देहरादून,(ब्यूरो): राष्ट्रपिता महात्मा गांधी यानि बापू का दून से भी खासा लगाव रहा है। वे कई बार दून के साथ मसूरी की यात्रा पर पहुंचे। इस दौरान वे अपनी यादें भी जीवंत कर गए। जी हां, बापू राजपुर स्थित शहंशाही आश्रम के पास स्थित क्रिश्चियन रिट्रीट एंड स्टडी सेंटर में 17 अक्टूबर 1929 में पीपल का पौधा रोपा था। आज वो पेड़ अपने जीवन के सफर के 95 वर्षों का सफर पूरा कर चुका है। खास बात ये है कि पेड़ हरा-भरा है, जिसको दूर से ही देखने पर हरियाली नजर आती है।
यहां तक आम लोगों के साथ टूरिस्ट भी नहीं पहुंच पाते
कहने के लिए आम लोगों के लिए ये पीपल का पेड़ नजर आता है। लेकिन, इस पेड़ के पीछे महात्मा गांधी की यादें जुड़ी हुई हैं। इस पेड़ की याद दिलाने के लिए बाकायदा पास में ही एक पत्थर लगाया गया है। जिसमें लिखा है कि पंडित केशव देव शास्त्री के सम्मान में बापू ने पेड़ को रोपा था। स्मारक में पौधरोपण का दिन व सन भी अंकित है। दून से जुड़ी हुई राष्ट्रपिता की जीवंत यादें सबको याद दिला देते हैं। स्थानीय लोगों या फिर इतिहासकारों की मानें तो राष्ट्रपिता की ओर से रोपा गया ये पेड़ अपने आप में इतिहास समाए हुए है। लेकिन, यहां तक पहुंचने के लिए लोगों को किसी प्रकार की जानकारी, गाइडिंग या फिर साइन बोर्ड तक नजर नहीं आते हैं। जाहिर है कि यहां तक आम के अलावा दून से मसूरी जाने वाले टूरिस्ट तक भी नहीं पहुंच पाते हैं। लोगों की अक्सर मांग उठती रही है कि सरकार को इस धरोहर पर फोकस करना चाहिए। हालांकि, कुछ वर्ष पहले्र किसी पर्यावरण प्रेमी ने मामला तत्कालीन प्रमुख वन संरक्षक और विभागाध्यक्ष जयराज तक को दी थी। इसके बाद उन्होंने विभागीय अधिकारियों को पेड़ की जांच के लिए भेजा भी था। बताया गया था कि उस दौरान पेड़ का ट्रीटमेंट भी करवाया गया था। इसीलिए हम कह रहे हैं कि ऐसी धरोहरों व विरासतों को सामने लाने की जरूरत है। जिससे लोग इस इतिहास के बारे में रूबरू हो सकें।
साढ़े तीन साल पुरानी विरासत
-करीब साढ़े तीन सौ साल पुरानी कला की बेजोड़ धरोहर का निर्माण मुगल सम्राट औरंगजेब के दौर में हुआ
दून के बैंड बाजार के समीप पतली गली में मौजूद है रामलीला भवन स्थित है। इसके करीब है रामलीला बाजार। इसी में मौजूद है करीब साढ़े तीन सौ वर्ष पुराना रामलीला भवन। दूर से देखने पर इसकी स्थापत्य कला भवन निर्माण कला के स्वर्णिम काल की याद दिलाती है। मिली जानकारियों के अनुसार रामलीला भवन की स्थापना मुगल बादशाह औरंगजेब के दौरान हुई थी। लेकिन, आज भी इस धरोहर की स्थापत्य कला लोगों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती है, जो लोगों के लिए हर पल आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।
हिन्दू-मुगलिया स्थापत्य कला शामिल
दस्तावेजों के अनुसार श्री रामलीला भवन का ढांचा मिश्रित संस्कृति का प्रतीक है। जिसमें हिन्दू और मुगलिया स्थापत्य कला दोनों शामिल हैं। अब रामलीला भवन के नाम से पहचान रखने वाली ये धरोहर अब सही मायने में एक ऐतिहासिक स्मारक है। बताया जाता है कि इसको श्री रामलीला संचालित करने के लिए बनवाया गया था। इस इमारत में प्राचीन कलाओं का भी चित्रण है। वर्षों पुराने इस भवन में रामायण और महाभारत से जुड़े चित्र भी अंकित हैं। रामलीला भवन के पास स्थित गुरू राम राय महाराज की समाधि युग के अनुसार दिव्य और भव्य बनाई गया है। ये भी माना जाता है कि इस स्थान पर बादशाह औरंगजेब ठहरा था। रामलीला भवन के आसपास त्यौहारों के समय जीवन जीवंत हो उठता है। फेस्टिव के मौके पर स्थानीय लोग भारी संख्या में यहां आते हैं, रामलीला भवन को दीपों से सजाते हैं। फिलहाल, आजकल इसको जीवंत रखने के लिए सफेदी का काम चल रहा है। जिसके बाद इस धरोहर पर चार चांद लगने स्वाभाविक हैं।
दून शहर में मौजूद ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित व सुरक्षित रखने की जरूरत है। जिससे न केवल युवा पीढ़ी इंस्पायर हो सकेगी। बल्कि, पर्यटक भी उनके महत्व को लेकर अट्रैक्ट हो सकेगी।
रौनक।
सिटी में ऐसी ही कई धरोहर, ऐतिहासिक विरासतें मौजूद होंगी। प्रदेश सरकार को इनके संरक्षण व संवर्धन के लिए किसी सरकारी विभाग को संरक्षित करने चाहिए।
राजेश कुमार।
किसी भी सिटी में ऐसी धरोहर या फिर ऐतिहासिक इमारतें वहां के इतिहास से सरोकार करते हैं। यकीनन इनके संवर्धन व संरक्षण किया जाने की आवश्यकता है। जिससे पर्यटक व शहरवासी रूबरू हो सकें।
सतीश चंद।
अब तक अक्सर देखने में आया है कि दून में कई वर्षों पुरानी धरोहर हैं। जिन पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। इसके लिए सरकार को कदम बढ़ाने चाहिए। यही शहर की पहचान होती हैं।
रोशन राणा।
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