वाराणसी (ब्यूरो)। पितरों का पूजन-अर्चन कर उनका आशीर्वाद पाने के कालखंड पितृपक्ष के चौथे दिन शनिवार को भी काशी में पूर्वजों का तर्पण करने को काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। पिशाच मोचन कुंड से गंगा घाट की गलियों तक श्रद्धालुओं ने पुण्यतिथि के अनुसार अपने पूर्वजों के लिए ङ्क्षपडदान किया। साथ ही उनकी आत्मा की शांति व मोक्ष की कामना करते हुए स्वयं व स्वजनों के लिए आशीर्वाद मांगा।
मान्यता है कि पिशाच मोचन कुंड पर मृत पूर्वजों के लिए ङ्क्षपडदान करने से उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है। इसके लिए श्रद्धालु वंशज चौल कर्म करा कर यानी दाढ़ी-बाल, मूंछे मुड़ाते हैं। इसके पश्चात बिना सिले वस्त्र धारण कर वहां उपस्थित कर्मकांडी तीर्थ पुरोहितों के माध्यम से तिल, जौ, चावल व दूध की खीर, खोवा, गंगाजल आदि से बने ङ्क्षपड का कुश, ताम्रपात्र की सहायता से ङ्क्षपडदान करते हैं। भगवान सूर्य को साक्षी मान तर्पण-अर्पण करते हैं। गंगा घाटों के डूब जाने से बहुत से श्रद्धालु घाटों की गलियों में व सड़कों के किनारे ङ्क्षपडदान व तर्पण-अर्पण किए। बहुतेरे लोगों ने अपने घरों पर ही ङ्क्षपडदान किया और अपने पूर्वजों की रुचि के अनुसार व्यंजन बनाकर पलाश पत्र के दोनों में उसे निकाल पूर्वजों के नाम छतों पर या खुले स्थानों अथवा तालाबों, नदियों के किनारे समर्पित किया।