वाराणसी (ब्यूरो)। पिछले तीन महीने से टीबी रोगियों के लिए दवाओं की आपूर्ति कम हो रही है। स्वास्थ्य विभाग का दवा भंडार खाली होने के कगार पर है। फिलहाल मरीजों को सात दिन के बजाय दो से तीन दिन की दवा की खुराक देकर काम चलाया जा रहा है। कुछ दिन और आपूर्ति नहीं हुई तो हास्पिटल टीबी रोगियों के इलाज से हाथ खड़ा कर सकता है.
केस-1
सरैया निवासी सोनू (काल्पनिक नाम) सोमवार को दवा लेने के लिए कमरा नं। 6 में गए, लेकिन उनको सिर्फ दो दिन की दवा दी गई। बचे हुए दिन की दवा बाहर से खरीदने के लिए पर्ची पर लिखकर दे दिया गया। मरीज टीबी की तीन दिन की दवा लेकर संतुष्ट हो गए। हाथ में पर्ची लिए दुकान पर न जाकर सीधे ई रिक्शा पकड़कर घर को रवाना हो गए.
केस-2
कोयला बाजार निवासी राहुल (काल्पनिक नाम) भी सोमवार को टीबी की दवा लेने के लिए पहुंचे तो उनको सात दिन की दवा न देकर सिर्फ तीन दिन की दवा दी गई। इसको लेकर कई मरीजों ने आपत्ति जताई तो वार्ड नं। 6 बैठा कर्मचारी कहने लगा दवा कम आ रही है। पहले एक महीने की दवा मिलती थी, अब पिछले तीन महीनों से 10 से 15 दिन की दवा मिल रही है.
इन दो केस से आप समझ सकते हैैं कि क्षय रोग (टीबी) उन्मूलन अभियान के दावे तार-तार होते नजर आ रहे हैं। दवाओं की कमी इसमें बाधा बन रही है।
6 महीने की दवा जरूरी
प्रारंभिक चरण में टीबी की बीमारी पकड़ में आने पर कम से कम छह माह तक निरंतर दवा चलाई जाती है। मंडलीय अस्पताल सात दिन की दवा की खुराक देकर ऐसे रोगियों पर निगरानी रखता है। वहीं टीबी उन्मूलन अभियान के तहत जिला स्तरीय टीम इन रोगियों को उनके घर पर ही दवाओं की सुविधा प्रदान करती है। इसके अलावा रोग से लडऩे के लिए मरीज को जागरूक किया जाता है। विडंबना यह है कि इस रोग से लडऩे में सबसे कारगर हथियार दवा ही आजकल उपलब्ध नहीं है। दवाओं की आपूर्ति में देरी हुई तो मरीज का दवा चक्र टूट सकता है। समस्या यह है कि किसी मरीज का दवा चक्र टूटता है तो उसे फिर नए सिरे से दवा खानी होगी और चक्र पूरा करना होगा.
शहर में 7500 मरीज
जिला क्षय अधिकारी डा। पियूष राय के मुताबिक शहर में 7500 टीबी के मरीज हैैं। मरीजों को दवा कम दी जा रही है। कहीं दो दिन की तो कहीं तीन दिन की दवा दी जा रही है। दवा का चक्र टूटे ना, इस पर ध्यान दिया जा रहा है। दवा लखनऊ से आती है लेकिन पिछले तीन महीने से दवा कम आ रही है। इसके चलते मरीजों को कम दवा दी जा रही है.
दवा की क्यों हुई शॉर्टेज
दवा बनाने में प्रयुक्त होने वाला कच्चा माल चाइना से आता है। टीबी की दवा का रेट सरकार ने काफी कम कर दिया है। इसके चलते कई कंपनियों को दवा बनाने में लागत अधिक पड़ रही है। दवा बनाने वाली ज्यादातर कंपनियां उत्तराखंड़, बद्धी में हैं। वहां पर प्रोडक्शन बंद हो गया है। इसलिए दवा का शॉर्टेज बनी हुई है। इसके चलते टीबी दवा के विकल्प में जो दवा मार्केट मिल रही थी, उसकी भी शॉर्टेज बनी हुई है.
टीबी की दवा
रिफेमपीसाइन
आइसोनियाजिड
एथाम ब्यूटॉल
पाइराजीमाइनाइड
स्ट्रेप्टोमाइसीन
ये हैैं विकल्प
एकेटी-3
एकेटी-4
आर सीनेक्स
कॉम्ब्यूटॉल 800
आकृति-3
टीबी रोगियों का इलाज किया जा रहा है। उन्हें कम दिनों का खुराक दिया जा रहा है, लेकिन दवा चक्र टूटने नहीं दिया जा रहा है। वैसे दवाओं की आपूर्ति शुरू हो चुकी है। कुछ दिनों में दिक्कत दूर हो जाएगी.
डा। पियूष राय, जिला क्षय रोग अधिकारी
टीबी दवाओं की कमी संज्ञान में है। इसकी आपूर्ति कराने का प्रयास किया जा रहा है। दवा कंपनियों से कोटेशन मांगा गया है। सोमवार को पर्याप्त मात्रा में टीवी की दवा आ गई है। इससे मरीजों को राहत मिलेगी.
डा। संदीप चौधरी, सीएमओ
मार्केट में दवा की शॉर्टेज है। कंपनियां दवा नहीं बना रही हैं क्योंकि उनको कच्चा माल नहीं मिल रहा है। जब तक कम रेट पर कच्चा माल नहीं मिलेगा, तब तक दवा की शॉर्टेज बरकरार रहेगी.
संजय सिंह, महामंत्री, दवा विक्रेता समिति