वाराणसी (ब्यूरो)। काशी में गंगा की तलहटी तक सफाई के लिए ट्रैश स्कीमर उतार दिया गया है। नदी में तैरते हुए यह बोट खुद-ब-खुद गंदगी का पता कर उसे साफ कर रही है। इसके चलते अब वाराणसी के घाटों पर स्वच्छता नजर आने लगी है.
पांच साल के लिए कांट्रैक्ट
गंगा में फेंके जाने वाले माला-फूल, अन्य पूजन सामग्री, प्लास्टिक और दूसरे कचरे को साफ करने के लिए नगर निगम ने मानव रहित बोट का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। यह ट्रैश स्कीमर एक तरह से रोबोटिक सिस्टम है। फिलहाल बड़ी यूनिट के लिए पांच साल के लिए करीब तीन करोड़ रुपये में कांट्रैक्ट हुआ है। पहले इसका पायलट प्रोजेक्ट नमामि गंगे के तहत हुआ था, जिसका परिणाम अच्छा नजर आया था.
आठ घंटे में 15 किमी का सफर
यह बोट इस समय आठ घंटे गंगा में चल रही है। एक तरफ से रविदास घाट से शुरू होकर राजघाट तक करीब साढ़े सात किलोमीटर चलती है, फिर वापस लौटती है। इस तरह 15 किलोमीटर रोज चलकर गंगा में सफाई कर रही है। स्टार्ट और एंड प्वाइंट के बीच काशी के सभी घाट साफ हो रहे हैं। आगे चलकर इस तरह के प्रयोग गंगा के अलावा वरुणा, अस्सी नदी समेत अन्य कुंड-तालाबों में भी होंगे.
किस तरह काम करती है बोट
आर्टिफिशल इंटेलिजेंस तकनीक के माध्यम से डेटा फीड कर दिए जाने से इस बोट में लगे कैमरे आधा किलोमीटर की दूरी तक गंगा में तैरते अवशिष्ट, प्लास्टिक उत्पाद आदि को ट्रेस करने के साथ ही उसे साफ करने का संकेत देते हैं। इसके बाद बोट में लगे उपकरण गंदगी को खींच लेते हैं। यह गंदगी गंगा से बाहर आ जाती है.
खुद भरती है ई-लॉगबुक
नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ। एनपी सिंह ने बताया कि इस बोट में जीपीएस लगा है। आधुनिक तकनीक के चलते यह बोट खुद ई-लॉगबुक भरती है। बोट कितनी चली, कितना ईधन खर्च हुआ और कितना कचरा उठाया, इसका पूरा ब्योरा मिल रहा है। अब इसे रात में भी चलाने की योजना है.
काशी में गंगा और अन्य नदियों को निर्मल बनाने के लिए यह सिस्टम कारगर है। फिलहाल पांच साल के लिए इस ट्रैश स्कीमर लिया गया है। जल्द ही प्रोजेक्ट को विस्तार दिया जाएगा। जी-20 मीटिंग के बाद से गंगा घाट साफ हो रहे हैं, जो धार्मिक नगरी में आने वाले श्रद्धालुओं की आस्था को और मजबूत करेंगे.
कौशल राज शर्मा, मंडलायुक्त, वाराणसी