वाराणसी (ब्यूरो)। सदर तहसील में 30 सितम्बर 2019 को दिनदहाड़े फारच्यूनर सवार बस संचालक नितेश सिंह उर्फ बबलू की हत्या कर दी गई थी। 28 अगस्त 2020 को जैतपुरा थाना क्षेत्र के चौकाघाट स्थित काली मंदिर के समीप बदमाशों ने गैंगस्टर अभिषेक सिंह प्रिंस समेत दो लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस सनसनीखेज दो वारदात से पूरा बनारस थर्रा गया था। इसके पहले भी कई ताबड़तोड़ हत्याएं हुई थीं। इसके चलते धार्मिक शहर वाराणसी में कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े होने लगे थे। इसके पहले रंगदारी, अपहरण, लूट के बाद हत्या, डकैती बनारस की नीयत बन गई थी। रात नौ बजे के बाद कोई व्यापारी या नामी-गिरामी आदमी घर नहीं पहुंचता था तो परिवार में कोहराम मच जाता था, लेकिन प्रदेश में सत्ता बदली और बुलडोजर के डर से इस तरह के गिरोह बंद अपराध पर ब्रेक लग गया, लेकिन साइबर क्राइम और प्रॉपर्टी के नाम पर पैसा लूटने की घटना में तेजी आ गई। अब तो बनारस में हर दिन औसतन साइबर फ्र ॉड की 13 और प्रॉपर्टी के नाम धोखाधड़ी की 10 शिकायतें कमिश्नरेट पुलिस के पास पहुंचती हैं। वहीं, नौकरी देने के नाम पर फर्जीवाड़ा हो रहा है।
2001 से बनारस में बढ़ा अपराध
सन 2003 में दालमंडी में अल सुबह पार्षद कमाल अंसारी की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई थी। 2003 में ही मुकीमगंज से पार्षद रहे अनिल यादव मंटू को बदमाशों ने सिगरा थाना क्षेत्र के फातमान रोड दिनदहाड़े गोलियों से उड़ा दिया था। पूर्व में डिप्टी मेयर रहे माफिया डान अनिल सिंह के खास साथी सुरेश गुप्ता की जैतपुरा क्षेत्र में मुन्ना बजरंगी के शूटरों ने हत्या कर दी थी। 2004 में पान दरीबा वार्ड से पार्षद रहे बंशी यादव की जिला जेल के गेट पर हत्या कर दी गई थी। मई 2005 में सेंट्रल जेल में अन्नू त्रिपाठी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। 2005 में ही भेलूपुर के सरायनन्दन से पार्षद मंगल प्रजापति की हत्या कर दी गई थी। 2006 में सराय हड़हा में पार्षद मुरारी यादव की सुबह सुबह गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। 2007 में पार्षद बबलू लंबू की भी हत्या हो गई थी। 30 जुलाई 2008 को सिद्धागिरी बाग इलाके में पाषर्द बाबू यादव की हत्या कर दी गई थी। 2009 में हिस्ट्रीशीटर बदरेआलम उर्फ बद्दू की हत्या हुई थी। ये सभी हत्याएं रंगदारी और वर्चस्व में हुई थीं। इसके अलावा भी 2012 तक तक कई नामी अपराधियों की सरेराह हत्या कर दी गई थी। इस समय वाराणसी में अपराध चरम पर था।
मुख्तार अंसारी के नाम पर मुन्ना बजरंगी का आतंक
वाराणसी में 2001 से 2012 तक जितनी भी हत्याएं होती थीं, उसमें माफियाडान मुन्ना बजरंगी का नाम जरूरत आता था। 6 अप्रैल 1997 को लंका इलाके के नरिया में एके 47 से छात्रसंघ अध्यक्ष रामप्रकाश पांडेय, पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष सुनील राय, भोनू मल्लाह समेत चार लोगों की हत्या में पहली बार मुन्ना बजरंगी का नाम आया था। मुन्ना बजरंगी मुख्तार अंसारी का खास साथी था, जो वाराणसी समेत आसपास के जिलों में युवाओं का गैंग तैयार किया था, जिसमें नाटे बचकानी, विश्वास नेपाली, अन्नू त्रिपाठी, बाबू यादव, महेश यादव, शशि पांडे, पकौड़ी, मंटू यादव, पप्पू, राजन, मनीष सिंह समेत तमाम लड़के शामिल थे, जो मुन्ना बजरंगी के इशारे पर डाक्टर व व्यापारी से रंगदारी, लूट, हत्या जैसे गंभीर अपराध को अंजाम देते थे।
ये जेल में थे, फिर भी लोगों में डर था
वाराणसी और आसपास के जिलों में जितनी भी अपराध की घटनाएं होती थीं, जिसमें अधिकतर नाम मुख्तार अंसारी गिरोह के लोगों का आता था। कभी-कभार बृजेश सिंह के गैंग का नाम भी सामने आता था, लेकिन वाराणसी में ब्रांडेड जूता, जींस और टी-शर्ट पहने नये-नये लड़के मुख्तार गैंग का हिस्सा होते थे। हालांकि, इस दौर में मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह जेल में होते थे। बावजूद इसके जरायम की दुनिया में यही दो नाम सुर्खियों में होते थे। उस दौरान में इन्हीं दो गिरोहों के बीच गैंगवार होता था।
साइबर फ्र ॉड के लिए नई-नई ट्रिक
चार महीने में 954 लोगों से 11 करोड़ का फ्र ॉड
वाराणसी में अब तक सबसे बड़ी साइबर ठगी शिक्षिका से 3.55 करोड की हुई है। 2024 शुरू होते ही साइबर फ्र ॉड्स नये ट्रेंड के साथ मार्केट में आए। साइबर क्राइम सेल के एक्सपर्ट विराट सिंह ने बताया कि साइबर अपराधी 'डर' की नई नई ट्रिक इस्तेमाल कर रहे हैं। मसलन, कूरियर, पैकेट में मिले सिम, ड्रग्स, आधार कार्ड का मिसयूज, मनी लॉन्ड्रिंग, टेररिस्ट कन्वर्जन में आपके मोबाइल नंबर का यूज हो रहा था जैसी कई ट्रिक हैं। यह पूरा सेटअप 'डर' का है। उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए पढ़े-लिखे लोगों को ही अपने जाल में फंसाते हैं। शहर में हर दिन साइबर ठगी की औसतन 12 घटनाएं हो रही हैं। जनवरी से अप्रैल 2024 तक लगभग 954 साइबर ठगी के मामले साइबर थाना और सेल में आए हैं। करीब 9 करोड़ रुपए से अधिक का फ्र ॉड हुआ है, जिसमें करीब डेढ़ करोड़ से अधिक का रिफंड कराया गया है, जबकि पिछले साल ओलेक्स, ओटीपी, बिजली काटने समेत विभिन्न तरीकों से लगातार साइबर क्राइम की घटनाएं हो रही थीं।
वाराणसी में प्रॉपर्टी के नाम धोखाधड़ी
महमूरगंज में जमीन के नाम पर 14 लाख की ठगी, चित्तईपुर में 35 लाख लेकर फ्लैट नहीं दिया गया, शिवपुर में जमीन के नाम पर 24 लाख की ठगी। वाराणसी में इसी तरह की घटनाएं हर दिन औसतन 5 होती है, जिसकी शिकायतें पुलिस के पास पहुंच रही हैं। पिछले दस साल से वाराणसी में प्रॉपर्टी के धंधे में जबर्दस्त उछाल आया है। यही वजह है कि प्रॉपर्टी के नाम पर धोखाधड़ी की घटनाएं बहुत हो रही हैं। इसमें हल्की सजा होने के कारण इस तरह की घटनाएं बढ़ ही रही हैं। साइन सिटी, नीलगिरी समेत तमाम रियल एस्टेट कंपनियों ने बनारस में करोड़ों रुपये की धोखाधड़ी की है। हालांकि कमिश्नरेट पुलिस की सख्त कार्रवाई के चलते इन कंपनियों के मालिक जेल में हैं।
वाराणसी में 2001 से 2010 तक अपराध चरम पर था। रंगदारी, अपहरण, लूट के बाद हत्या, डकैती बनारस की नीयत बन गई थी। मुख्तार अंसारी से जुड़े गैंग के लोग इस तरह की घटनाओं को अंजाम देते थे। इस बीच कई बड़ी हत्याएं भी हुईं, जिससे आम पब्लिक में जबर्दस्त डर था, लेकिन सरकार के सख्त निर्देश पर वाराणसी समेत पूरे पूर्वांचल में अपराधियों पर ताबड़तोड़ कार्रवाई हुई। अपराध से अर्जित पैसे से खड़ी प्रॉपटी पर बुलडोजर चला। बड़ी संख्या में अपराधियों को जेल भी भेजा गया। इसके चलते गिरोह बंद अपराध पूरी तरह से बंद हो गया।
संतोष सिंह, पूर्व डीआईजी
वाराणसी में अब गिरोह बंद अपराध तो नहीं हैं, लेकिन साइबर और प्रॉपर्टी के नाम पर धोखाधड़ी की शिकायतें आ रही हैं। इस पर अंकुश लगाने के लिए कमिश्नरेट पुलिस काम कर रही है। अब साइबर अपराधी पकड़े भी जा रहे हैं। अभी हाल में शिक्षिका से ठगी में खुलासा और सभी आरोपितों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया।
मोहित अग्रवाल, पुलिस कमिश्नर