वाराणसी (ब्यूरो)।
सीन 1 : शाम 5 बज रहे थे। हनुमान चबूतरा के पास स्थित पूर्व सैनिक सेवा समिति गहमर की बिल्डिंग में रिटायर सैनिकों का जमावड़ा लग रहा था। वर्ष 1983 में स्थापित संस्था में करीब तीन हजार सदस्य हैैं और प्रत्येक रविवार को समिति की बैठक कार्यालय में होती है। यहां 50 से 96 साल तक के लोग जुटे थे। सभी गांव और सैनिकों की विभिन्न समस्याओं सहित अन्य मामलों पर विचार कर रहे थे। ये लोग गांव के लड़कों को सेना में बहाली के लिए आवश्यक तैयारी में भी मदद करते हैैं.
सीन 2 : एशिया का सबसे बड़ा गांव गहमर। शाम छह बजे का समय। मां गंगा किनारे मठिया मैदान पर सैनिक बहुल्य इस गांव के युवाओं के आगमन के साथ ही सन्नाटा खत्म होता है। एक-एक कर युवाओं के कदम मैदान में पडऩे शुरू होते हैं। थोड़ी देर बाद अच्छी खासी संख्या में युवा इक_ा होते हैं। इस दौरान युवा मैदान का कई चक्कर लगाने में लग जाते हैं। उन्हें कुछ दिख रहा तो सिर्फ सेना की वर्दी को अपने तन पर पहननेे के सपने को हर हाल में साकार करना, जिसके लिए वह दिन-रात पसीना बहा रहे हैं.
वाराणसी। गाजीपुर जिले के गहमर गांव की फौजियों के गांव के नाम से ख्याति है। यहां के लोग गांव की आबादी एक लाख 30 हजार बताते हैं। देश की सरहद पर यहां से सैनिक से लेकर कर्नल तक करीब 15 हजार लोग तैनात हैं और करीब दस हजार रिटायर हैं। गांव में शायद ही कोई घरहोगा, जिस परिवार में कोई सैनिक न हो। युवाओं के लिए सैनिक भर्ती की तैयारी के लिए दो ग्राउंड बुलाकीदास बाबा मठिया और डुबुकिया बाग है। सबसे अधिक युवा मठिया ग्राउंड में तैयारी करते हैं। यहीं से हर भर्ती में पांच से आठ युवा सेना में भर्ती भी होते हैं। यहां दौड़ लगाने वाले युवाओं के कई बैच हैं.
शहर जैसी फीलिंग
गहमर भले ही गांव हो, लेकिन यहां शहर जैसी फीलिंग आती है। तमाम सुविधाएं हैं। गांव का हर रोड पिच रोड है। हर घर पक्का है। यहां टेलीफोन एक्सचेंज, दो डिग्री कॉलेज, दो इंटर कॉलेज, दो उच्च विद्यालय, दो मध्य विद्यालय, पांच प्राथमिक विद्यालय, स्वास्थ्य केंद्र आदि हैं। इसके अलावा यूनियन बैैंक की दो ब्रांच, एसबीआई, एचडीएफसी व बंधन बैैंक की एक-एक ब्रांच है। यहां कोतवाली भी है.
गहवन से बना गहमर
भूतपूर्व सैनिक सेवा समिति गहमर के अध्यक्ष सूबेदार मार्कंडेय सिंह का कहना है कि यहां के पूर्वज फतेहपुर सीकरी के रहने वाले थे। वहां से आकर यहां बस गए। उस समय इस गांव का नाम गहवन था। यानि घना वन वाला गांव। बाद में यहां के लोगों ने सर्वसम्मति से नाम बदलकर गहमर रख दिया.
पश्चिम में मां कामाख्या
गांव की खासियत ये है कि पूरब में कर्मनाशा नदी हैै, जोकि यूपी व बिहार को डिवाइड करती हैै। वहीं, पश्चिम में मां कामाख्या मंदिर है, जिसकी पूरे जिले में मान्यता है। दक्षिण की तरफ हावड़ा से नई दिल्ली ट्रेन लाइन पर गहमर स्टेशन स्थित है तो उत्तर की तरफ गंगा नदी बहती है.
अंतिम बार 1989 में हुई थी भर्ती
इस गांव में सेना के अधिकारी आकर युवाओं की भर्ती करते थे। इसके लिए खुद फौज के अधिकारी आते थे। अंतिम बार 1989 में मठिया मैदान से बंगाल रायफल के कर्नल राम सिंह आकर 150 युवाओं को भर्ती कर ले गए थे। इसके बाद से यहां भर्ती बंद है.
स्थायी भर्ती भी हो
भूतपूर्व सैनिक शिवानंद सिंह का कहना है कि अग्निवीर के साथ-साथ स्थायी भर्ती बंद नहीं होनी चाहिए। चार साल में से एक साल तो ट्रेनिंग व अवकाश में बीत जाएगा। सेना से आने के बाद अग्निवीरों के लिए परिवार का भरण पोषण का संकट होगा। सरकार इसे बढाकर कम से कम आठ साल करे.
सेना में चार पीढ़ी
गांव का जैसा नाम, वैसा ही यहां देखने को भी मिला। तीन पीढिय़ों वाले परिवार तो कई हैैं। वहीं, एक परिवार चार पीढिय़ों से देश की सेवा कर रहा है। पूर्व सैनिक रामफली सिंह, उनका बेटा हरिशंकर सिंह, पोता संतोष कुमार सिंह के बाद परपोता अंकुश कुमार सिंह लेफ्टिनेंट के पद पर कार्यरत हैैं। इसके अलावा पूर्व सैनिक अमरनाथ सिंह, बेटा बिरभान सिंह के बाद अंशु सिंह सेना में हैैं। वहीं पूर्व सैनिक खेदू सिंह, बेटा बीर बहादुर सिंह व पोता बिपुल सिंह ने भी सेना में भर्ती होकर नाम कमाया है। ऐसे कई परिवार यहां पर हैैं, जो कई पीढिय़ों से सेना में हैैं.
मांगों पर भी करें गौर
रिटायर सैनिकों ने बताया कि अपने गांव पर हमें गर्व है, लेकिन कुछ कमियां भी हैैं। यहां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) पर डॉक्टर नहीं हैैं तो लॉकडाउन से पहले रेलवे स्टेशन पर रुकने वाली ट्रेनों का ठहराव अब तक नहीं हुआ है। इसमें गरीब रथ, भगत की कोठी व मगध एक्सप्रेस है, जिनका यहां पर ठहराव होना जरूरी है.
एक नजर में गहमर गांव
- 40 किमी। गाजीपुर जिले से दूरी पर गहमर गांव स्थित है.
- 1 एक रेलवे स्टेशन है, जो पटना और मुगलसराय से जुड़ा है.
- 15 हजार फौजी भारतीय सेना में जवान से लेकर कर्नल तक के पद पर हैं.
- 10 हजार से अधिक भूतपूर्व सैनिक इस गांव में हैं.
- 8 वर्गमील में बिहार-यूपी की सीमा पर बसा है गांव.
- 1.30 लाख आबादी वाला यह गांव 22 पट्टïी में बंटा है
विश्व युद्ध से लेकर कारगिल में लिया था भाग
- प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध हो या 1965 या फिर 1971 का युद्ध या कारगिल की लड़ाई, यहां के फौजियों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। विश्वयुद्ध के समय में अंग्रेजों की फौज में गहमर के 228 सैनिक शामिल थे, जिनमें 21 मारे गए थे। इनकी याद में गांव में एक शिलापट्टï भी लगा है.
- गहमर के भूतपूर्व सैनिकों ने पूर्व सैनिक सेवा समिति नामक संस्था बनाई है। गांव के युवक कुछ दूरी पर गंगा तट पर सुबह-शाम सेना की तैयारी करते नजर जाते हैं। यहां के युवकों की फौज में जाने की परंपरा के कारण ही सेना गहमर में ही भर्ती शिविर लगाया करती थी.
-1989 में इस परंपरा को बंद कर दिया गया और अब यहां के लड़कों को सेना में भर्ती होने के लिए लखनऊ, रूड़की, सिकंदराबाद जाना पड़ता है। भारतीय सेना ने गहमर गांव के लोगों के लिए सैनिक कैंटीन की भी सुविधा उपलब्ध कराई थी.
- जिसके लिए वाराणसी आर्मी कैंटीन से सामान हर महीने गहमर गांव भेजा जाता था, लेकिन पिछले कई सालों से यह सेवा बंद है.