- मऊ की जेबा आफरीन संस्कृत यूनिवर्सिटी से कर रहीं हैं शास्त्री
-प्राच्य विद्या के गूढ़ रहस्यों को जानने का है प्रयास
VARANASI
विदेशियों सहित मुस्लिम महिलाओं को प्राच्य विद्या के गूढ़ रहस्यों को जानने की ललक बढ़ रही है। ये हम नहीं कह रहे बल्कि संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी इसका प्रमाण है। वर्तमान में रूस, इंग्लैंड, म्यांमार, नेपाल सहित विभिन्न देशों के विदेशी छात्र भारतीय संस्कृति व संस्कृत को समझने में जुटे हुए हैं। मऊ की जेबा आफरीन शास्त्री कर रही हैं तो रूस की प्रो। ओल्गा फापेल्को संस्कृत में डिप्लोमा कर रही हैं।
पीछे नहीं मुस्लिम
आज संस्कृत पंडितों की भाषा का भ्रम तोड़ बाहर निकल चुकी है। यह मिथक बहुत पीछे छूट गया है। इसी का परिणाम है कि मऊ की रहने वाली जेबा आफरीन संस्कृत यूनिवर्सिटी से शास्त्री कर रहीं हैं। उन्होंने कक्षा आठ तक की शिक्षा मदरसा से हासिल की है। शास्त्री कर रही जेबा के परिवार वालों का संस्कृत से दूर-दूर तक नाता नहीं हैं। बावजूद जेबा न केवल संस्कृत सीखने व समझने में जुटी हैं बल्कि मुस्लिम महिलाओं को संस्कृत के ज्ञान से परिचित कराने का भी उनका सपना है।
खींच रहा भारतीय दर्शन
रूस की प्रो। ओल्गा फापेल्को को भारतीय दर्शन ने इस कदर प्रभावित किया कि वह संस्कृत पढ़ने के लिए रूस को छोड़कर भारत आ गई। रसीयन प्रेसिडेन्सियल एकेडमी ऑफ नेशन, मास्को रूस की असिस्टेंट प्रोफेसर रह चुकी प्रो। ओल्गा वर्तमान में विश्वविद्यालय से तीन वर्षीय संस्कृत प्रमाणपत्रीय में डिप्लोमा कर रही हैं। उन्होंने बताया कि वह सन् 2003 में पहली बार भारत घूमने आई थी। इसके बाद कई बार विभिन्न व्याख्यानों में भारत आना-जाना हुआ। धीरे-धीरे भारतीय संस्कृति व दर्शन से लगाव बढ़ता गया। अंतत: प्राच्य विद्या के गूढ़ रहस्यों को समझने के लिए संस्कृत विश्वविद्यालय में एडमिशन कराने का निर्णय लिया। संस्कृत पढ़ने का मूल उद्देश्य सनातन धर्म का रूस में प्रचार करना, वेद में निहित प्राचीन ज्ञान विज्ञान को रूसी भाषा में ग्रंथ लिखना है। ताकि रुस के लोग भी भारतीय दर्शन व ज्योतिष के बारे में जान सकें।
दोनों देशों की संस्कृति में है समानता
उन्होंने बताया कि रूस व भारतीय संस्कृति व सभ्यता में काफी समानता है। रूस में कई देवी-देवताओं के प्राचीन मंदिर हैं। रूस व संस्कृत के ग्रामर में भी काफी हद तक मिलते हैं। दोनों देशों के बीच प्रगाढ़ता का भी शायद यहीं कारण है। इन तमाम कारणों से भारतीय संस्कृति व संस्कृत को समझने की इच्छा हुई और संस्कृत पढ़ने काशी आ गई ताकि अध्ययन करने के बाद रूस में संस्कृत का प्रचार-प्रसार कर सकूं।