वाराणसी (ब्यूरो)। किसी सार्वजनिक आयोजन के लिए पुलिस से अनुमति लेना अनिवार्य है। अनुमति के लिए अक्सर आयोजक गलत जानकारी देते हैं। पुलिस व प्रशासन इसे सही मान लेता है, अपने स्तर से गहनता से जांच नहीं करता है और हाथरस जैसा हादसा हो जाता है। आठ साल पहले राजघाट पुल पर मची भगदड़ में 25 लोगों की मौत की वजह भी गलत जानकारी बनी थी। आयोजन पर पुलिस की निगरानी न होना भी बड़ी वजह रही।
एडीसीपी देते हैं अनुमति
नियमों के मुताबिक सार्वजनिक स्थल पर होने वाली जनसभा, रैली, जुलूस, सत्संग, कथा प्रवचन, शूङ्क्षटग आदि जिसमें भीड़ जुटनी है, उसकी अनुमति लेना अनिवार्य है। वाराणसी पुलिस कमिश्नरेट में इसके लिए एडिशनल पुलिस कमिश्नर को आवेदन पत्र देना होता है। कार्यक्रम के आयोजक की ओर से दिए गए आवेदन में तिथि, समय, स्थान और उसमें शामिल लोगों की संख्या बतानी होती है। जुलूस, शोभायात्रा हो तो उसका रूट भी बताना होता है। इसके साथ ही आयोजक यह भी जानकारी देता है कि आयोजन की व्यवस्था में कितने वालंटियर लगे हैं। आवेदक को अपनी फोटो और परिचय पत्र देना होता है। यह आवेदन स्थल के क्षेत्र के डीसीपी, एडीसीपी, एसीपी से होते स्थानीय थाने और चौकी पर जांच के लिए पहुंचता है। वहीं, एक ओर से एलआईयू भी इसकी जांच करता है। आवेदक की दी गई जानकारी का वेरिफिकेशन करने के बाद चौकी से होते उसी क्रम में वापस एडिशनल पुलिस कमिश्नर के कार्यालय में पहुंचता है। इसके बाद आवेदक को अनुमति पत्र दिया जाता है।
गलत जानकारी पर रद हो सकती है अनुमति
अनुमति पत्र में साफ हिदायत होती है कि दी गई जानकारी गलत पाए जाने पर यह स्वत: समाप्त हो जाती है। आवेदक की दी गई जानकारी के आधार पर ही सुरक्षा या ट्रैफिक के लिए पुलिस व्यवस्था करती है। अनुमति में किसी तरह की परेशानी से बचने के लिए आवेदक खासतौर पर आयोजन में शामिल होने वालों की संख्या की गलत जानकारी देता है। उसे लगता है कि यदि वह संख्या ज्यादा दिखाएंगे तो सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए पुलिस अनुमति देने से इन्कार कर सकती है। जबकि वास्तव में आवेदक की दी गई जानकारी के आधार पर पुलिस पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था करती है। गलत जानकारी देने पर कोई हादसा होता है तो उसे संभालना मुश्किल होता है। पुलिस की तरफ से गड़बड़ी यह होती है कि वह अनुमति के नियमों का सख्ती से पालन नहीं कराती। आयोजन में शामिल होने वालों की संख्या बढऩे या आयोजन स्थल, जुलूस, शोभायात्रा में हादसे की आशंका के बावजूद उसे रोकने का प्रयास नहीं करती। अनुमति देते समय भी आयोजन की गहनता से जांच नहीं करती है।
3 हजार की परमिशन, राजघाट पहुंचे थे 25 हजार
जय गुरुदेव धर्म प्रचारक संस्था की ओर से 15 अक्टूबर 2016 को निकाली गई जनजागरण शोभायात्रा के दौरान राजघाट पुल पर मची भगदड़ में 25 अनुयायियों की मौत हो गई थी और 100 से अधिक श्रद्धालु घायल हुए थे। घटना की जांच सेवानिवृत्त न्यायाधीश राजमणि चौहान के नेतृत्व में कमेटी ने की थी। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि जय गुरुदेव सत्संग व शोभायात्रा के आयोजकों ने प्रशासन से जो अनुमति ली थी, उसमें महज तीन हजार लोगों के इक_े होने की बात कही गई थी। लेकिन शोभायात्रा में 25 हजार से अधिक श्रद्धालु पहुंचे थे। शोभायात्रा तय समय से दो घंटे पहले सुबह आठ बजे शुरू कर दी गई थी। प्रशासन ने आयोजकों से कुछ सेवादारों के नाम भी बताने को कहा था लेकिन उन्होंने नाम नहीं बताया। शोभायात्रा में श्रद्धालुओं की गलत संख्या की जानकारी की वजह से ट्रैफिक पुलिस की ओर से पर्याप्त व्यवस्था नहीं गई थी। ऐसे हादसे रोकने के लिए आयोग ने जांच रिपोर्ट में सुझाव भी दिए। बताया कि किसी बड़े कार्यक्रम की अनुमति देने से पहले व्यवस्था की जांच की जाए। कार्यक्रम के बारे में स्थानीय पुलिस को न सिर्फ बताया जाए बल्कि उनकी जिम्मेदारी भी तय की जाए। ट्रैफिक व्यवस्था दुरुस्त रखी जाए। आवश्यकता पडऩे पर रूट डायवर्जन किया जाए।