वाराणसी (ब्यूरो)स्ट्रोक की वजह से हजारों लोगों की जान खतरे में पड़ रही हैबनारस में इस तरह के मामले लगातार बढ़ रहे हैंएसएस हॉस्पिटल बीएचयू में स्ट्रोक सबसे ज्यादा केस आ रहे हैंइसमें भी सबसे ज्यादा पीडि़त यूथ हैब्रेन स्ट्रोक, ब्रेन हेमरेज के कारण लकवा के केस भी लगातार बढ़ रहे हैंयही नहीं खून व हार्ट की नसें ब्लॉक होने के चलते हार्ट अटैक के मामले भी बढ़ रहे हैं

केस-1: लकवा के स्टेज पर पहुंची

43 वर्षीय स्ट्रोक की मरीज डायबिटीज, हाई बीपी, हाइपरथायरायडिज्म और डिस्लिपिडेमिया से पीडि़त थी, उसे ऊपरी अंग में हल्की कमजोरी का अनुभव हुआ, जो धीरे-धीरे खराब होकर उसके निचले अंग और बोलने की क्षमता को प्रभावित करने लगीहॉस्पिटल पहुंचने पर डॉक्टर्स की टीम ने एक स्टेंट रिट्रिवर उपकरण को क्लॉट को हटाने के लिए लगाया, जिससे ब्लड सर्कुलेशन सही हो गयाफिर एंजियोग्राफी में दिमाग की ब्लड वेसल में कोलेस्ट्रॉल जमा होने की पहचान की गई, जिससे खून को पतला करने वाली दवाएं दी गईंमरीज में सुधार हुआ अब वो ठीक है

केस-2: काटना पड़ा अंग

बिहार के एक 35 वर्षीय युवक को अचानक लकवा मार गयाउसे सर्दी-बुखार जैसे लक्षण थे लेकिन उसने घर में इलाज किया और ठीक हो गयालेकिन कुछ दिन बाद उसे ब्रेन स्ट्रोक की शिकायत हो गईइसके बाद उसे ऊपरी अंगों में कमजोरी महसूस होने लगीफिर धीरे-धीरे कुछ और अंग प्रभावित होने लगेइसके बाद उसके निचले अंग और बोलने की क्षमता को प्रभावित करने लगीहाथ व पैर की नसें ब्लॉक हो गई थींहॉस्पिटल आने के बाद जब ट्रीटमेंट शुरू हुआ तो मरीज को धीरे-धीरे रीलिफ मिलने लगी

ये तो महज दो केस हैबीएचयू एसएस हॉस्पिटल व प्राइवेट हॉस्पिटल में रोजाना ऐसे केस आ रहे हैन्यूरो सर्जन के अनुसार 100 में ऐसे 10 से 15 मरीज मिल रहे हैं, जिन्हें ब्रेन स्ट्रोक व ब्रेन हेमरेज हो रहा हैइसके चलते वे पैरालाइसिस के शिकार हो रहे हैंडॉक्टर्स की माने तो स्ट्रोक में खून गाढ़ा हो जाता हैऐसे मरीजों को खून पतला करने वाली दवा दी जाती है, ताकि ताकि ब्रेन हेमरेज या स्ट्रोक, हार्ट अटैक का खतरा न रहेबीएचयू के न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट में ऐसे हजारों मरीजों का इलाज किया जा चुका है, जिसके हाथ व पैर की नसें ब्लॉक हो गई थीं

हर साल 4000 से ज्यादा युवा लकवा के शिकार

बीएचयू एसएस हॉस्पिटल के न्यूरोलॉगजी डिपार्टमेंट के आंकड़ों की माने तो न्यूरो ओपीडी में हर साल तीन लाख से ज्यादा स्ट्रोक के पेशेंट जांच के लिए आ रहे हैंइसमें ज्यादातर में नशों का ब्लॉक होना, ब्रेन स्ट्रोक, ब्रेन हेमरेज के मरीज होते हैइसके अलावा 30 हजार के करीब सिर्फ लकवा के पेशेंट आ रहे हैंइसमें 12 से 15 प्रतिशत यूथ हैसीधे तौर पर कहे तो अब यह बीमारी युवाओं को बहुत ज्यादा डिस्टर्ब कर रही हैबीएचयू न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट के एचओडी डॉवीएन मिश्रा का कहना हैं कि यूथ में स्ट्रोक का खतरा काफी तेजी से बढ़ रहा हैये आंकड़े बेहद चौकाने वाले हैस्ट्रोक के तीन सबसे बड़े कारण हैइसमें पहला अनियंत्रित ब्लड प्रेशर, दूसरा नशे का सेवन और तीसरा कारण जेनेटिक कांसेस है

जागरूकता के लिए बनाई है फिल्म

डॉमिश्रा का कहना है स्ट्रोक जैसी गंभीर बीमारी युवाओं की लाइफ खराब न करे इसके लिए डिपार्टमेंट की ओर से इसे रोकने के लिए लगातार प्रयास किया जा रहा हैयंग एज में अगर कोई लकवा का शिकार हो जाए तो उसकी पूरी लाइफ खराब हो जाती हैडिपार्टमेंट की ओर से जागरूकता अभियान भी चलाया जा रहा है। 2016 में एक फिर वहीं दिन के नाम से डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाकर यू ट्यूब पर अपलोड किया गया है, ताकि हमारा यूथ इस फिल्म को देखे और स्ट्रोक जैसी बीमारी से खुद को दूर रखने का प्रयास करे

कभी काटने पड़ जाते है अंग

न्यूरो सर्जन के अनुसार सामान्यत गर्मी के सीजन में वेस्कुलर (खून की नस) संबंधी बीमारी नहीं होती, क्योंकि इस समय तापमान अधिक रहने से नसें फूल जाती हैंलेकिन ठंड के कारण लोगों का खून गाढ़ा हो जाता हैइस वजह से कुछ गैंगरीन का भी शिकार हो रहे हैंदरअसल नसें ब्लॉक होने से खून की सप्लाई नहीं होती, इसलिए संबंधित अंग खराब होने लगता हैसमय पर इलाज हुआ तो कृत्रिम नस लगाकर मरीज के अंग बचाए जा सकते हैंनहीं तो काटने के अलावा कोई विकल्प नहीं है

ये है ब्रेन स्ट्रोक

ब्रेन स्ट्रोक के दौरान दिमाग की कोई एक नस फट जाती है अथवा बल्ड सकुर्लेशन में परेशानी आती हैकभी-कभी नसें ब्लॉक हो जाती हैंइससे दिमाग को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिलती हैदिमाग में न्यूट्रिशियन की कमी होने लगती है, जबकि दिमाग की कोशिकाएं मरने लगती हैंअगर समय पर उपचार नहीं किया जाता है, तो मरीज की जान भी जा सकती हैसर्दी के दिनों में ब्लड सकुर्लेशन सही से नहीं हो पाता है। इससे दिमाग की नसें सिकुड़ जाती है और ब्लड सर्कुलेशन में बाधा के चलते ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।

लापरवाही पड़ सकती है भारी

एक्सपक्र्ट्स के मुताबिक ब्रेन स्ट्रोक का इलाज समय रहते करवाना बहुत जरूरी हैजरा सी लापरवाही भारी पड़ सकती हैस्ट्रोक मैनेजमेंट के लिए थ्रोम्बोलाइसिस एक गेम चेंजर साबित हो सकता हैमरीज को स्ट्रोक पडऩे के एक घंटे के भीतर इलाज देना जरूरी होता हैजिससे नसों और अन्य बॉडी पार्ट्स को भी नुकसान को रोका जाता है.

स्ट्रोक के लक्षण

- देखने में तकलीफ होना

- बोलने और समझने में परेशानी

- चक्कर आना

- सिरदर्द होना

- कमजोरी महसूस होना

- चलने में दिक्कत

- उल्टी होना

- लकवा का खतरा

ब्रेन स्ट्रोक के बचाव

डॉक्टर्स के मुताबिक इससे बचाव के लिए स्ट्रेस फ्री रहना बहुत जरूरी हैइसके अलावा खानपान की आदतों में बदलाव कर भी इससे बचा जा सकता है

यूथ के लिए स्ट्रोक बहुत बड़ी मुसीबत बनकर सामने आ रही हैइसके पेशेंट लगातार बढ़ रहे हैंओपीडी में आने वाले कुल मरीजों में 30 हजार लकवा से पीडि़त हैइसमें 4 हजार से ज्यादा युवा वर्ग हैकिडनी की खराबी से भी लकवा होता हैलेकिन हम इसे बचा सकते हैंलेकिन इसके लिए हम सभी को जागरुक होना होगायूवाओं को हर छह माह में बीपी चेक करानी चाहिए

प्रोवीएन मिश्रा, एचओडी, न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट, बीएचयू

स्ट्रोक रिवर्सल प्रक्रिया में समय की महत्वपूर्ण भूमिका होती हैहर मिनट की देरी से दो मिलियन ब्रेन सेल्स का नुकसान हो सकता है, जिससे चलते समय पर इलाज बेहद जरूरी हैयुवाओं में स्ट्रोक का खतरा बढऩे के साथ उनमें लकवा के चांसेस लगातार बढ़ रहे हैंइन मामलों में सबसे बड़ी चुनौती तुरंत पहचान करने और इलाज शुरू करने में है

डॉविपुल गुप्ता, न्यूरोलॉजिस्ट, आर्टेमिस हॉस्पिटल