- नालों में बहने वाला पानी अंडर ग्राउंड वाटर रिचार्जिंग में हो सकता है मील का पत्थर साबित
- लगातार गिर रहे जल स्तर को कंट्रोल करने के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग सबसे अहम हथियार
देहरादून (ब्यूरो): खेती के साथ ही पीने के पानी की समस्या बढ़ती जा रही है। ऐसे में बरसात के पानी ही इसका एक विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। बरसात में नालों में बहने वाले पानी को एकत्र करके उसे भूमि को रिचार्ज करने में प्रयोग किया जा सकता है। हालांकि नालों में बहने वालो पानी को बचाने की सरकार ने अभी तक कोई ठोस योजना नहीं बनाई है, लेकिन उत्तराखंड में सीएम जल संरक्षण एवं संवद्र्धन अभियान के जरिए अगले तीन माह के लिए सभी विभागों को जल संग्रहण के तहत नदियों और जल स्रोतों के पुनर्जीवन को चाल-खाल और चेकडैम निर्माण योजना बनाई गई है। यह अभियान कितना कारगर साबित होता है।
रिस्पना-बिंदाल में चैक डैम
दून सिटी की प्रमुख नदी रिस्पना और बिंदाल नदी लगभग सूख चुकी है। इसके पुनर्जीवन के लिए लंबे समय से प्रयास किए गए हैं, लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली है। बरसात में ये नदियां उफान पर रहती है। जबकि गर्मी में सूख जाती है। सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता राजेश लांबा ने बताया कि दोनों नदियों पर चैक डैम बनाए जा रहे हैं। रिस्पना नदी पर करीब चार चैक डैम बनाए गए हैं, जिनसे बड़ी मात्रा में अंडर ग्राउंड वाटर रिचार्ज हो रहा है।
55 नाले हैं शहर में
दून शहर में तकरीबन 55 छोटे-बड़े नाले हैं, जबकि 280 के करीब ड्रेनेज नालियां हैं। इन नालों में बहने वाला पानी नदियों में जाकर मिल रहा है। यदि इन नालों के पानी को टेप करके भूमिगत रिचार्जिंग के काम में लाया जाए, तो इससे वाटर लेवल काफी अप हो सकता है। सिंचाई विभाग वैज्ञानिक विधि से चैक डैमों का निर्माण कर रहा है। रिस्पना में बनाए गए चैक डैम 20 मीटर लंबे, 15 मीटर चौड़े और 1.5 मीटर ऊंचे चेकडैम बनाए जा रहे हैं, जिनमें 1 लाख लीटर पानी भरा रहेगा। इससे धीरे-धीरे आस-पास की भूमि रिचार्ज होती रहेगी।
जल संवद्र्धन पर एक नजर
12 लाख के लगभग है दून की आबादी
55 छोटी-बड़े नाले हैं शहर में
280 के करीब हैं ड्रेनेज नालियां
18 बड़े नाले हैं रिस्पना-बिंदाल से जुड़े हुए
100 वार्ड हैं दून में
15 हजार के लगभग है प्रत्येक वार्ड की आबादी
01 लाख लीटर क्षमता है रिस्पना-बिंदाल में बनाए जा रहे चेकडैमों की
20 मीटर लंबाई है एक चैक डैम की
15 मीटर है चौड़ाई
1.5 मीटर है ऊंचाई
एसटीपी का पानी सिंचाई में यूज
दून समेत राज्य में करीब 44 सीवर ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) है, जिनका संचालन जल संस्थान कर रहा है। इन एसटीपी में सैकड़ों नाले भी टेप किए गए हैं। गंदगी फिल्टर होने के बाद एसटीपी का पानी हरिद्वार में खेतों के लिए प्रयोग किया जा रहा है। अभी तक ये पानी सीधे नदी में बिना यूज के प्रवाहित हो रहा है। जल संस्थान के सचिव अप्रेजल मनीष सेमवाल ने बताया कि हरिद्वार में शुरूआत की की गई। इसी तरह अन्य जगहों पर भी एसटीपी का पानी खेती और दूसरे कार्यों में यूज किया जा सकता है। पर्सनल तौर पर भी लोग फ्री में एसटीपी का पानी ले जा सकते हैं। नहर बनाकर पानी को खेतों के लिए यूज किया जा सकता है।
दून-हरिद्वार में एसटीपी और उनकी क्षमता पर एक नजर
जगह का नाम क्षमता
मोथरोवाला 20.00
मोथरोवाला-2 20.00
कारगी 68.00
विजय कॉलोनी 00.42
सालावाला 00.71
इंदिरा नगर 5.00
जाखन 1.00
(नोट: क्षमता एमएलडी में)
'पानी बचाना हर हाल में जरूरीÓ
वर्षा जल संग्रहण करना आज बहुत जरूरी हो गया है। जिस तरह पूरे विश्व में पानी के लिए हा-हाकार मचा हुआ है। हमारे राज्य में भी वाटर लेवल गिर रहा है, जिसे अभी से बचाया जाना चाहिए, ताकि हालात कंट्रोल में रह सके। खासकर बरसात में बहने वाले नालों का पानी भूमि रिचार्जिंग के काम में लाया जाना चाहिए।
आशीष शर्मा
जल ही जीवन है। इसलिए जीवन को बचाने के लिए सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर प्रयास किए जाने चाहिए। सरकार को चाहिए कि बरसात के पानी को ज्यादा से ज्यादा यूज में लिया जाए, ताकि भूमि रिचार्ज करने में मदद मिल सके।
हिमेश कुमार
धरती पर उपलब्ध जल का 96.5 परसेंट भाग समुद्र और महासागरों में है। 1.7-1.7 परसेंटर भूजल और ग्लेशियरों में है। इस पानी का 2.5 परसेंट ही ताजा पानी है और इसका 98.8 परसेंट बर्फ और भूजल में है। इससे स्पष्ट है कि ताजे जल का एक महत्वपूर्ण भाग धरती के भूगर्भ में है।
योगेश नौटियाल
बारिश का पानी भी काफी कीमती है। भविष्य में आने वाली परेशानियों को देखते हुए अभी से रेन वाटर हार्वेस्टिंग पर जोर दिया जाना चाहिए। अपने घर मकान और प्रतिष्ठान में बारिश का पानी स्टोर किए जाने की जरूरत है। इसके लिए सरकार का मुंह ताकने की जरूरत नहीं है।
परवेश नौटियाल
शहरों में कंक्रीट के जंगल उग गए हैं। यहां जगह कीमती होन पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए बहुत कम जगह है। पूरा शहर कंक्रीट के ऊपर बसने से जमीन बहुत कम रिचार्ज हो रही है, जो भविष्य में बड़ा खतरा पैदा कर सकती है। शहरों में वैज्ञानिक तरीकों से भूमि रिचार्जिंग की योजनाएं बनाई जानी चाहिए।
शुशी मेहता
dehradun@inext.co.in