वाराणसी (ब्यूरो)आजमगढ़ 13 वर्ष तक बेड़ियों में जकड़े रहने के बाद शनिवार को मुड़ियार गांव का आलम आजादी की सांस ले सका। सालों से जानकारी होने के बाद भी मोहल्ले वाले चुप्पी साधे हुए थे। शनिवार को एसडीएम संत रंजन को जब इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने न केवल उसे बेड़ियों से आजाद कराया, बल्कि उसके लिए पेंशन और इलाज की भी समुचित व्यवस्था सुनिश्चित करने के निर्देश दिए। आलम के पिता बदरुद्दीन ने बताया कि वह मानसिक रूप से दिव्यांग है। घर वालों के साथ मारपीट करता रहता था। हालांकि, बाहर के लोगों के साथ उसका व्यवहार ठीक रहता था। इससे तंग आकर उसे बेड़ियां लगाई गई थीं। इलाज कराने की कोशिश की गई, लेकिन उसकी हालत नहीं सुधरी। इस समय आलम की उम्र 29 वर्ष हो चुकी है।

बदरुद्दीन ने बताया कि 12 वर्ष की उम्र होने पर उसकी गतिविधियों से स्वजन परेशान रहने लगे। कभी वह टावर पर चढ़ जाता था तो कभी घर और पड़ोस के बच्चों के साथ मारपीट करने लगता था। पिता बदरुद्दीन की मानें तो मंडलीय जिला अस्पताल के अलावा निजी चिकित्सक के यहां इलाज कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इसके बाद बेड़ी लगाने का फैसला लिया। घर के लोग भोजन दे देते थे। किसी तरह दैनिक दिनचर्या हो पाती थी। लगभग पांच साल पूर्व जब बेड़ियों के रगड़ से दोनों पैरों में घाव हो गए तो पिता ने उसे निकाल कर हाथों में डाल दिया। एसडीएम निजामाबाद संत रंजन क्षेत्र में भ्रमण पर थे। इसी बीच किसी ने पूरे प्रकरण से अवगत कराया। फिर एसडीएम मुड़ियार गांव पहुंचे और उसे बेड़ियों से मुक्त कराते हुए उसके इलाज और ठीक हो जाने के बाद मनरेगा रोजगार की भी व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए संबंधित को संबंधित को निर्देश दिए।

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बदरुद्दीन की दूसरी पत्नी का बेटा है आलम

बदरुद्दीन की दो शादी हुई थी। दोनों पत्नियों का निधन हो गया है। पहली पत्नी से दो पुत्र मोहम्मद शाहिद, मोहम्मद अब्दुल्लाह (कलाम) और तीन पुत्रियां हैं। जबकि, दूसरी पत्नी से तीन पुत्र शाहिद, राशिद, आलम और दो पुत्रियां हैं।

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मोआलम के नाम बना है आयुष्मान कार्ड

मोआलम के पिता बदरूद्दीन कि आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण बेटे का इलाज नहीं करा सके। पहले इलाज कराया गया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ, लेकिन यह बात कहीं से गले से नहीं उतर रही है। क्योंकि, खुद मानसिक रूप से दिव्यांग आलम के नाम आयुष्मान कार्ड बना है, जिस पर देश के किसी भी बड़े अस्पताल में पांच लाख रुपये तक मुफ्त इलाज हो सकता है।

मतदाता जागरुकता भ्रमण पर निकला था। पता चला तो मोआलम को बेड़ियों से मुक्त करा दिया। उसके पिता व भाइयों को भी सचेत किया गया है। प्रधान को मनरेगा से कार्य दिलाने और जिला दिव्यागंजन व सशक्तीकरण अधिकारी शशांक सिंह से बात कर दिव्यांगजन पेंशन और विभाग से अन्य सुविधाएं दिलाए जाने का निर्देश दिया गया है।