके खिलाफ थे। लेकिन, गीता ने हार नहीं मानी। महिलाओं को ब्लॉक लेवल पर ट्रेनिंग दिलाई। इसके बाद पूरे गांव में एक पॉजिटिव मैसेज गया, फिर तो देखते ही देखते सैकड़ों महिलाएं उनके साथ जुडऩे लगीं। फिर क्या उन्होंने अपने दम पर 11 समूह बना दिए। दिसंबर 2014 में गीता मौर्या को टेक होम राशन का काम मिला। इसके बाद जो महिलाएं पहले 10 रुपये भी नहीं कमा पाती थीं, उन्होंने 10 हजार रुपये तक की कमाई शुरू कर दी। उसके बाद तो उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। यही कारण है कि अब उनसे जुड़ी महिलाएं आत्मनिर्भर हो गई हैं।

कई अवॉर्ड गीता के नाम

पीएम मोदी के स्वच्छ भारत मिशन में गीता मौर्या ने अहम भूमिका निभाई। गांव में 81 टॉयलेट्स बनाए। बदले में उन्हें सम्मानित किया गया। पॉलीथिन बैन मिशन में उन्होंने महिलाओं को जुट और कपड़े के बैग बनाने की ट्रेनिंग दी। काम शुरू किया, बड़े ऑर्डर आने लगे थे। उन्होंने बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ मिशन में भी भाग लिया। उन्होंने गरीब महिलाओं को लोन दिलाने की भी ट्रेनिंग दी। इसके अलावा कोरोनाकाल में मास्क तैयार करना, मशरूम उगाना, इसमें भी उन्होंने महिलाओं के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। इस कार्य के लिए उन्हें स्वच्छ भारत नेशनल अवॉर्ड, बेस्ट सोशल वर्कर अवॉर्ड, बेस्ट कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन और कोरोना योद्धा अवार्ड मिल चुका है।

बच्चों के लिए बना दिया बुक बैैंक

नेशनल एसोसिएशन फॉर पैरेंट्स एंड स्टूडेंट्स राइट्स (एनएपीएसआर) के अध्यक्ष आरिफ खान वर्ष 2013 से जरूरतमंदों के लिए एजुकेशन दिए जाने पर काम कर रहे हैं। लेकिन, वर्ष 2017 में उन्होंने देहरादून में निशुल्क बुक बैंक की शुरुआत की। उस वक्त नेहरू कॉलोनी में 4 बुक्स, एक टेबल उनके पास मौजूद थे। अब उनके पास एक नहीं, हजारों की संख्या में बुक्स हैं। जिसका लाभ स्टूडेंट्स उठा रहे हैं। यही कारण है कि दून शहर के 10 स्थानों के अतिरिक्त दूसरे राज्यों में चलने वाले बुक बैंक को मिलाकर करीब 14 बुक बैंक की शाखाएं चल रही हैं।

दून व अन्य राज्यों में शाखाएं

दून शहर के रायपुर, विकासनगर, यमुना कॉलोनी, कौलागढ़, ठाकुरपुर, हाथीबड़कला, पंडि़तवाड़ी, इंद्रानगर कॉलोनी, सहस्रधारा रोड, धूलकोट में बुक बैंक की शाखाएं चल रही हैं। इसके अलावा आसाम, गुवाहाटी, स्वालकुची व कोलकाता में मिलाकर कुल 14 शाखाएं निशुल्क रूप से बच्चों को बुक्स उपलब्ध करवा रही हैं। इसके अलावा आरिफ खान के सहयोग से जरूरतमंद बच्चों को अक्षर ज्ञान देकर उनको सरकारी स्कूलों में दाखिला दिलाने व ऐसे बच्चों के लिये अपनी पाठशाला का भी संचालन किया जा रहा है। अपने नेक कार्य के लिए आरिफ खान को रेड एफएम में एक पहाड़ी ऐसा भी, सीजन 3 मे चुना गया। आरिफ बताते हैं कि बुक बैंक के लिए उन्हें लगातार दूनवासियों का सहयोग मिल रहा है। उनका कहना है कि जब कोटद्वार में एक पेरेंट्स के साथ बुक सेलर ने मिसबिहेव किया, तब उन्होंने बुक बैंक की शुरुआत की थी। कोरोनाकाल में जब लॉकडाउन लगा, उस वक्त सबसे ज्यादा बुक्स की दिक्कत आई। तब आरिफ ने एक्टिवा से घर-घर तक भी बुक्स पहुंचाई। वर्तमान में उनके पास प्ले ग्रुप से लेकर हायर एजुकेशन और किसी भी कॉम्पिटीशन एग्जाम तक की बुक्स मौजूद हैं। इन्हीं बुक्स से कई युवाओं ने सीए, एनडीए तक की परीक्षाएं पास की हैं। वे कहते हैं कि बुक बैंक में आज भी लाखों बुक्स के साथ रोज 6-7 घंटे निशुल्क सेवाएं दे रहे हैं।

कोविडकाल में 327 का किया अंतिम संस्कार

विजय राज नाम का एक ऐसे शख्स हैैं, जिनके मन में समाज के लिए कुछ कर गुजरने का जुनून है। करीब 10 हजार की सैलरी में परिवार का भरण पोषण कर विजय जरूरतमंदों के लिए दिल खोलकर आगे रहते हैं। अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कोविडकाल के दौरान जहां लोग लॉकडाउन में घरों में दुबके हुए थे, वहीं विजय ने रायपुर स्थित अस्थाई शमशान घाट में करीब 327 लाशों का अंतिम संस्कार किया। इस दौरान उन्होंने महामारी की परवाह किए बगैर जान पर खेलकर जिम्मेदारी निभाई।

आश्रम के लिए जमीन की दरकार

दरअसल, दून मेडिकल कॉलेज में आउटसोर्सिंग से मोर्चरी की जिम्मेदारी संभाल रहे विजय राज के सपने बचपन से ही कुछ और थे। जब भी उन्हें मौका मिला, वे हाथ बढ़ाते रहे। इसी बीच विजय ने वर्ष 2018 में संस्था छोटी-सी दुनिया की आधारशिला रखी। जिससे कई लोग उनसे जुड़ते गए। इसी बीच कोविड महामारी आई। विभाग की ओर से उन्हें रायपुर स्थित अस्थाई शमशान घाट की जिम्मेदारी मिली। जिसको विजय ने खुशी-खुशी स्वीकारी। बताते हैं कि उन्होंने कोविडकाल उसी शमशान घाट पर 327 लोगों को अंतिम संस्कार किया। कोरोनाकाल का अनुभव बताते हुए बताया, कोई शख्स विदेश में रहते थे। कोविडकाल में दून में उनकी मृत्यु हो गई। उनके साथ एक व्यक्ति ने लाश को मोर्चरी में रखवाया और डेथ सर्टिफिकेट मांगने लगा। लेकिन, विजय ने मना कर दिया। मृतक की बैंगलोर में रहने वाली बेटी से वीडियो कॉल से दिखाकर उनका अंतिम संस्कार किया और उनकी अंगूठी व सोने की चेन वापस कराई। कोविडकाल में ही किसी व्यक्ति का गिरा हुआ साढ़े चार लाख रुपए का बैग भी वापस कराया। विजय में घायल जानवरों की सेवा का भी जुनून है। दिखने पर वे रेस्क्यू कर सेंटर तक पहुंचाते हैं। अब उनका सपना एक आश्रम खोल कर सड़कों पर लावारिस हालत में नजर आने वाले लोगों की सेवा करना है। जिसके लिए उन्हें एक टुकड़े जमीन की दरकार है।

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