देहरादून (ब्यूरो) उत्तराखंड की वल्र्डफेम चारधाम यात्रा में शामिल केदारनाथ धाम। यहां हर वर्ष दर्शनों के लिए दुनियाभर के श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगी रहती हैं। अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां लगातार यात्रियों की आमद में इजाफा हो रहा है। इस वर्ष तो चारधाम यात्रा में से केदारनाथ चहुंचने वाले यात्रियों रिकॉर्ड बना दिया। इस साल केदारनाथ की यात्रा पर आने वाले यात्रियों की संख्या सबसे ज्यादा 16 लाख तक पहुंची है। अभी भी करीब एक माह की यात्रा बाकी है। जबकि, अब तक अक्सर देखने में आया करता था के चारों धामों में सबसे ज्यादा यात्री बदरीनाथ धाम पहुंचा करते थे। लेकिन, इस मिथक को यात्रियों ने पीछे छोड़ दिया है और फिलहाल केदारनाथ की चुनौतीभरी यात्रा के प्रति यात्रियों का उत्साह बना हुआ है।

फरीदाबाद से गौरीकुंड पहुंची मशीन
जाहिर है कि जिस रफ्तार से केदारनाथ धाम में यात्रियों की संख्या साल-दर-साल बढ़ रही है। उससे प्लास्टिक की खपत बढ़ गई है। वेस्ट मैनेजमेंट संस्था के प्रमुख मनोज सेमवाल कहते हैं कि वर्तमान समय में केदारनाथ की पैदल यात्रा के दौरान गौरीकुंड से लेकर केदारनाथ तक करीब 18-20 किमी तक रोजाना करीब एक लाख छोटी-बड़ी और अन्य प्रकार की प्लास्टिक की बोतलें यात्रा रूट पर नजर आ रही हैं। जिससे लगातार यात्रा मार्ग पर पर्यावरण को खतरा पैदा हो रहा है। प्लास्टिक की बोतलों की भारी तादाद को देखते हुए मनोज सेमवाल ने प्लास्टिक बोतल क्रश मशीन को फरीदाबाद से इंपोर्ट किया है और आजकल उनको क्रश करने का सिलसिला जारी है।

पांच लाख का सैटअप तैयार
यात्रा मार्ग पर प्लास्टिक की बोलतों की बढ़ती संख्या को देखते हुए उन्होंने इंटरनेट की मदद ली। पता चला कि इन बोलतों को पिक कर आसानी से क्रश किया जा सकता है। इसके बाद करीब 5 लाख रुपए के सैटअप के साथ आजकल मनोज सेमवाल वेस्ट मैनेजमेंट संस्था के बैनर तले बोतल क्रश पर जुटे हुए हैं। मनोज के मुताबिक बोटल क्रश करने के बाद अब उन्होंने दून व रुड़की से संपर्क करने की कोशिश की है। जिससे क्रश्ड बोतल 30 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से सेल किए जा सकें।

घोड़े-खच्चरों की लीद से बनेगी खाद
वेस्ट मैनेजमेंट कमेटी के प्रमुख मनोज सेमवाल के मुताबिक केदारनाथ यात्रा मार्गों के किनारे हजारों घोड़े-खच्चरों की टनों के हिसाब से लीद पड़ी रहती है। जिसका अब यूज किया जा रहा है। बताया, अब तक करीब 450 ट्रक लीद उठा कर डंपिंग जोन में डाला गया। जिससे पहले ईंट, उसके बाद लकड़ी बनाने का एक्सपेरीमेंट किया गया। लेकिन, सफलता नहीं मिल पाई। अब करीब 6 हजार टन लीद से खाद बनाने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है।

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