वाराणसी (ब्यूरो)। मोबाइल फोन की लत बच्चों से लेकर युवाओं तक पर ड्रग्स जैसा असर डाल रही है। नशे के दुष्प्रभाव के रूप में सामने आने वाली मतिभ्रम की समस्या मोबाइल फोन पर दो घंटे से अधिक वीडियो देखने पर भी खड़ी हो रही है। 5 साल के बच्चों से लेकर 24 वर्ष तक के यंगस्टर्स मनोविकार साइकोसिस (मतिभ्रम) से परेशान होकर मनोचिकित्सकों के पास पहुंच रहे हैं। बनारस में ऐसे केसेस लगातार बढ़ रहे हैं। मंडलीय अस्पताल के मानसिक रोग ओपीडी में डेली 5 से 8 मरीज आ रहे हैं। इन मरीजों में कई मरीज सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, नींद नहीं आना आदि की शिकायत लेकर पहुंच रहे हंै।
लगातार रील देखने से चिड़चिड़ापन हावी
वहीं अस्पताल में बने मन कक्ष विभाग में पहुंच रहे बच्चे और यंगस्टर्स काउंसलिंग के दौरान बता रहे हैं कि रातभर रील्स देखने के कारण वे दो से तीन घंटा ही सो पाते हैं। इसके बाद पता लग रहा है कि रील्स देखने का चस्का इन्हें मानसिक तौर पर बीमार कर रहा है। इसके चलते सिरदर्द और चिड़चिड़ापन जैसी समस्याएं हो रही हैं। ये रील्स इन पर इस कदर हावी हो रहे हैैं कि रात में नींद टूटने पर लोग दोबारा इन्हें देखने बैठ जाते हैं। इससे उनकी नींद से लेकर मेंटल हेल्थ पर बुरा असर पड़ रहा है.
रील बनाने की भी बीमारी
जहां टीनएजर्स और यंगस्टर्स को दिनभर रील्स देखने का रोग लग रहा है, वहीं इससे ज्यादा इसे बनाने वाले भी मानसिक रूप से परेशान हो रहे हैं। ऐसे लोगों को सिर्फ एक मौका मिलना चाहिए। हाल ही में एसडीएम ज्योति मौर्या और उसके पति के विवाद का मामला सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद से ही यंगस्टर्स तरह तरह के मीम्स बनाने के साथ हर रोज नए नए रील्स बनाने में लगे हैं। मनोचिकित्सकों का कहना है कि मोबाइल एडिक्शन का शिकार होकर आने वाले मरीजों की जांच में पता चला है कि अगर ये लोग नए-नए रील्स नहीं बताते हंै तो ये डिस्टर्ब हो रहे हैं। ऐसे स्थिति में वे पैरेंट्स और दोस्तों के साथ मिसबिहैव करते हैं, जिससे परेशान होकर पैरेंट्स मन कक्ष तक पहुंच रहे हैं।
बैटरी खत्म होने तक देख रहे रील्स
मंडलीय हॉस्पिटल के मन कक्ष की काउंसलर रूची चौरसिया की मानें तो मोबाइल के नशे की लत से परेशान होकर आने वाले लोगों की कांउसलिंग के दौरान पता चलता है कि शुरुआत में वे रील्स केवल कुछ समय के लिए देखते थे, पर धीरे-धीरे इन्हें देखने का समय कब बढ़ता गया पता ही नहीं चला। जब तक आंखे खुली हैं और मोबाइल की बैटरी खत्म नहीं हो जाती तब तक ये रील्स देखने में लगे रहते हंै। करीब 50 फीसदी मरीजों ने बताया कि देर रात नींद खुलने पर वे दोबारा रील्स देखने लगते थे.
नींद में मोबाइल चलाता दिखा बच्चा
पिछले दिनों सोशल मीडिया पर फोन के नशे का एक वीडियो वायरल हुआ था। इस वीडियो में एक बच्चा नींद में मोबाइल चलाता दिखा। वो गहरी नींद में सोया था लेकिन उसमें भी उसके हाथ हिल रहे थे। वो लगातार रील्स स्क्रॉल करने की एक्टिंग कर रहा था। इस दौरान बच्चा रो भी रहा था। बच्चे की मां ने उसका ये वीडियो रिकॉर्ड कर लिया। जब इसे सोशल मीडिया पर शेयर किया गया, तब कई लोगों ने इसे आज की दुनिया की दुनिया की असलियत करार दिया। आज के समय में बच्चों को बहलाने के लिए पेरेंट्स इस तरह से फोन दे देते हैं। इसके बाद बच्चों को इसकी लत लग जाती है। सोते हुए बच्चे ने नींद में जो हरकत की, उसे एक्सपर्ट डिजिटल लत बता रहे हैं.
सिंड्रोम जैसा सोशल मीडिया
चिकित्सकों की मानें तो आजकल हर कोई मोबाइल पर इतना व्यस्त हो गया है कि अपने आसपास की चीजों से दूर होता जा रहा है। लोगों ने आपस में बातचीत तक कम कर दी है, जिससे उनमें इमोशनल टच खत्म होता जा रहा है। सोशल मीडिया का चस्का एक सिंड्रोम की तरह बढ़ता जा रहा है। इसमें गेमिंग एफबी, इंस्टाग्राम आदि की लत लग जाना शामिल है। इससे बचाव के लिए काउंसिलिंग के साथ कुछ दवाएं तक दी जाती हैं.
ऐसे करें अपना बचाव
-मोबाइल इस्तेमाल कम करें
-रील्स देखने का समय निर्धारित करें
-फैमिली और फ्रेंड्स से बातचीत करें
-अच्छी बुक्स पढ़ें
-खाना खाते समय परिवार को समय दें
सिर्फ रील्स देखने का ही नहीं लगातार मोबाइल का इस्तेमाल लोगों को मानसिक तौर पर बीमार कर रहा है। इनमें चिड़चिड़ापन, काम में मन नहीं लगना जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं। युवाओं खासकर टीनएजर्स को मोबाइल जरूरत के समय ही इस्तेमाल करने के लिए दें.
डॉ। रविन्द्र कुशवाहा, साइकियाट्रिस्ट, मंडलीय अस्पताल
आज के बिजी लाइफस्टाइल में बच्चों को समय देने की जगह स्मार्ट फोन देने वाले पेरेंट्स अब भी वक्त हैं संभल जाएं। काउंसलिंग के दौरान बच्चे जिस तरह से मोबाइल इस्तेमाल के अपने एक्सपीरिएंस बताते हैं वे उनके स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है.
रूची चौरसिया, कांउसलर, मन कक्ष विभाग-मंडलीय अस्पताल