वाराणसी (ब्यूरो)। अगर आपको ज्वाइंट पेन यानि जोड़ों के दर्द से बचना है तो अपने मसल्स को मजबूत करना होगा। क्योंकि अगर मसल्स कमजोर हुआ तो आपको जोड़ों का दर्द परेशान कर सकता है। ऐसा हम नहीं एक्सपर्ट कह रहे हैं। कभी 60 की उम्र के बाद होने वाला ज्वाइंट पेन अब यंग एज में ही लोगों को प्रभावित करने लगा है। ज्वाइंट पेन यानि अर्थराइटिस एक ऐसी बीमारी है जिसके होने के बाद पेशेंट को ताउम्र मेडिसिन पर निर्भर रहने के साथ फिजियोथैरेपी की जरूरत पड़ती है। ऐसे में देश में लगातार थैरेपी लेने वालों की संख्या बढ़ रही है। इसी को देखते हुए पिछले दिनों आईएमएस बीएचयू में राष्ट्रीय फिजियोथेरेपी कांफ्रेंस का आयोजन किया गया। जिसके साइंटिफिक सेशन में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा हुई। इसमें 25 विशिष्ट भारतीय फिजियोथेरेपी और 5 विदेश के विशेषज्ञों ने अपना अनुभव साझा किया। इसके साथ ही फिजियोथेरेपी के क्षेत्र में क्या नया डेवलपमेंट हुआ है उस पर भी चर्चा की गई। बता दें कि इस कांफ्रेंस में 1 हजार लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया था।
ज्वाइंट पेन सिर्फ हड्डियों से नहीं
कांफ्रेस में शामिल सेंट लुइस यूनिवर्सिटी कैमरून के वीसी व भारतीय मूल के प्रोफेसर कृष्ण एन शर्मा ने बताया कि उनके द्वारा बनाई गई मैनुअल थेरेपी की टेक्नालॉजी का इस्तेमाल आज विदेशों में हो रहा है। शोधकर्ताओं को से कहा कि वो उनके द्वारा बनाई गई टेक्निक पर स्कॉलरशिप के साथ शोध कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि उन्होंने ज्वाइंट पेन पर काफी काम किया है। उनके किए गए रिसर्च से पता चला है कि ज्वाइंट पेन सिर्फ हड्डियों से ही नहीं बल्कि हमारे मसल्स से भी होता है। शोध में इन बातों का विशेष ध्यान रखा है कि मरीज के जोड़ों के साथ-साथ उनके मसल्स को किस तरह से व्यवस्थित किया जाए कि अगर कोई व्यक्ति अपना हाथ उठाता है तो वह उसे एंगल में अपने हाथ को फिर नीचे ले आए। उसमें हमारा पूरा ध्यान होता है कि जोड़ का मूवमेंट क्या है।
हर माह 6 हजार फिजियोथेरेपी के केस
कांफ्रेंस के संयोजक डॉ। एसएन पांडेय ने बीएचयू में आने वाले ज्वाइंट पेन की रिपोर्ट पेश करते हुए बताया कि आज के दौर में जॉइंट पेन काफी बड़ा रोग बन गया है। ये अब हर किसी को अपना शिकार बना रहा है। इसमें यंग एज के लोगों के साथ फिमेल्स की संख्या ज्यादा है। उन्होंने बताया कि बीएचयू एसएस हॉस्पिटल में हम डेली 200 से ज्यादा पेशेंट की फिजियोथेरेपी करते हैं। इसमें सबसे ज्यादा पेशेंट अर्थराइटिस यानि घुटने के दर्द के आ रहे हैं। अगर पूरे एक माह के आंकड़ों की बात करे तो 6 हजार मरीज अस्पताल में पहुंच रहे है। अब यह आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। अगर अब भी लोगों अपने स्वास्थ्य को लेकर सचेत नहीं हुए तो आने वाले दिनों में यह संख्या और भी ज्यादा बढ़ सकती है। बता दें कि बीएचयू के अलावा सिटी में मंडलीय अस्पताल, जिला अस्पताल, इएसआईसी अस्पताल के अलावा प्राइवेट हॉस्पिटल में भी फिजियोथेरेपी लेने वाले पहुंचते है। इनके ग्राफ पर नजर डाले तो इन सभी अस्पतालों में मिलाकर करीब 14 से 15 हजार पेशेंट थैरेपी ले रहे है।
कितने तरह की होती है फिजियोथेरेपी
डॉ। पांडेय ने बताया कि फिजियोथरेपी हर चोट, शारीरिक दर्द और बीमारी आदि के लिए अलग-अलग होती है। इसलिए आपकी स्थिति को देखकर ही फिजियोथेरेपिस्ट अलग-अलग तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। फिजियोथेरेपी कई प्रकार के होते हैं। इसमें एक्सरसाइज, हीट थेरेपी, कोल्ड थेरेपी, स्पोर्ट्स थेरेपी, इलेक्ट्रोथेरेपी, कार्डियोवैस्कुलर फिजियोथेरेपी, वुमन हेल्थ थेरेपी, न्यूरोमस्कुलोस्केलेटल फिजियोथेरेपी, बाल चिकित्सा फिजियोथेरेपी और आर्थोपेडिक फिजियोथेरेपी आदि शामिल हैं।
फिजियोथेरेपी चिकित्सा को बढ़ावा
वहीं डॉ। आनंद कुमार त्यागी ने बताया कि फिजियोथेरेपी चिकित्सा स्वास्थ्य क्षेत्र का अभिन्न अंग है और निश्चित तौर पर फिजियोथेरेपी चिकित्सा पद्धति के प्रचार एवं प्रचार के लिए इस तरह के आयोजन निरंतर किए जाने चाहिए। प्रोफेसर नागेंद्र पांडे ने कहा कि काशी प्राचीन काल से ही ज्ञान देने वाली नगरी रही है और आज बीएचयू में भी देश एवं विदेश के कोने-कोने से आए फिजियोथेरेपी चिकित्सा एवं छात्र-छात्राओं को फिजियोथेरेपी चिकित्सा का उन्नत ज्ञान देने का कार्य कर रही है।
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ज्वाइंट पेन के केस में लगातार इजाफा हो रहा है। ऐसे में इस तरह के केस में फिजियोथेरेपी चिकित्सा की भूमिका बढ़ जाती है। इसी को लेकर यह कांफ्रेंस आयोजित की गई थी। फिजियोथेरेपी के क्षेत्र में क्या नया डेवलपमेंट हुआ है, उस पर भी चर्चा की गई।
डॉ। एसएन पांडेय, एसएस हॉस्पिटल बीएचयू व कांफ्रेस संयोजक