वाराणसी (ब्यूरो)। प्राण की रक्षा करने वाला प्राण हरने या किसी आपत्ति से बड़ा होता है, क्योंकि रक्षा करने वाला जीवन प्रदान करता है। इसलिए वह जीवन दाता या फिर देवदूत हुआ। घाट किनारे ड्यूटी निभाने वाले पुलिस व एनडीआरएफ के जवान हों या वहां रहने वाले मल्लाह। वे लहरों के देवदूत से कम नहीं हैं। इनकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है। एक दिन पहले ही जल पुलिस ने तुलसीघाट पर डूबने से दंपति को बचाया था। सोमवार को फिर दिल्ली से आया व्यक्ति तुलसीघाट पर स्नान करते वक्त डूबने लगा तो जल पुलिस के जवानों ने तत्परता दिखाकर उनकी जान बचाई। पिछले तीन सालों में जान पर खेलकर अब तक 140 से अधिक लोगों की जान बचा चुके हैं। कंपकंपाती सर्दी हो या फिर तपिश भरी गर्मी या फिर बाढ़ का समय, अपने जान की परवाह किए बिना जब कोई हादसा होता है तो लोगों की जान बचाने के लिए गंगा में छलांग लगाते हैं।
डेडबॉडी निकालने में अहम भूमिका फोटो
दुर्गा साहनी को लोग गोताखोर के नाम से भी जानते हैं, क्योंंकि वह अब तक कई लोगों की जान बचा चुके हैं। इसके लिए उनको इनाम भी मिला है। वह बताते हैं कि गंगा नदी में किसी की लाश नहीं मिलती है तो खोजने के लिए अन्य जिलों से भी बुलाया जाता है। जिले के पुलिस अधिकारी के बुलाने पर जाना पड़ता है। 15 से अधिक लाश को अब तक खोज चुके हैैं।
बलिया, आजमगढ़ भी जाते हैैं
गोताखोर बुद्धन मांझी का कहना है कि नदियों में लाश को ढूंढने के लिए बलिया, आजमगढ़, बक्सर, पटना तक जा चुके हैं। गोता लगाकर एक-दो दिन नहीं तीन-तीन दिन तक पानी में लाश को ढूंढते बीता है। कंपकंपाती ठंड में डेडबॉडी को ढूंढने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। मणिकर्णिका घाट के पास भी चार लोगों की लाश को ढूंढ चुके हैं। लाश ढूंढने के लिए तो कुआं, पोखरा में भी उतरना पड़ता है।
यूथ ज्यादा करते हैं आत्महत्या
गोताखोर दुर्गा साहनी का कहना है कि मालवीय पुल हो या फिर सामने घाट वाला पुल, आए दिन लोग कूदकर आत्महत्या करते हैं। कई तो घाट किनारे से ही कूद जाते हैं। ऐसे में हम लोग घाट पर ही रहते हैं। कूदते ही हम लोग भी जान बचाने के लिए छलांग लगाते हैं। बचाने के बाद भी कई लोग दोबारा कूदने जाते हैं। मना करने पर नहीं मानते हैं तो उनसे सख्ती से पेश आना पड़ता है, तब जाकर वह मानते हैं।
140 लोगों की बचा चुके जान
जल पुलिस के प्रभारी मिथिलेश कुमार यादव का कहना है कि एनडीआरएफ की मदद से पिछले ढाई सालों में 140 लोगों की जान बचाई गई है। ऐसे भी हर महीने 4 से 5 हादसे होते हैैं। इनमें सबसे अधिक यूथ होते हैं। ज्यादातर जिंदगी से तंग आकर, पारिवारिक कलह, प्रेम प्रपंच आदि समस्याओं से परेशान होकर ऐसा कदम उठाते हंै।
ये घाट हैैं डेंजरस
प्रह्लादघाट, तुलसीघाट, अस्सी घाट, ललिता घाट, मुंशी घाट, बूंदी परकोटा घाट, गायघाट, रानीघाट, शक्काघाट, चेतसिंह किला, शिवाला, हरिश्चंद्र घाट समेत कई घाट डेंजरस हैं।
यहां लगे थे चेतावनी बोर्ड
अस्सी, शिवाला, तुलसीघाट, नमोघाट, भैंसासुर घाट, मणिकर्णिका घाट, राजेन्द्र प्रसाद घाट, रानीघाट।
लोगों की जान बचाने में जल पुलिस के साथ एनडीआरएफ की टीम लगती है तब जाकर हादसों पर कंट्रोल होता है। हर महीने 4 से 5 लोगों के डूबने की खबर आती है।
मिथिलेश यादव, प्रभारी, जल पुलिस
लाश ढूंढने के लिए अब तक बलिया, आजमगढ़, गाजीपुर और बक्सर तक जा चुके हैं। कई लोगों की जान भी बचा चुके हैं, लेकिन गोताखोरों को कोई पूछता नहीं है।
दुर्गा साहनी, गोताखोर
कंपकंपाती ठंड हो या फिर तपिश का मौसम, पुलिस द्वारा बुलाया जाता है तो जाना पड़ता है। इसके बाद भी प्रशासन हम लोगों के बारे में नहीं सोचता।
कल्लू साहनी, गोताखोर
फैक्ट एंड फीगर
80 के करीब गोताखोर कर रहे हैैं काम
45 लोगों की वर्ष 2022 में बचाई गई जान
50 लोगों की वर्ष 2023 में बची जान
45 लोग वर्ष 2024 में बचाए गए