अरुण सक्सेना (ब्लाॅगर)। पानी के तेज बहाव में ऋषिगंगा और धौलीगंगा प्रोजेक्ट के तमाम लोगों के लापता होने की खबर है। उत्तराखंड के चमोली में आपदा से वैज्ञानिक भी हैरान हैं। संभवत: ऐसा पहली बार हुआ है जब ठंड में कोई ग्लेशियर टूटा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ठंड में इस तरह की घटना होना हैरतअंगेज है। प्रकृति के इस रौद्र रूप से कितना नुकसान होगा, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन प्रत्यक्षदर्शियों के लिए नजारा बिलकुल वैसा ही था जैसा साल 2013 में केदारनाथ आपदा के वक्त देखने को मिला था। उत्तराखंड में पिछले तीन दशक में तमाम प्राकृतिक आपदाएं आई हैं। वर्ष 1991 में 6।8 तीव्रता का भूकंप जिसमें कम से कम 768 लोगों की मौत हुई और हजारों घर तबाह हो गए। वर्ष 1998 में पिथौरागढ़ जिले में माल्पा भूस्खलन। इस हादसे में 55 कैलाश मानसरोवर श्रद्धालुओं समेत करीब 255 लोगों की मौत हुई। वर्ष 1999 में चमोली में 6।8 तीव्रता का भूकंप, जिसमें 100 से ज्यादा लोगों की जान गई थी तथा वर्ष 2013 की केदारनाथ त्रासदी, जिसमें सरकारी आंकड़ों के अनुसार 5,700 से अधिक लोग अपनी जान गवां बैठे थे।
हर साल नेचुरल डिजास्टर्स विश्व की इकॉनमी पर 520 बिलियन डॉलर का बोझ
2017 की वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल नेचुरल डिजास्टर्स विश्व की इकॉनमी पर 520 बिलियन डॉलर का बोझ डालते हैं और 26 मिलियन लोगों को गरीबी की ओर ले जाते हैं। मनुष्य अपने निजी स्वार्थ के लिए वनों, जंगलों, मैदानों, पहाड़ों और नेचुरल रिसोर्सेज का अंधाधुंध एक्सप्लॉइटेशन कर रहा है, जिसके कारण नेचुरल कैलेमिटीज और डिजास्टर्स में लगातार वृद्धि हो रही है। फॉरेस्ट फायर, फ्लड, लैंड-स्लाइड्स, भूकंप, सुनामी, साइक्लोन्स, क्लाउड बस्ट्र्स जैसे नैचुरल डिजास्टर्स बार-बार मनुष्य को वॉर्न कर रहे हैं कि वह नेचर के साथ हारमनी में को-एक्जिस्ट करना सीखें। इंसान नेचर के रौद्र रूप के आगे हमेशा बौना साबित होता है। वर्ष 1999 में ओडिशा में आए साइक्लोन में 10 हजार से अधिक लोग मारे गए, 26 जनवरी 2001 को गुजरात में आए भूकंप में 20 हजार से अधिक लोगों की जान गई, 2004 में आए इंडियन ओशन में सुनामी से 2.8 लाख से ज्यादा जानें गईं और 10 लाख से अधिक लोग बेघर हो गए, अप्रैल 2015 में नेपाल में आए भूकंप में 8000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक लोग घायल हुए, 2005 में कश्मीर में आए भूकंप के कारण पाकिस्तान में 79,000 जानें गईं और मुंबई में भयानक बाढ़ से 5000 लोग मारे गए।
ओडिशा में साइक्लोन फानी के दौरान एनडीएमए ने शानदार काम किया
नेचुरल डिजास्टर्स में वृद्धि और इकॉनमी पर नेगेटिव इम्पैक्ट के कारण हमारी सरकार दिसंबर 2005 में डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट लेकर आई। इस एक्ट के अनुसार एनडीएमए (नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी) की स्थापना हुई, जिसका चेयरपर्सन स्वयं प्राइम मिनिस्टर होता है तथा स्टेट लेवल पर एसडीएमए का चेयरपर्सन स्टेट का चीफ मिनिस्टर होता है। ओडिशा में साइक्लोन फानी के दौरान एनडीएमए ने शानदार काम किया और लगभग 12 लाख लोगों की रक्षा की तथा 4000 साइक्लोन शेल्टर्स का निर्माण किया। इसी प्रकार आंध्र प्रदेश के साइक्लोन हुदहुद में भी एनडीएमए के कार्य की प्रशंसा हुई तथा जिस प्रोफेशनल तरीके से उसने सिचुएशन मैनेज की उसकी यूनाइटेड नेशंस द्वारा भी सराहना की गई। एनडीएमए के कारण ओडिशा में साइक्लोन्स के दौरान मोर्टेलिटी रेट में भी भारी कमी आई। 1999 में जहां सुपर साइक्लोन के दौरान 10 हजार जानें गई थीं। वहां 2019 में फानी के दौरान सिर्फ 16 लोगों की मृत्यु हुई। कल भी, चमोली में जिस प्रकार डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने तत्परता दिखाई वो प्रशंसनीय है।
हमारी जीडीपी को नेचुरल डिजास्टर्स की वजह से लगभग 2 परसेंट का नुकसान
1996 से 2001 के बीच हमारी जीडीपी को नेचुरल डिजास्टर्स की वजह से लगभग 2 परसेंट का नुकसान हुआ तथा देश का 12 परसेंट तक रेवेन्यू नेचुरल डिजास्टर्स पर खर्च हुआ जो हमारी डेवलपिंग इकॉनमी के लिए एक बड़ी चोट थी। संभवत: यही कारण है कि हर साल डिजास्टर मैनेजमेंट के लिए ऐलोकेट किए गए फंड्स बढ़ते जा रहे हैं तथा हाल ही में आए वर्ष 2020-21 के बजट में इसे 25 हजार करोड़ का फंड आवंटित किया गया है।
भारत को यूके, ऑस्ट्रेलिया तथा कनाडा से डिजास्टर मैनेजमेंट सीखने की जरूरत
कतर, माल्टा और सऊदी अरब नेचुरल डिजास्टर्स के मामले में सेफेस्ट कन्ट्रीज माने जाते हैं, जहां इनका मिनिमल इफैक्ट होता है। भारत को यूनाइटेड स्टेट्स, ऑस्ट्रेलिया तथा कनाडा से डिजास्टर मैनेजमेंट के क्षेत्र में बहुत कुछ सीखने की जरूरत है, क्योंकि इन देशों ने डिजास्टर मैनेजमेंट को सीरियसली लेते हुए बहुत प्रोफेशनल और एडवांस्ड सिस्टम्स डेवेलप कर लिए हैं।
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