वाराणसी (ब्यूरो)एक दौर था जब संचार और इंटरटेनमेंट के लिए अपने पास सिर्फ टीवी का सहारा हुआ करता थालोग देश दुनिया में क्या हो रहा है, इसकी जानकारी लेने के साथ इस पर आने वाली फिल्में, सीरियल और टेली फिल्में सभी का मनोरंजन करती थी। 80 और 90 के दशक में बनारस में मुहल्ले के किसी एक घर में भी टीवी होना बड़ी बात मानी जाती थीउस समय टीवी पर महज एक घंटे का खास कार्यक्रम देखने के लिए लोग घंटे भर पहले उस घर में पहुंच जाते थे, मगर अब वो दौर नहीं रहाअब टीवी देखना तो दूर इसकी तरफ कोई देखने वाला नहीं है.

सबसे खराब दौर

इंटरनेट और डिजीटल होती इस दुनिया में टीवी अपने सबसे खराब दौर से गुजर रहा है, क्योंकि टीवी की जगह मोबाइल ने ले ली हैमहिलाओं को सीरियल देखना हो या बच्चों को कार्टून या फिर बुजुर्गों को धार्मिक कार्यक्रम या पुरानी फिल्में देखनी है तो ये सब उनके मोबाइल फोन पर उपलब्ध हैअब जब सब कुछ मोबाइल पर ही है तो टीवी की जरूरत ही क्या बची.

कभी रिमोट की थी लड़ाई, अब मन के राजा

जानकारों की मानें तो 80 के दशक के अंत में टेलीविजन ने भारतीय परंपरा के अनुरूप परिवार को एकजुट करने में भी मदद की थीक्योंकि कई लोग उस दौर में दूरदर्शन पर आने वाले हम लोग, बुनियाद, रामायण और महाभारत जैसे प्रतिष्ठित शो देखने के लिए एक ही स्क्रीन के सामने इक_ा होते थेइसके बाद 90 के दशक में जब रिमोट वाले कलर टीवी का दौर आया तब भी लोग अपने-अपने पसंदीदा शो देखने के लिए चैनल बदलने के लिए घर के सदस्य रिमोट के लिए लड़ाई करते थे, लेकिन अब इस लड़ाई पर भी विराम लग गया हैबीते 5 सालों में मोबाइल की दुनिया ने अपनी पहुंच सिर्फ घर में नहीं बल्कि घर के हर एक सदस्य तक बनाई हैमहिलाओं के लिए सीरियल, यंगस्टर्स के लिए लिए फिल्में, बच्चों के लिए कार्टून और बुजुर्गों के लिए भजन-कथाएं ये सब मोबाइल पर ही उपलब्ध होने से लोगों को टीवी की जरूरत ही नहीं पड़ रही है.

घरों में बंद हो गई है टीवी

सन् 2000 का एक वो भी दौर था जब रात आठ बजते ही हर घर में क्योंकि सास भी कभी बहू थी, कहानी घर-घर की, जैसे टीवी सीरियल के गीत गूंजते थेलेकिन मोबाइल का दौर आने के बाद से भी बंद हो गएजिन घरों में टीवी है वहां अब इसे देखने वाले नहीं रहेलोगों ने इसे रिचार्ज कराना भी बंद कर दिया हैएक अनुमान के मुताबिक बनारस के 80 फीसदी घरों में टीवी देखने वाले नहीं बचे हैइसकी दो वजह बताई जा रही है पहली वजह अब लोग टीवी पर ज्यादा समय देना नहंी चाहते, दूसरी यह कि जब सब कुछ मोबाइल में ही उपलब्ध है तो टीवी की जरूरत क्या हैघर में जितने सदस्य उतने मोबाइल हैऐसे में जब मोबाइल में ही सब कुछ उपलब्ध है तो टीवी रिचार्ज की जरूरत ही क्या हैटीवी देखने वालों की घटती संख्या का असर इसकी बिक्री पर भी पड़ा हैइलेक्ट्रिक एप्लाइंसेस के मार्केट में टीवी का सेल 40 फीसदी तक गिर चुका है

घर में कुल पांच सदस्य हैं और सभी के पास अपना मोबाइल फोन हैइसमें सीरियल से लेकर फिल्मों के अलावा और भी बहुत कुछ हैजब हर महीने के रिचार्ज पर सब कुछ उपलब्ध है ही तो टीवी की जरूरत क्या रह गई.

धर्मेंद्र कुमार, बिजनेसमैन

अब टीवी देखने का समय किसी के पास नहीं हैपहले बाध्यता होती थी कि एक स्पेसिफिक समय में इस कार्यक्रम को देखना ही है, मगर अब ऐसा नहीं हैअगर आपको कुछ देखना है तो आप उसे अपने मोबाइल पर कभी भी देख सकते हैंजहां ऐसी सुविधा है वहां टीवी की जरूरत ही क्या है.

आशुतोष गुप्ता, बिजनेसमैन

मोबाइल पर टीवी से ज्यादा सुविधाएं मिलने से टीवी की उपयोगिता बौनी साबित हो गई हैजब मोबाइल पर हर महीने 4 से 5 सौ रूपए खर्च कर रहे हैं और उसमें टीवी जैसी सेवाएं भी मिल रही है तो दोबारा से टीवी पर क्यों खर्च किया जाएइसलिए टीवी बंद ही कर दिया गया

अरूण सिंह, बिजनेसमैन