वाराणसी (ब्यूरो)। काशी एक ऐसा शहर जहां मृत्यु का आलिंगन और मौत पर नृत्य होता है। एक ऐसा शहर जहां शमशान में भी फाल्गुन मनाया जाता है। जीवन के शाश्वत सत्य से परिचित कराती स्थली पर होली खेलने का दृश्य बुधवार को साक्षात दिखा। हरिश्चन्द्र घाट पर शिवगणों ने चिताभस्म से होली खेली। भक्त शिव-पार्वती भूत पिशाच बटोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी, गाने पर चिताओं के चारों ओर मस्ती में झूमते रहे। हर तरफ चिता की राख उड़ती रही। घाट से लगाकर सड़क भी राख से पटी रही.
हर चेहरे पर बाबा की भस्म
जिधर नजर गई, हर कोई चेहरे पर राख मलता तो कोई चिता भस्म से नहाया हुआ था। हर तरफ हवा में भस्म और गुलाल उड़ता रहा। चंदन और भस्म से रंगे शिव भक्त भोलेनाथ के जयकारे लगाते रहे.
निकाली गई शोभायात्रा
इससे पहले परंपरागत ऐतिहासिक शोभायात्रा निकाली गई। इस दौरान हर-हर महादेव के उद्घोष लगते रहे। नर-मुंड की माला पहने श्रद्धालु बाबा मशान नाथ के जयकारे लगाते रहे। बाबा भोलेनाथ के भक्तों ने विविध भूत-प्रेत-पिशाच का रूप धरा और हर-हर महादेव के उद्घोष के साथ चिता भस्म की होली खेलने गंगा तट पर पहुंच गए। हरिश्चंद्र घाट पर जहां एक तरफ चिता जल रही थी तो वहीं दूसरी तरफ लोग उत्सव मना रहे थे। भगवान का रूप धरे कलाकारों ने भी विशेष प्रकार का नृत्य प्रस्तुति किया.
हरिश्चंद्र घाट तक गई शोभायात्रा
भस्म से होली खेलने से पहले रविन्द्रपुरी स्थित भगवान कीनाराम स्थली से हरिश्चंद्र घाट तक विशाल शोभायात्रा निकाली गई। इसमें बग्घी, ऊंट, घोड़ा समेत सैकड़ों की संख्या में लोग नाचते-गाते हुए शामिल हुए। वहीं भोला बाबा अपनी पत्नी मां पार्वती के साथ नंदी पर विराजमान होकर शोभायात्रा में आए। शोभायात्रा में भस्म से रंगे भक्तों ने बाबा मशान नाथ का जयकारा लगाया। अघोरी बाबा बनकर यात्रा में करतब दिखाए।