महिलाओं को न्याय दिलाने की लड़ाई जारी रहेगी। लड़कियों की शिक्षा, अधिकार और सुरक्षा पर फोकस रहेगा। इन चीजों से मेरा लम्बा वास्ता रहा है। परिवार ने क्लास-8 के बाद मेरी पढ़ाई पर ब्रेक लगा दिया था। घर के कामकाज से खाली होने के बाद किताबें पढ़ती रही। 18 साल की हुई तो परिवार ने शादी कर दी। ससुराल में खुलने-मिलने के बाद काफी साहस जुटाकर मैंने आगे की पढ़ाई करने की बात रखी। यह सुनते ही ससुराल में हो-हल्ला होने लगा। मैं भी थोड़ी डर गयी और गुमसुम रहने लगी। वह दिन आज भी मुझे याद है। रात करीब आठ बजे कारखाने से मेरे पति आए और पूछा कि स्कूल जाएंगी। यह सुनते ही मैं अवाक रह गई। मेरे चेहरे की मुस्कान देखते हुए उन्होंने एक शर्त रखी कि पढ़ाई के लिए चंदौली जाना होगा। बिना कुछ सोचे-समझे मैंने हां बोल दिया। फिर क्या संघर्ष की दास्तां शुरू हो गई। हर दिन अकेली सामनेघाट से चंदौली जाती थी। वहीं से ग्रेजुएशन भी किया। इसके बाद पढ़ाई से वंचित लड़कियों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया। अब तक चार सौ से अधिक लड़कियों को स्कूल का रास्ता दिखाया है। इस दौरान कई बार लड़कियों के परिजनों से कहासुनी भी हुई। बहुत कुछ खरी-खोटी भी सुनने को मिला, लेकिन मिशन जारी रहा। कई बार कानूनी अड़चनों का सामना करना पड़ा। इसलिए मैंने काशी विद्यापीठ से एलएलबी किया। वर्तमान में हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रही हूं। महिलाओं और लड़कियों को फ्री में काननूी सलाह देती हूं और उनकी लड़ाई भी लड़ती हूं। महिलाओं की बात सरकार तक पहुंचाने के इरादे से दो बार रोहनियां विधानसभा से चुनाव भी लड़ी, लेकिन सफलता नहीं मिली। महिलाओं को न्याय और लड़कियों की शिक्षित कराने का अभियान जारी रहेगा।
-संगीता विश्वकर्मा, अधिवक्ता