वाराणसी (ब्यूरो)। बीएचयू के चिकित्सा विज्ञान संस्थान के फोरेंसिक विज्ञान विभाग में एक कमरे में सैकड़ों विसरा एकत्र हैं, लेकिन इसकी रिपोर्ट अब तक पुलिस लेने की जहमत नहीं उठा रही है। सालों से पड़े विसरा से ये तो साफ हो जाता है कि जिले के थानों में कई प्रकरण ऐसे हैं, जिसकी आज तक शिनाख्त भी नहीं की गई है। इस वजह से उनका विसरा बीएचयू के चिकित्सा विज्ञान संस्थान के फोरेंसिक विज्ञान विभाग के कमरे में जार में ही कैद रह जाता है। वहीं, सालों से प्रयोगशाला में विसरा रखे जाने का एक अहम कारण वैज्ञानिकों समेत स्टाफ की कमी भी बताई गई। रामनगर स्थित विधि विज्ञान प्रयोगशाला से मिली जानकारी के मुताबिक प्रयोगशाला में स्टाफ की संख्या बढ़ेगी तो विसरा की जांच में तेजी आएगी और संदिग्ध हाल में हुई मौतों की वजह जल्द स्पष्ट हो सकेगी.
विसरा जांच में देरी होने के कारण
बीएचयू स्थित सर सुंदरलाल अस्पताल और ट्रॉमा सेंटर में वाराणसी समेत पूर्वांचल, बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश से भी लोग उपचार के लिए आते हैं। इस दौरान कई लोगों की मौत भी हो जाती है, लेकिन मौत की वजह स्पष्ट नहीं हो पाती है। संदिग्ध हाल में जिनकी मौत होती है और शव की शिनाख्त नहीं हो पाती है, पोस्टमार्टम के बाद मौत की वजह स्पष्ट न होने पर उनके विसरा की जांच में भी देरी होती है। इस सबसे प्रमुख कारण यह होता है कि न तो उनके संबंध में कोई पूछने के लिए आता है और न पुलिस ही उनके विसरा की जांच जल्द कराने की परवाह करती है।
मई 2017 के बाद से बीएचयू में विसरा के आंकड़े
- जार में पड़े 853 विसरा
- प्रतिदिन आते हैं 250 से 300
- मई 2017 से पहले के सैकड़ों विसरा डिस्पोज कर दिए गए
अदालतों के आदेश के बाद पुलिस होती है गंभीर
विसरा के मामले में ज्यादातर यह देखने में आता है कि अदालत का आदेश होता है तभी पुलिस गंभीर होती है और रिपोर्ट जल्दी आती है। अब जिसकी शिनाख्त ही नहीं हुई, उसकी मौत की वजह जानने की जहमत कौन उठाएगा। जानकारों के मुताबिक पुलिस को ये रवैया छोड़ कर संदिग्ध हाल में हुई सभी मौतों की वजह जानने के लिए गंभीरता से प्रयास करना चाहिए.
वैज्ञानिकों और स्टाफ की कमी
बीएचयू में रखे गए गए विसरा का 10 प्रतिशत ही जांच के लिए रामनगर स्थित विधि विज्ञान प्रयोगशाला में जाता है। इसका सबसे बड़ा कारण वहां स्टाफ की कमी है। विसरा की जांच के लिए दो वरिष्ठ वैज्ञानिक और चार वैज्ञानिक होने चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है और इसके आधे ही स्टाफ है। इसी तरह से जांच में सहयोग करने वाले स्टाफ की भी कमी है। इसके चलते जांच में देरी लगती है। हालांकि जिस प्रकरण को पुलिस जरूरी बताती है या अदालत का आदेश रहता है, उसकी जांच प्राथमिकता के आधार पर करके रिपोर्ट दी जाती है.
हमारे यहां बीएचयू में वर्तमान सैकड़ों की संख्या में विसरा एकत्र है। 2017 से पहले के विसरा को डिस्पोज किया गया, जिसकी संख्या भी बहुत बड़ी थी। हमारे यहां जो विसरा एकत्र है इसके लिए समय-समय पर अफसरों को रिमाइंडर भी भेजते हैं, लेकिन मामलों का संज्ञान नहीं लिया जाता है, जिस कारण हमारे कमरे में विसरा पड़े रहते हैं.
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प्रो। एसके पांडे, एचओडी, फॉरेंसिंक डिपार्टमेंट