देहरादून (ब्यूरो) मंडे को सचिव आपदा प्रबंधन सचिव डॉ। रंजीत कुमार सिन्हा की अध्यक्षता में सचिवालय में देशभर के फेमस इंस्टीट्यूशंस व स्टेट गवर्नमेंट के डिपार्टमेंट के प्रतिनिधियों के साथ बैठक हुई। निर्णय लिया गया कि 10 दिन के भीतर ग्लेशियरों की निगरानी के लिए कमेटी का गठन किया जाएगा। जिसमें तमाम इंस्टीट्यूशंस के स्पेशलिस्ट शािमल किए जाएंगे। बताया गया है कि जहां जलवायु परिवर्तन के कारण वर्तमान में उच्च हिमालयी क्षेत्र में बर्फबारी के स्थान पर वर्षा होने लगी है। वहीं, बढ़ते टेंप्रेचर के कारण ग्लेशियरों के पिघलने की दर में लगातार ग्रोथ देखी जा रही है। इस कारण ग्लेशियर पीछे होते जा रहे हैं।
पानी का प्रेशर खतरनाक
बताया गया है कि ग्लेशियरों द्वारा खाली किए गए स्थानों पर ग्लेशियरों द्वारा लाए गए मलबे के बांध के कारण बनी कुछ झीलों का आकार वर्षा व ग्लेशियरों के पिघलने से तेजी से बढ़ रहा है। एक सीमा के बाद पानी का प्रेशर मलबे के बांध को तोड़कर निचले क्षेत्रों में तबाही का कारण बन सकता है।
ये प्रमुख आपदाएं शामिल
-जून 2013 में केदारनाथ त्रासदी।
-वर्ष 2021 में धोली गंगा में आई बाढ़।
-4 अक्टूबर 2023 में सिक्किम के लोहनक झील टूटी।
राज्य की 4 झीलें शामिल
बताया गया है कि पूर्व में केदारनाथ, धौलीगंगा व सिक्किम में ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। इनकी पुनरावृत्ति रोकने और घटित होने की स्थिति में प्रभावित होने वाले लोगों को समय से अलार्म जारी करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने एक समिति गठित की है। समिति ने उत्तराखंड में ऐसी 13 ग्लेशियर झीलें चिह्नित की हैं, जो जोखिम की ²ष्टि से संवेदनशील हैं। हालांकि, स्टेट गवर्नमेंट की ओर से इसमें चार और झीलें शामिल की हैं।
गंगोत्री की झीलें जोखिमभरी
वाडिया हिमालय भू-विज्ञान इंस्टीट्यूट की ओर से बताया गया कि वह गंगोत्री ग्लेशियर की निगरानी कर रहा है। यह बात सामने आई है कि इस ग्लेशियर के साथ ही कई झीलें ज्यादा जोखिम के तहत हैं। ऐसे ही वसुधारा ताल में भी जोखिम बना हुआ है।
3 ग्लेशियर का बढ़ रहा क्षेत्र
भागीरथी, मंदाकिनी व अलकनंदा नदियों के निकट ग्लेशियर झीलों की निगरानी कर रहे आईआईआरएस की ओर से जानकारी दी गई कि केदारताल, भिलंगना व गोरीगंगा ग्लेशियर का क्षेत्र लगातार बढ़ रहा है। आने वाले समय में आपदा जोखिम के लिहाज से संवेनशील हो सकते हैं।
झीलों की गहराई को सर्वे
ग्लेशियर झीलों की स्टडी कर रही सीडेक संस्था के प्रतिनिधियों ने बताया कि संस्था ने सिक्किम की 3 ग्लेशियर झीलों की स्टडी को अर्ली वार्निंग सिस्टम स्थापित किया। झीलों की गहराई मापने को बेथिमेट्री सर्वे से प्राप्त आंकड़ों से झीलों में आ रहे चैंजे पर नजर रखी जा रही है। उत्तराखंड में भी इस फॉर्मूले का अपनाया जा सकता है।
ये काम करेगी स्पेशलिस्ट कमेटी
-ग्लेश्यिरों व वहां मौजूद झीलों की स्टडी।।
-कमेटी में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण नोडल के रूप में करेगी काम।
-कमेटी सेटेलाइट इमेज से ग्लेशियरों की मॉनिटरिंग करेगी।
-ग्लेशियर झीलों की गहराई, मोरेन की स्थिति के लिए बेथिमेट्री सर्वे भी करेगी।
-समिति की रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेजी जाएगी और केंद्र से मागदर्शन लिया जाएगा।
-ग्लेशियर झीलों से पैदा होने वाली आपदा के नियंत्रण को कदम उठाए जाएंगे।
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