वाराणसी (ब्यूरो)। पीएम मोदी ने कहा, भारत एक विचार है तो संस्कृत उसकी प्रमुख अभिव्यक्ति। भारत एक यात्रा है तो संस्कृत उसका प्रमुख अध्याय। भारत विविधता में एकता की भूमि है तो संस्कृत उसका प्रमुख उर्वरक है। हमारे यहां कहा गया है कि भारतस्य प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतं संस्कृतिस्तथा, अर्थात भारत की प्रतिष्ठा में संस्कृत की बड़ी भूमिका है। एक समय हमारे देश में संस्कृत ही वैज्ञानिक शोध, शास्त्रीय बोध, गणित और चिकित्साविज्ञान की भाषा होती थी। साथ ही संगीत और साहित्य के विविध कलाओं की विधाएं भी संस्कृत से ही पैदा हुई हैं। इन्हीं विधाओं से भारत को पहचान मिली है। वे शुक्रवार को बीएचयू के स्वतंत्रता भवन समागार में आयोजित सांसद संस्कृत प्रतियोगिता के पुरस्कार समारोह को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने काशी में होने वाली रिसर्च पर भी बात की।
यहां लगती ज्ञान की डुबकी
पीएम ने कहा, महामना के इस प्रांगण में सभी विद्वानों खासकर युवा विद्वानों के बीच आकर ज्ञान की गंगा में डुबकी लगाने जैसा अनुभव हो रहा है। काशी समय से भी प्राचीन कही जाती है। इसकी पहचान को हमारी आधुनिक युवा पीढ़ी इतनी जिम्मेदारी से सशक्त कर रही है, ये दृश्य हृदय में संतोष भर देता है। यहां से युवा छात्र-छात्राओं ने अपने अनकों रिसर्च से भारत का पूरी दुनिया में मान बढ़ाया है। यहां विदेशों से भी बच्चे शोध के लिए आ रहे हैं और कुछ आने को आतुर भी हैं.
दुनिया में शोध की चर्चा
पिछले कुछ सालों में बनारस की यूनिवर्सिटी में रिसर्च के लिए आने वाले शोधार्थियों ने कई ऐसे शोध किए हैं, जिसकी चर्चा पूरी दुनिया में की जा रही है। बता दें कि विज्ञान के क्षेत्र में एकेडमिक ग्रेडिंग देने वाली संस्था रिसर्च डॉट कॉम की 2022 की वल्र्ड रैंकिंग में बीएचयू के 7 वैज्ञानिकों को जगह मिल चुकी है। इसके अलावा इस संस्था के कई शोधार्थियों ने वैश्विक स्तर का रिसर्च किया है। कोरोनाकाल में बीएचयू के सिंगल डोज वैक्सीन के अध्ययन को वैश्विक पहचान मिली थी। यह अध्ययन बताता है कि पूर्व में कोरोना संक्रमित लोगों में कोवैक्सीन और कोविशील्ड की पहली डोज के कुछ दिन बाद ही एंटीबाडी बनकर तैयार हो गई। जबकि गैर-संक्रमित में दोनों डोज लेने के तीन सप्ताह उपरांत एंटीबाडी बन रही थी। वहीं आइएमएस-बीएचयू के रिसर्च ग्रुप को जीका वायरस के मस्तिष्क में पहुंचने का कारक की खोज कर बड़ी कामयाबी मिली थी। यह शोध प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल बॉयोकेमी में प्रकाशित भी हुई है.