वाराणसी (ब्यूरो)। दुनिया बदलने के लिए शिक्षा सबसे मजबूत तंत्र है। पुरातनकाल से ही शिक्षा हर सभ्यता का जरूरी हिस्सा रही है। समय और बदलते जमाने के साथ शिक्षा का स्वरूप भी बदला है। शिक्षा की एक ऐसी ही प्राचीन प्रणाली जो दुनिया के पूर्वी हिस्से से शुरू हुई और आज भी प्रेरणा का जरिया बनी हुई हैवो है गुरुकुल शिक्षा प्रणाली। आज हम आपको थोड़ा प्राचीन काल की शिक्षा व्यवस्था की ओर ले चलेंगे और गुरुकुल शिक्षा प्रणाली को समझाने के साथ बताएंगे कि मॉडर्न होती इस दुनिया में आज भी धर्म की नगरी में एक ऐसा शिक्षण संस्थान है, जो प्राचीन काल की शिक्षा को जीवित करने का प्रयास कर रही है। सर्व शिक्षा की राजधानी कहे जाने वाले बनारस में यह संस्था किस तरह से अपनी छात्राओं को उस दौर में ले जाकर उससे उनका जुड़ाव बढ़ा रहा है, हम यह भी आपको बताएंगे। पढि़ए अजय गुप्ता की यह स्पेशल रिपोर्ट
देखते ही याद आएगी वैदिक परंपरा
योग, साधना, यज्ञ, ज्ञान के लिए गुरुकुल और उसके वैदिक पद्धति को एक अभिन्न अंग माना जाता है। जिस तरह से वहां हर विद्यार्थी हर प्रकार के कार्य को सीखता है और शिक्षा पूरी होने पर अपना काम रूचि और गुण के आधार पर चुनता था। उसी तरह की व्यवस्था को राजघाट स्थित बसंता कॉलेज फॉर विमेंस में भी फॉलो किया जा रहा है। कॉलेज की छात्राएं पुराकाल की वैदिक परंपरा के साथ ज्ञान प्राप्त कर रही हैं। यहां की छात्राओं के लिए की गई ओपन क्लास के सेटअप को देखने के बाद आपको उस दौर की याद जरुर जाएगी, जब हमारे ऋषिमुनि आश्रमों में स्थापित गुरुकुल में अपने शिष्यों को ज्ञान देते थे.
हरियाली के बीच पढऩे का अलग एहसास
वरुणा नदी और मां गंगा के सुरम्य संगम तट पर स्थित सैकड़ों हरे-भरे विशाल वृक्षों और पौधों की मनोरम छाया के बीच स्थापित इस कॉलेज में छात्राओं के लिए उसी तरह से पेड़ों के नीचे सेटअप लगाया गया है। जिस तरह से गुरुकुल में बैठकर गुरु अपने शिष्यों को ज्ञान देते थे। यहां रेड कलर का झोपड़ीनुमा सेड लगाया गया है, जिसे नाम दिया गया है ओपन क्लास। चारों तरफ छाई हरियाली बीच बने इस हाईटेक ओपन क्लास (गुरुकुल) में छात्राओं के लिए सीमेंटेड चेयर और टेबल के साथ आचार्य (प्रोफेसर) के बैठने के लिए छात्राओं के ठीक सामने सिंगल चेयर लगाया गया है। जिस पर बैठकर यहां के प्रोफेसर लेक्चर (ज्ञान) देते हैं। वहीं यहां छात्राओं को इस प्रकार का वातावरण दिया गया है कि वे अपने पसंद के काम के साथ एक सफल स्टूडेंट बन जाए।
अपने गुरुकुल पर छात्राओं को है नाज
कॉलेज में इस तरह की परंपरा पर नाज करने वाली यहां की छात्राएं कहती है कि गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है, गुरु ही भगवान शंकर और गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को हम प्रणाम करते है। जिसने आज भी इस वैदिक परंपरा को जिंदा रखने का प्रयास किया है। प्रोफेसर ऋचा सिंह कहती है कि गुरुकुल शब्द ही हमें उस वातावरण का बोध कराता है, जिस वातावरण में भगवान श्रीकृष्ण-सुदामा और राम-लक्षमण ने गुरुकुल में जाकर ज्ञान प्राप्त किया था। उसी तरह से प्राकृतिक सौंदर्य के बीच खुशनुमा माहौल में यहां की छात्राएं ज्ञान प्राप्त कर रही है। आज के दौर में खुले आकाश और हरियाली के बीच पढ़ाई करना मानसिक और शारीरिक तौर पर हमारी छात्राओं की सेहत को भी बरकरार रखता है। खास बात ये भी है कि उसी सभ्यता के अनुसार यहां भी विद्यार्थियों के कक्षा को चार श्रेणियों में विभाजित किया गया है। इन सबका नामकरण विदुषियों के नाम पर किया गया है। जिसमें उभय भारती संवादशाला, अनुपाला ज्ञान भारती, लोपा मुद्रा ज्ञान सिंदूर और गार्गी शाला है।
और क्या होता है ओपन क्लास में
जहां क्लास रूप में छात्राएं अलग-अलग सब्जेक्ट को पढ़ती है। वहीं इस ओपन क्लास में प्रोफेसर अलग-अलग टॉपिक पर लेक्चर देते हैं। जिस तरह से आचार्य अपने शिष्यों को ज्ञान देते थे, उसी तरह से यहां भी चारों क्लास में अलग-अलग सब्जेक्ट पर चीजों को विजिविलाइज्ड कर समझाया और बताया जाता है.
कृष्णमूर्ति भी पेड़ के नीचे देते थे प्रवचन
इस कॉलेज की स्थापना 1913 मे डॉ। एनी बेसेंट ने की थी। इसके बाद महान दार्शनिक जे। कृष्णमूर्ति ने 1954 मे कॉलेज को वर्तमान परिसर में स्थानांतरित करके इसे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति दिलाई। प्रो। अंजना सिंह बताती है कि जे। कृष्णमूर्ति जब यहां आते थे तो पेड़ के नीचे बैठकर छात्राओं को प्रवचन देते थे। उसी सिस्टम को आज भी फॉलो किया जा रहा है। सीधे तौर पर कहे तो चीज वहीं है बस पैकेट नया है।
इस शिक्षा प्रणाली का खास उद्देश्य
-छात्राओं का सम्पूर्ण विकास
-छात्राओं का व्यक्तित्व विकास
-आध्यात्मिक जाग्रति
-प्रकृति और समाज के प्रति जागरूकता
-पीढ़ी-दर पीढ़ी ज्ञान और कल्चर को आगे बढ़ाना
-जीवन में सेल्फ कंट्रोल और अनुशासन
ऐसे होती थी गुरुकुल में पढ़ाई
-गुरुकुल प्राचीन शब्द है। ये शब्द संस्कृत भाषा से लिए गया है.
-इसमें वेदों के साथ गणित, विज्ञान, अंग्रेजी, अर्थशास्त्र की शिक्षा भी प्रदान की जाती है.
-गुरुकुल का प्रमुख उद्देश्य सामाजिक मानकों के बावजूद हर छात्राओं के साथ समान व्यवहार करना.
-गुरुकुल में छात्रों चार श्रेणियों में विभाजित किया जाता था.
गुरुकुल शिक्षा प्रणाली की क्यों थी अहमियत
1-प्राकृतिक वातावरण में अहम जानकारी देना, जिससे समाज पर कोई गलत प्रभाव न पड़े।
2-एक्स्ट्रा करिकुलम एक्टिविटी जैसे खेल, योग और चहलकदमी पर फोकस करना।
3-लर्निंग स्किल में क्राफ्ट, डांसिंग या सिंगिंग पर जोर और हर छात्र में उनके स्किल को विकसित करना।
5-पर्सनालिटी डेवलपमेंट, बौद्धिकता और आत्म विश्वास पर काम किया जाता था। छात्र अपने विकास के लिए सोचने की योग्यता भी विकसित कर लेते थे.
जितने बच्चे ऐसे वातावरण में सीख लेंगे उतना दीवारों के बीच नहीं। हमारे संस्थापक जे। कृष्णमूर्ति की सोच थी कि बच्चों को बिल्कुल नेचर के पास रखना चाहिए। अगर वे मिट्टी से पत्तों और हवा की सरसराहट से, पानी के गिरने की आवाज से जुड़े रहेंगे तो उनकी ग्रोथ बहुत ही अच्छी व हेल्दी होगी। उनके इसी विचार को आत्मसात करने का प्रयास किया जा रहा है.
प्रो। अलका सिंह, प्राचार्य, बसंता कॉलेज फॉर विमेंस
हमारी सभ्यता और गुरुकुल की भारतीय परंपरा पहले से ही थी। उसी सभ्यता को हम आगे बढ़ा रहे हैं। यह एक ऐसा खुला प्लेटफार्म है, जहां कोई भी प्रोफेसर आकर लेक्चर देता है। लिट्रेचर के सबसे ज्यादा। यह बहुत ही उम्दा परंपरा है, जिसे अन्य स्कूल-कॉलेज को भी फॉलो करना चाहिए.
प्रो। अंजना सिंह, बसंता कॉलेज फार विमेंस
गुरुकुल की तरह ओपन क्लास में बहुत कुछ सीखने को मिलता है। खुले वातावरण में चेक्चर सुनने से मानसिक स्वास्थ्य पर काफी प्रभाव पड़ता है। इससे हमें जो पॉजिटिव एनर्जी मिलती है, उसका असर हमारे विचारों और पढ़ाई पर भी दिखता है.
श्रियांशी धनुवंशी, स्टूडेंट
प्राकृति से भरे सौंदर्य के साथ एक स्वतंत्र वातावरण में लेक्चर सुनना अलग तरह की अनुभूति होती है। यह मानसिक और शारीरिक तौर पर स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है। आकाश के नीचे बैठकर मिलने वाला ज्ञान व्यक्तित्व के विकास पर भी प्रभाव डालती है.
अनंता पोद्दार, स्टूडेंट