वाराणसी (ब्यूरो)। बोल बम का नारा है, बाबा तेरा सहारा है। भोले तेरे चरणों की धूल जो मिल जाए। एक दिन वो भोले भंडारी बनके, डमरू वाले बाबा तुमको आना होगा जैसे भजनों को डीजे की धुन पर बजाते कांवरियों का आने का सिलसिला चार दिन पहले यानि शुक्रवार की रात से शुरू होता है जोकि सोमवार की रात तक जारी रहता है। डीजे की धुन पर भजन बजाते जिस मार्ग से कांवरिए आते हंै मानो सारी रात शहर के लोग सो नहीं पाते। जैसे ही नींद लगती है वैसे ही फिर डीजे की धुन सुनाई देने लगती है। ऐसे में चार दिनों तक सारी रात लोगों का जागते हुए बीतता है.
ज्यादातर रात में आते हैं कांवरिये
बाबा विश्वनाथ को जलाभिषेक करने के लिए ज्यादातर कांवरियों को हुजूम रात में ही आता है। कोई पिकअप में लदकर डीजे बजाते हुए तो कई ई रिक्शा में बैठकर साउंड सिस्टम पर भक्ति धुनों के बीच काशी में पहुंचते हैं। इनमें कई ऐसे रहते हैं जो बाबा के उद्घोष संग पहुंचते हैं.
डीजे की धुन से गूंजता है मार्ग
कांवरियों का जत्था वाहनों पर सवार होकर डीजे की धुन बजाता हुआ चलता है तो पूरा मार्ग रातभर गूंजता रहता है। एक तरफ कांवरियों का वाहन गुजरता है तो दूसरी तरफ वाहनों की आवाज सुनाई देने लगती है। पिछले चार दिनों तक यह सिलसिला चलता रहता है। सोमवार की मध्यरात्रि के बाद यह यह सिलसिला कम हो जाता है।
रविवार-सोमवार को पटा रहता शहर
रविवार-सोमवार को बोलबम के जयकारे से पूरा शहर भक्ति के रंग में रंगा रहता है। शहर के लहरतारा, कैंट, इंग्लिशियालाइन, बीचएयू, चितईपुर, सारनाथ, आशापुर, पांडेयपुर, लाललुपर, चौकाघाट, लहुराबीर, मैदागिन बोल बम के जयकारों से गुंजायमान रहता है। कोई बम-बम की जयकार करता है तो कोई ऊ नम: शिवाय का उद्घोष करते हुए बाबा दरबार पहुंचने के लिए आतुर रहता है.
कई गुना बढ़ती संख्या
काशी में कांवरियों एवं श्रद्धालुओं की भीड़ बीते शुक्रवार से शुरू हुई तो रविवार को भी यह कई गुना और बढ़ जाती है। तीसरे सोमवार से तीन दिन पहले ही काशी विश्वनाथ मंदिर में हाजिरी लगाने के लिए आस्था की कतार गंगधार से गंगधारी के दरबार तक उमड़ पड़ती है। जगह-जगह से काशी आते जत्थों में शामिल कांवरिये गंगा स्नान और संकल्पादि के बाद गंगाजल लेकर बाबा दरबार जाते और वहां स्वअनुशासित हो कतारबद्ध होते रहते हैं। कई कांवरिये ऐसे भी दिखते हैं, जो गेरुआ धोती, बंडी और साफा पहने हुए वाहन पर सवार रहते हंै। कांवरियों के साथ आम श्रद्धालु भी बम-बम की जयकार करते हुए चलते रहते हैं। दशाश्वमेध पहुंचने के बाद शिवभक्तों का रेला गंगाद्वार पर ज्यादा दिखाई देता है। कई भक्त बाबा दरबार में दंडवत होते तो कई दर्शन-पूजन के बाद विश्वनाथ धाम में सुस्ताते दिखे। भक्तों की आवाजाही से कई लोगों की नीद उड़ी रहती है।