वाराणसी (ब्यूरो)। शहर एक बार फिर जाम से जूझ रहा है। प्रमुख मार्गों पर दिनभर में कई बार जाम की स्थिति बन रही है। ऐसी स्थिति में दुनिया की सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी का वायु प्रदूषण अक्सर चिंता का सबब बन जाता है। यह समय प्रदूषण नियंत्रण के उपाय न करने के लिए सरकार को कोसा जाता है। इस तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि लोगबाग खुद भी अपनी जिम्मेदारियां नहीं निभा रहे। लापरवाही में छोटे-बड़े वाहनों के चालक सबसे आगे हैं। जिले में 7 लाख से अधिक वाहन चालकों ने इस साल प्रदूषण नियंत्रण का प्रमाणपत्र नहीं लिया है.
11.25 लाख रजिस्टर्ड
जिले में 11.25 लाख दो-तीन व चार पहिया वाहन रजिस्टर्ड हैं। उनमें करीब सात लाख वाहन रोड पर चलते हैं। मानक के अनुसार नई गाड़ी के लिए प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र की वैधता तीन साल की होती है फिर हर छह माह पर प्रदूषण जांच केंद्र पर वाहनों की जांच कराकर प्रमाणपत्र लेना होता है।
पेट्रोल पंपों पर सुविधा
शहर में जगह-जगह पेट्रोल पम्प पर प्रदूषण प्रमाणपत्र बनवाने की सुविधा है, लेकिन कोई रूचि नहीं लेता है। इस साल 1.14 लाख वाहन स्वामियों ने ही प्रमाणपत्र लियेे हैं। जरूरी नहीं कि बाकी बचे सभी वाहन कार्बन मोनोआक्साइड के रूप में जहरीला धुआं ही उगल रहे हों, लेकिन उनके बाबत उठी आशंका को नकारा नहीं जा सकता है.
घर में सजग रहने की जरूरत
हवा में चार माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर कॉबर्न डाई आक्साइड की मात्रा होनी चाहिए, लेकिन इस समय इसकी अर्दली बाजार, भेलूपुर और मलदहिया में मात्रा सौ माइक्रोग्राम से अधिक है। सभी जगह 20 गुना ज्यादा है। इसके अलावा बाहर से ज्यादा लोगों को अपने घर में सजग रहने की जरूरत है। घर में कार्पेेट और डोरमेट पर जमे धूल कणों से भी सांस की नलियों में सृजन होती है। इसलिए उनकी नियमित सफाई होनी चाहिए।
वाहनों के धुंए से शरीर को बेहद नुकसान पहुंचाने वाले हानिकारक तत्व कार्बन मोनो आक्साइड, कार्बन, सल्फर ढाई, ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड निकलते हैं। इससे लोगों को सांस नालियों में सृजन हो जाती है। धीरे-धीरे फेफड़ा खराब होने लगता है.
डॉ। श्याम सुंदर पांडेय, चिकित्साधिकारी
वाहनों की नियमित चेकिंग होती है, जिनके पास भी प्रदूषण से संबंधित सर्टिफिकेट नहीं रहता है, उन पर जुर्माना लगाया जाता है.
सर्वेश चतुर्वेदी, एआरटीओ