वाराणसी (ब्यूरो)देश-दुनिया में खेल प्रेमियों और प्लेयर्स में फुटबाल की दीवानगी आज भी कायम हैफुटबॉलर्स अब भी नेशनल-इंटरनेशनल लेवल पर मेडल लाने में नहीं चूक रहे, मगर बनारस में फुटबॉल और इसके मैदान साफ हो रहे हैंशहर के बीचोबीच बेनियाबाग मैदान को कभी फुटबॉल की नर्सरी कहा जाता था, लेकिन समय के साथ यह नर्सरी बदहाल होता चला गयाअब इस नर्सरी में न कोई पौध बचा है और न इसे सींचने वालाआज भले ही शासन ने इस मैदान को आबाद करा दिया हो, लेकिन जो कभी विशाल फुटबॉल का मैदान था, वह अब सिमटकर छोटा सा रह गया है.

नई पीढ़ी के खिलाड़ी परेशान

बनारस में अब फुटबॉल की जो स्थिति है उसे देखकर नई पीढ़ी का हर खिलाड़ी परेशान हैजो खिलाड़ी कभी दनादन गोल दागकर गोल्ड, सिल्वर और रजत पदक प्राप्त कर बनारस का मान बढ़ाए थे, वे आज इस खेल की बर्बादी पर अफसोस जाहिर कर रहे हैंजानकार बताते हैं कि एक दौर था, जब इसी नर्सरी से निकले कोच लेकर कप्तान तक अपना दमखम दिखाते थेयही नहीं इस मैदान पर 100 से ज्यादा नेशनल के अलावा 500 से ज्यादा स्टेट और अनगिनत डिस्ट्रिक्ट लेवल के फुटबॉल टूर्नामेंट हुए थे, मगर आज मैदान का जो साइज है इस पर जिलास्तर का मैच होना भी मुश्किल हो गया है.

क्लबों का एक दौर था, जो चला गया

जानकारों की मानें तो बनारस में फुटबॉल का इतिहास काफी पुराना रहा है। 40 वे 50 के दशक में तो यहां इस खेल का अलग जलवा हुआ करता थाउस समय फुटबॉल क्लबों का एक दौर हुआ करता था, जो अब नहीं रहायंगस्टर्स में फुटबॉल के क्रेज को देखते हुए उस समय हर साल दो-तीन क्लबों का जन्म होता थाअब जो एक-दो क्लब हैं भी तो बड़ा मैदान न होने से मैच कराने में मुश्किलों का सामना कर रहे हैंउस पूरे यूपी में यही एक शहर था, जहां के खिलाडिय़ों का संतोष ट्राफी, सुब्रतो कप जैसे बड़े टूर्नामेंट में सेलेक्शन होता था.

उस्ताद में थी फुटबॉल की दीवानगी

फुटबॉल के मामले में कभी बनारस स्पोर्टिंग क्लब का भी जलवा थाइस क्लब से शहनाई वादक भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्ला खां भी फुटबॉल खेला करते थेइस क्लब की नींव दालमंडी के कुछ युवा खिलाडिय़ों ने मिलकर वर्ष 1936 में रखी थीक्लब से जुड़े पूर्व इंटरनेशनल फुटबॉलर नूर आलम की मानें तो कभी जिस मैदान में फुटबॉल के नए पौध जन्म लेते थे, वो अब पूरी तरह से कमर्सियलाइज्ड हो चुका हैकुछ साल पहले तक इस बाजार लगाने और राजनीतिक पार्टियों की रैली व जन सभाओं के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा थाअब उस जगह पर बने स्मार्ट पार्क में सिर्फ एक छोटा सा मैदान बनाकर दिया गया है, जो बड़े मैच के लायक नहीं है

पाक की टीम भी दाग चुकी गोल

साई के पूर्व कोच फरमान हैदर की मानें तो बेनियाबाग की जिस नर्सरी से हर साल सैकड़ों की संख्या में नए पौध जन्म लेते थे, वह पहले तो सूख गई उसके बाद उसे उजाड़कर चमचमाता पार्क बना दिया गया हैइसमें कोई शक नहीं है कि इस पार्क से लोगों को काई लाभ नहीं मिल रहा, लेकिन प्लेयर्स ने जिस फुटबॉल मैदान की उम्मीद की थी, वह पूरी नहीं की गईये वही मैदान है जहां किसी दौर में कई बार हुए नेशनल टूर्नामेंट में इंडिया और पाकिस्तान के बीच भी मैच खेले गए थेउनका कहना हैं कि सिर्फ बनारस ही नहीं पूरे उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी फुटबॉल की नर्सरी को किसी तरह से बचाना हैइसके लिए युवा खिलाडिय़ों को भी आगे आना होगाअगर इसे बचाने का प्रयास न हुआ तो ये लुप्त हो जाएगा

पार्क बनने से पहले स्मार्ट सिटी के डायरेक्टर ने वादा किया था कि फुटबॉल के लिए बड़ा मैदान बनाया जाएगा, लेकिन बाद में वे अपने वादे से मुकर गए और 9 ए साइज का छोटा सा मैदान बना दियाजो बड़े मैच के लिए मुफीद नहीं हैइसके लिए जिला प्रशासन से भी बोला गया, लेकिन कही सुनवाई नहीं हुई.

नूर आलम, इंटरनेशन फुटबॉल प्लेयर

किसी भी खेल को लोकप्रिय बनाए रखने में उसकी लोगों के बीच पहुंच बेहद जरूरी हैक्रिकेट को जितनी प्रसिद्धि दिलाई गई उतनी फुटबॉल को नहींस्पॉन्सर्स की मदद से क्रिकेट तो घरों तक पहुंच जाता है, लेकिन फुटबॉल को लेकर उदासीनता अब भी बनी हुई हैअगर समय रहते इसे बचाने की रणनीति नहीं बनी तो बनारस में फुटबॉल इतिहास के पन्नों पर रह जाएगा.

फरमान हैदर, पूर्व साई कोच