वाराणसी (ब्यूरो)। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में स्थित सरस्वती भवन पुस्तकालय एक ऐसी धरोहर है, जिसमें ज्ञान का भंडार समाया हुआ है। अपने भीतर पांडुलिपियों के ज्ञान को समेटे यह लाइब्रेरी अब लोगों तक उसे पहुंचा रही हैै। आज के बदलते दौर में जहां हर कोई वेस्टर्न पद्धति को अपना रहा है और नए जमाने की बुक्स पढऩे में ज्यादा इंटरेस्टेड हैं, वहीं संपूर्णानंद के स्टूडेंट्स शास्त्रों का ज्ञान लेना चाहते हैं और अपने पुराने कल्चर को ही जीना चाहते हैैं.
फोन से रखते हैं दूरी
विश्वविद्यालय में पढऩे वाले स्टूडेंट्स का मानना है कि जो ज्ञान हमें पुराने लेखकों द्वारा लिखी पुस्तकों से मिल सकता है, वह ज्ञान हमें फोन नहीं दे सकता है। दुनिया कितनी भी बदल जाए पर जो ज्ञान हमें इन पुस्तकों से मिलता हैै वह कोई गैजेट्स नहीं दे सकता है। इसलिए वह किताबों को ही अपना दोस्त मानते हैं। क्लास के बाद जो भी समय स्टूडेंट्स को खाली मिलता है वह उसमें पांडुलिपियां पढ़ते हैं। पाडुंलिपियां खुद में ही ज्ञान का सागर हैै। लाइब्रेरी में एक लाख 11 हजार 132 पांडुलिपियां लाल पोटली में सहेज कर रखी गई हैं.
लाइब्रेरी ज्ञान का मंदिर
गुरुवार को लाइब्रेरी का नजारा कुछ ऐसा ही था। सभी स्टूडेंट्स पाडुंलिपि और अन्य शास्त्र पढऩे में व्यस्त थे। वहीं लाइब्रेरी में जूते-चप्पल पहन कर जाना मना है। पुस्तकालयाध्यक्ष राजनाथ ने बताया कि पांडुलिपि और अन्य ग्रंथ होने के कारण लाइब्रेरी में जूते-चप्पल पहन के जाने में मनाई है। साथ ही इसका दूसरा कारण यह भी है कि कॉलेज की लाइब्रेरी को भगवान के मंदिर का दर्जा दिया गया है। जैसे भगवान हमें सही व गलत का ज्ञान कराते हैं, वैसे ही यह ग्रंथ भी। वहीं यूनिवर्सिटी के साथ-साथ बाहर के स्टूडेंट्स भी लेने शास्त्रों का ज्ञान लेने के लिए लाइब्रेरी आते हैैं.
तीन लाख से अधिक ग्रंथ
सरस्वती भवन के मुद्रित प्रभार में करीब तीन लाख से अधिक ग्रंथ सहेज कर रखे हुए हैं। इसमें 1500 दुर्लभ पुस्तकें भी शामिल हैं, जो 100 से 200 वर्ष पुरानी है। इसमें वेद, कर्मकांड, वेदांत, सांख्ययोग, धर्मशास्त्र, पुराणेतिहास, ज्योतिष, मीमांसा, न्याय वैशेषिक, साहित्य, व्याकरण व आयुर्वेद संबंधित दुर्लभ ग्रंथ भी सहेज कर रखे गए हैं। इसकी महत्ता को देखते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन ने दुर्लभ पुस्तकों को भी संरक्षित करने की रूपरेखा बनाई है। विश्वविद्यालय में स्टूडेंट्स के लिए सभी बुक्स उपस्थित हैैं.
1791 ई। में हुई स्थापना
विश्वविद्यालय के पूर्व रूप, बनारस के तत्कालीन रेजीडेंट द्वारा 1791 ई। में स्थापित संस्कृत पाठशाला के साथ ही विश्वविद्यालय के इस विश्वप्रसिद्ध सरस्वती भवन पुस्तकालय की भी स्थापना हुई थी। डंकन ने इस पाठशाला की स्थापना से होने वाले लाभों की ओर इंगित करते हुए ईस्ट इण्डिया कम्पनी के तात्कालीक गवर्नर जनरल लॉर्ड कॉर्नवालिस को जो पत्र लिखा था, उसमें प्रथम लाभ के अन्तर्गत इस पाठशाला की स्थापना से संस्कृत वाड्मय के अभ्युदय, संरक्षण तथा विकास के साथ-साथ स्पष्ट रूप से पुस्तकालय की स्थापना की ओर संकेत किया था.
विश्वविद्यालय में स्टूडेंट्स के लिए सभी विषय की पुस्तकें उपलब्ध हंै, पर उसके बाद भी वह सबसे ज्यादा पांडुलिपियां और अन्य ग्रंथ पढऩा पसंद करते हैैं.
राजनाथ, पुस्तकालयाध्यक्ष