वाराणसी (ब्यूरो)। वाराणसी में 800 किलोमीटर से अधिक सड़क फैली है। 1500 से अधिक सड़कें हैं, जिसे रपटीली और चकाचक करने की जिम्मेदारी पीडब्ल्यूडी और नगर निगम की है। जी-20 बैठक के चलते 20 मुख्य मार्गों की स्थिति ठीक है। बाकी अन्य सड़कों की हालत बहुत ही खस्ता है। हालांकि हर साल इन सड़कों की मरम्मत पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं, लेकिन बामुश्किल दो या तीन महीने ही सड़कों पर चलने की स्थिति होती है। बारिश होते ही सड़कों पर चलना मुश्किल हो जाता है। घटिया सामग्री और मानक के अनुरूप सड़कों का निर्माण नहीं होने से यह स्थिति उत्पन्न होती है, जबकि शहर में बीएचयू परिसर है, जहां हॉस्टल रोड की सड़कें तीन दशक से जीरो मेंटिनेंस पर चल रही है। बीएलडब्ल्यू में भी कई सड़कें हैं, जो दस साल से अच्छी स्थिति में है.
बीएचयू की सड़कों से सीखने की जरूरत
काशी हिंदू विश्वविद्यालय परिसर में 6 संस्थान, 14 संकाय और लगभग 140 विभाग है। 75 छात्रावासों के साथ यह एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय है, जिसमें 30,000 से ज्यादा छात्र अध्ययनरत हैं। यह परिसर करीब 5.5 किमी में फैला है। इसकी स्थापना सन् 1916 में हुई थी, यहां की व्यापक हरियाली और सुव्यवस्थित सड़कें कई दशक से उसी तरह है, जैसे पहले थी। बीएचयू परिसर में अधिकतर सड़कें आरसीसी है, जो तीन दशक से पहले बनी थी। आज भी उसी तरह है। जीरो मेंटिनेंस पर आज भी सड़कें दौड़ रही हैं। डामर रोड की स्थिति बेहतर रहती है। पांच साल के अंतराल पर मरम्मत कराई जाती है। कुछ ऐसी ही स्थिति बीएलडब्ल्यू की है, यहां की सड़कों की मरम्मत लंबे अंतराल पर होती है.
अब दस साल तक नहीं टूटेंगी सड़कें
वाराणसी में टू लेन से फोरलेन सड़कों को इमल्शन ट्रीटेड एग्रीगेट (ईटीए) तकनीक से बनाया जा रहा है। जो दस साल तक नहीं टूटेंगी। इससे लागत में भी 20 फीसदी कम आएगी। निर्माण के 48 घंटे के बाद ही सड़क पर फर्राटा भरा जा सकेगा। सड़कों के निर्माण में अब तक सड़कों की ऊपरी परत यानी ब्लैक टॉप को उखाड़कर फेंक दिया जाता था। इमलसन ट्रीटेड एग्रीगेट तकनीक का उपयोग जिले में पहली बार किया जाएगा। उखाड़ी गई परत को री-साइकिल के प्लांट में ले जाकर इस पर बिटमिन डामर चढ़ाया जाएगा। इससे फिर उपयोग में आ जाएगी। ऐसे में ब्लैक टॉप फेंकने से होने वाला नुकसान भी नहीं होगा। सड़क मजबूत बनेगी.
बीएचयू की सड़कों के निर्माण में क्वालिटी पर विशेष ध्यान दिया जाता है। डामर की सड़कों को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर आरसीसी रोड है, जो तीन दशक से पहले की बनी है। ये सड़कें जीरो मेटेंनेस पर चल रही है। वीआईपी सड़कों की स्थिति बहुत अच्छी है।
डा। राजेश सिंह, पीआरओ, बीएचयू
तीन दशक पहले बहुत मुश्किल से सड़कों का निर्माण होता था। पहले इतना बजट नहीं आता था। इसलिए जब भी सड़कें बनती थीं, उसमें क्वालिटी का विशेष ध्यान दिया जाता था। खासकर तारकोल की मात्रा बहुत ज्यादा होती थी। यही वजह थी कि बारिश के बावजूद सड़कों की स्थिति अच्छी रहती थी।
रामेश्वर सिंह, रिटायर्ड चीफ इंजीनियर, पीडब्ल्यूडी
अब तो आनन-फानन में सड़कों का निर्माण कराया जाता है। एक रात में ही एक किमी डामर रोड तैयार हो जाता है, जबकि पहले इसे बनाने में दस से पंद्रह दिन लग जाता था। बीस साल पहले जब रोड बनती थी तो पांच से दस साल तक अच्छी स्थिति में रहती थी।
शंभूनाथ यादव
वाराणसी की गिनती वीआईपी शहरों में होती है। अक्सर वीआईपी मूवमेंट होता है। इसके चलते रातों-रात सड़कें बन जाती है, लेकिन क्वालिटी इतनी खराब होती है कि बारिश होते ही सड़कों की गिट्टियां उखडऩे लगती हैं। तारकोल की मात्रा कम होने की वजह से सड़कें बहुत जल्द ही खराब होती हैं.
मानिक चंद्र गुप्ता