वाराणसी (ब्यूरो)। वाराणसी: अलग-अलग भंगिमा में 'सेल्फीÓ लेकर सोशल मीडिया पर डालने का शगल लगातार जानलेवा साबित हो रहा है। खासकर नौजवान एक अच्छी 'सेल्फीÓ के लिए कुछ भी करने को बेताब हैं। तमाम नियम-कायदों की अनदेखी करते हुए कहीं वे चलती ट्रेन के आगे 'सेल्फीÓ लेने के लिए जान जोखिम में डालते दिखते हैं, तो कहीं अन्य खतरनाक जगहों पर। वाराणसी में गंगा नदी में बीते दिनों आगरा की एक महिला सेल्फी लेते समय डूब गई। पर डॉक्टर्स के अनुसार यह एक बीमारी है। एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि सेल्फी लेने के दौरान जितने भी लोगों की मौत हुई, उनमें युवाओं की संख्या करीब तीन-चौथाई है। साइकोलॉजिस्ट का कहना है कि इससे युवा डिप्रेशन का भी शिकार हो रहे हैं।
सेल्फी से मानसिक बीमारी
अगर आपको सेल्फी लेने की आदत है तो ये एक तरह की मानसिक बीमारी का लक्षण भी है। बीएचयू के मुताबिक, दिनभर सेल्फी लेते रहना एक तरह का ऑब्सेशन है और ये आपको बाहरी दुनिया से काटकर सेल्फ सेंटर्ड बना सकता है। सेल्फी की दीवानगी हर उम्र के लोगों को है, लेकिन टीनेज और यंग ग्रुप्स के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक है।
यूथ कुंठा और हीनभावना का शिकार
सेल्फी की सनक युवाओं को कुंठा और हीनभावना का शिकार भी बना रही है। इस सनक को दुनिया भर में 'सोशल मीडियाÓ ने बढ़ावा दिया है। मनोचिकित्सकों ने 'सेल्फीÓ को एक मनोरोग मान लिया है। उनके मुताबिक 'सेल्फाइटिसÓ एक ऐसी स्थिति है, जिसमें व्यक्ति 'सेल्फीÓ लेकर सोशल मीडिया पर नहीं डालता तो उसे बेचैनी होने लगती है।
फ्लैश लाइट, विजुअल पैटर्न से पड़ते दौरे
एक रिसर्च के मुताबिक, जो लोग बहुत ज्यादा सेल्फी लेते हैं। वे सेल्फी-एपिलेप्सी यानि मिर्गी का शिकार हो सकते हैं। मिर्गी के एक प्रकार को फोटो सेंसिटिविटी एपिलेप्सी कहा जाता है, लेकिन ये मिर्गी के कुल केस का सिर्फ 3 फीसदी है और इसके बारे में लोग ज्यादा जानते नहीं हैं। इस रोग से पीडि़त व्यक्तियों को फ्लैश लाइट, प्राकृतिक रोशनी और यहां तक कि विजुअल पैटर्न से भी दौरे पड़ सकते हैं। ये खासतौर पर बच्चों, टीनएजर्स में पाया जाता है और जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है ये परेशानी कम होती जाती है। स्टडी के मुताबिक जो लोग फोटो सेंसिटिविटी मिर्गी से पीडि़त होते हैं उन्हें ब्राइट फ्लैश की वजह से दिक्कत हो सकती है और वो 'सेल्फी-एपिलेप्सीÓ का शिकार हो सकते हैं। बेशक, सेल्फी एक फन एक्टिविटी है, लेकिन ये आपके लिए डेंजर ना बन जाए। इसके लिए सावधानियां जरूर बरतें।
डिप्रेशन का भी हो रहे शिकार
साइकोलॉजिस्ट का कहना है कि रील्स बनाना एक प्रकार की लत है। इससे बचने की जरूरत है। वर्चुअल दुनिया लोगों को शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से बीमार कर रही है। रील्स भी सोशल मीडिया एडिक्शन का ही एक हिस्सा है। यह 15 से 35 साल तक के युवाओं में ज्यादा होता है। ऐसे लोग रील्स के फॉलोअर्स को ही अपना दोस्त मानने लगते हैं। वर्चुअल दोस्त को ही असली मानने लगते हैं, जिसकी वजह से वह डिप्रेशन का भी शिकार हो जाते हैं।
एम्स और आईआईटी कानपुर की स्टडी
नई दिल्ली स्थित एम्स तथा आईआईटी कानपुर के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन के आधार पर अक्टूबर 2011 से 2017 के बीच दुनिया भर में सेल्फी लेने के दौरान 259 मौतें हुई, जिनमें से 158 मौते भारत में हुई थी। एक अध्ययन में ये भी खुलासा हुआ की सबसे ज्यादा सेल्फी महिलाएं लेती है। और सबसे खतरनाक जगहों पर सेल्फी लेने के दौरान जितने भी लोगों की मौत हुई, उनमें युवाओं की संख्या करीब तीन चौथाई है, जिनकी मौत का कारण पानी में डूबना, ट्रेन की टक्कर, ऊंचाई से गिरना और अन्य घटनाएं है।
फैक्ट एंड फीगर
- सोशल मीडिया एडिक्शन के 15 से 35 साल के लोग ज्यादा शिकार।
- वाराणसी में सबसे ज्यादा मौतें हुई गंगा में नहाते हुए या किनारों पर बैठ कर सेल्फी लेने में।
- सबसे ज्यादा 20 से 30 वर्ष के लोगों को डिप्रेशन की ज्यादा समस्या, जो की सोशल मीडिया एडिक्शन के शिकार हैं।
- सेल्फी लेने में महिलाएं सबसे आगे।
- 2011 से 2017 के बीच दुनिया भर में सेल्फी लेने के दौरान 259 मौतें हुई, जिनमें से 158 मौते भारत में हुईं।
- इन मौतों में युवाओं की संख्या करीब तीन चौथाई है।
- मौत का कारण पानी में डूबना, ट्रेन की टक्कर, ऊंचाई से गिरना और अन्य घटनाएं शामिल हैं।
अलग दिखने व लोकप्रियता की चाहत स्वाभाविक है, लेकिन इसका हद पार कर जाना मानसिक बीमारी है। इसमें किशोर व युवा दुस्साहस दिखाते हैं। सेल्फी व रील आदि को लाइक-कमेंट नहीं मिलने पर वे डिप्रेशन के शिकार तक हो जाते हैं।
डॉ। संजय गुप्ता, मनोवैज्ञानिक बीएचयू
रील्स और सेल्फी लेना भी सोशल मीडिया एडिक्शन का ही एक हिस्सा है। यह 15 से 35 साल तक के युवाओं में ज्यादा होता है। ऐसे लोग रील्स के फॉलोअर्स को ही अपना दोस्त मानने लगते हैं, जिसकी वजह से वह डिप्रेशन का भी शिकार हो जाते हैं।
डॉ। एके झबर, साइकोलॉजिस्ट