वाराणसी (ब्यूरो)। भारत 2030 तक मलेरिया उन्मूलन का लक्ष्य बना रहा है। काशी ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाए हैं। डिस्ट्रिक्ट में पहले की तुलना में भले ही मलेरिया के केस कम हो रहे हों, लेकिन मच्छरों की ताकत में कमी नहीं आई है। एक्सपर्ट मान रहे हैं कि जलवायु में आने वाले बदलावों ने मच्छरों को ज्यादा आक्रामक बना दिया है। एक रिसर्च के मुताबिक मलेरिया का मच्छर पहले की तुलना में ज्यादा खतरनाक और जानलेवा हो गए हंै। वर्तमान में मलेरिया की जो दवाएं हैं। वे मानव पर बेअसर हो रही हैं। इसे लेकर बीएचयू में की जा रही रिसर्च में पाया गया कि आर्टिमिसिया अनुआ के पौधे से बनी दवा मलेरिया में काफी असरदार है। अनुआ की पत्तियों में मलेरियारोधी तत्व हैं। इससे खाने की गोली व इंजेक्शन तैयार किए जाते हैं। लेकिन यह ज्यादातर चीन में ही पाया जाता है। यहां इसका उत्पादन कम होने से मांग पूरी नहीं हो पा रही है। लिहाजा अब एक्सपट्र्स ने कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं।
2006 से रिसर्च जारी
वनस्पति विज्ञान विभाग की पर्यावरण समन्वयक प्रो। शशि पांडेय ने बताया ने बताया, मलेरिया प्लाज्मोडियम से होता है। पहले और वर्तमान में जो भी दवाएं हैं। वे अब हृयूमन बॉडी पर बेअसर हो रही हैं। इस पर डब्ल्यूएचओ ने साफ किया है कि ऐसा इसलिए हो रहा है कि मरीज एक ही तरह की दवाएं लेते रहते हैं, जिसकी वजह से ठीक से रजिस्टेंस डेवलप नहीं हो पाती है। इससे बाहर आने के लिए हम लोगों को आर्टिमिसिया अनुआ पर काम करने का सुझाव दिया गया। इस पर बीएचयू में 2006 से रिसर्च चल रही है। साथ ही इसके 24 से अधिक शोध पत्र इंटरनेशनल जरनल्स में प्रकाशित किए जा चुके हैं।
आर्टिमिसिया अनुआ डेवलप करने की दिशा में प्रयास
आर्टिमिसिया अनुआ की लगभग 100 प्रजातियां ज्ञात हैं, जिसमें च्च्अनुआच्च् सबसे खास है। अर्टिमिसिनिन, एक शक्तिशाली प्राकृतिक शाकनाषी के रूप में व्यापक है। आर्टिमिसिया, अनुआ प्रजाति में ही पाया जाता है। लेकिन यह बहुत कम मात्रा में पाया जाता है। यह मूलत: ग्रन्थिल रोमों में मिलता है। ऐसा पाया गया है कि अन्य मलेरियारोधी जैसे मैफ्लोक्वीन और प्रीमाक्वीन आरटी क्लोरोक्वीन आदि दवाएं जिन प्लाजमोडियम स्ट्रेन पर प्रभाव शून्य होती हैं। उन पर आर्टीमिसिनिन औषधि प्रभावी हैं। आर्टीमिसिनिन के विभिन्न गुणों को देखते हुए पूरे वल्र्ड में में इसके उत्पादन की वृद्धि के लिए प्रयास हो रहे हैं। बीएचयू के विज्ञान संकाय के वनस्पति विज्ञान विभाग में भी इस पौधे की नयी उच्च किस्में जिनसे आर्टीमिसिनिन का उत्पादन ज्यादा हो, उसे विकसित करने की दिशा में प्रयास किया जा रहा हैं।
सिटी के 34 हॉट स्पॉट
जिला मलेरिया अधिकारी (डीएमओ) शरद चंद पाण्डेय ने बताया कि जिले की आबादी के अनुसार मच्छरों का घनत्व जितना कम होगा। मलेरिया से उतने ही अधिक सुरक्षित होंगे। वर्तमान में सभी हॉट स्पॉट में हाउस इंडेक्स एक से कम है, जो सामान्य स्थिति में है। बारिश में लार्वा अधिक पनपते हैं। लार्वा न पनपें, इसके लिए प्रत्येक स्तर पर कार्यवाही की जा रही है। इसमें स्वास्थ्य विभाग के साथ-साथ नगर निगम, पंचायती राज, सिंचाई, जल निगम एवं जलकल विभाग समन्वय बनाकर कार्यवाई कर रहे हैं। मलेरिया व डेंगू के लिए पूर्व से चिन्हित ग्रामीण के 27 व शहर के 34 हॉटस्पॉट क्षेत्रों में विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
ये हैं लक्षण
1. मलेरिया का प्रसार मादा एनाफिलीज मच्छर के काटने से होता है। एक अंडे से मच्छर बनने की प्रक्रिया में पूरा एक सप्ताह का समय लगता है।
मलेरिया हो जाने पर रोगी को ठंड देकर नियमित अंतराल पर बुखार आना, सिरदर्द, उल्टी, पेट में दर्द, रक्त अल्पता, मांस पेशियों में दर्द, अत्यधिक पसीना आना आदि लक्षण दिखाई देते हैं।
ऐसे करें बचाव
1. सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करें.
2. आसपास दूषित पानी इक_ा न होने दें।
3. साफ-सफाई रखें । बुखार होने पर तुरंत अच्छे डॉक्टर को दिखाएं।
4. जलपात्र को सप्ताह में एक बार जरूर खाली कर दें जैसे कूलर, गमला, टीन का डिब्बा आदि।
इतनी मशीनरी कर रही है काम
एसीएमओ व नोडल अधिकारी डॉ। एसएस कनौजिया ने बताया, सभी सीएचसी, पीएचसी व आयुष्मान आरोग्य मंदिर के सीएचओ को निर्देशित किया गया है कि समय पर मलेरिया की जांच व पहचान कर मरीज को निर्धारित समय तक उपचार दिया जाये। इसके लिए समस्त 212 सीएचओ व 2633 आशाओं को प्रशिक्षित किया गया है। मलेरिया की जांच व उपचार की सुविधा जिला मुख्यालय के अलावा सभी शहरी व ग्रामीण सीएचसी, पीएचसी, आयुष्मान आरोग्य मंदिर में है।
एक नजर में मलेरिया केस
2017 - 406
2018 - 340
2019 - 271
2020 - 46
2021 - 164
2022 - 78
2023 - 26
2024 - 1
मलेरिया में टेस्टिंग
वर्ष जांच
2021 -- 34,688
2022 - 1.16 लाख
2023- 1.67 लाख
2024- 43,503
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वर्जन
आर्टिमिसिया अनुआ की पत्तियों में मलेरियारोधी तत्व मौजूद हैं। इसको लेकर बीएचयू में 2006 से रिसर्च चल रही है। इससे खाने की गोली व इंजेक्शन तैयार किए जाते हैं। इसका उत्पादन कम होने से मांग पूरी नहीं हो पा रही है। पौधे की उत्पादन क्षमता बढ़ा कर कमी पूरी की जा सकती है। इसके लिए हम सभी कांट्रेक्ट फार्मिंग के लिए प्रयासरत हैं।
प्रो। शशि पांडेय, पर्यावरण समन्वयक, डिपार्टमेंट ऑफ बॉटनी बीएचयू
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बनारस में पिछले 7 साल से मलेरिया के मरीजों में कमी आ रही है। जांच का दायरा बढऩे से केसेस कम हो रहे हैं। पिछले साल जहां सिर्फ 26 केस मिले, वहीं इस साल अब तक एक भी केस नहीं आए हैं, जबकि 48 हजार से ज्यादा जांचें की जा चुकी हंै। रोकथाम के लिए 10 विभाग काम कर रहे हैं।
शरद चंद्र पांडेय-जिला मलेरिया अधिकारी