वाराणसी (ब्यूरो)। चौबेपुर राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय में नौ करोड़ से काटेज और औषधीय पौधे तैयार किए जाएंगे। इसके लिए आयुर्वेदिक महाविद्यालय चौकाघाट की प्राचार्य ने पौने पांच एकड़ में चहारदीवारी बनाकर शासन को प्रस्ताव भेज दिया है। महाविद्यालय प्रशासन पर्यटन की ²ष्टि से भी स्थल को विकसित करने की योजना बना रहा है। काशी में हर देश के लोगों का आना-जाना लगा रहता है, देश-विदेश के सैलानियों के दर्द का मरहम बन सके। इसको लेकर आयुर्वेदिक महाविद्यालय ने योजना बनानी शुरू कर दी है। भारत की पारंपरिक आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति वैसे तो लगभग 5,000 वर्षों से प्रचलन में है। भारत में आयुर्वेदिक औषधियां और कोविड-19 की वैक्सीन लोगों को देकर सुरक्षित किया गया।
विलुप्त होती औषधि को खोजने का अभियान शुरू
देश में आयुर्वेद को बढ़ावा देने की मुहिम तेज होती दिखाई दे रही है। विलुप्त होती औषधि को खोजने का अभियान आयुष विभाग ने देश और विदेश तक शुरू करा दिया है। हर तरह के औषधीय पौधे लगाए जाएंगे। इसके लिए अन्य प्रदेशों से मांग की गई है। एक छत के नीचे योग और आयुर्वेद में प्रयोग होने वाली सामग्री को एकत्रित कर बेहतर तरीके से संचालन करना है.
यहां काटेज होगा तैयार
मेडिकल टूरिज्म के तहत आयुर्वेद, योग, पंचकर्म व नेचुरोपैथी की चिकित्सा के लिए काटेज बनाए जाएंगे। साथ ही पूर्वांचल समेत देश-विदेश के मरीजों को इस चिकित्सा पद्धति का लाभ दिया जाएगा.
यह औषधीय पौधे होंगे तैयार
चौबेपुर राजकीय चिकित्सालय परिसर में सर्पगंधा, अश्वगंधा, शालपर्णी, हरिद्रा, अर्क (मदार), स्नुही, अपामार्ग, शतावरी, भूम्यामलकी, वचा, घृतकुमारी, निम्ब, अर्जुन, बिल्व, आमलकी, शिरीष, प्लक्ष, वट, उदुम्बर, अश्वत्थ, करंज, शाखोटक, जम्बू (जामुन), कुटज, शरपुंखा, अस्थिश्रंखला, गुडूची, तुलसी, कालमेघ, भृंगराज, सप्तपर्ण समेत कई तरह के पौधे तैयार किए जाएंगे.
आयुर्वेद शब्द की उत्पत्ति आयु और वेद से हुई है। आयु का अर्थ है जीवन, वेद का अर्थ है विज्ञान व ज्ञान अर्थात आयुर्वेद का अर्थ है जीवन का विज्ञान। अब इसको सार्थक करने का समय आ गया है। काटेज के लिए प्रपोजल बनाकर भेज दिया गया है.
डा। नीलम गुप्ता, प्राचार्य, आयुर्वेदिक महाविद्यालय व चिकित्सालय चौकाघाट