वाराणसी (ब्यूरो)। अस्थमा रोगियों पर इन्हेलर बेअसर साबित हो रहा हैं। बार-बार इन्हेलर लेने के बाद भी उन्हें आराम नहीं मिल रहा। इसे 'गंभीर अस्थमाÓ की स्थिति कहा जाता है। इस तरह के मामलों में, अस्थमा का अटैक बार-बार आता है और मरीज को बार-बार अस्पताल जाना पड़ता है। लगभग 10 परसेंट अस्थमा के मरीजों को गंभीर अस्थमा की समस्या होती है और उन्हें दवा आधारित कोर्टिकोस्टेरॉइड से फायदा नहीं मिलता। बायोमेडिकल अध्ययनकर्ताओं ने बार-बार आने वाले अस्थमा के अटैक और अस्पताल के बार-बार लगने वाले चक्करों को कम करने के लिए काफी पहले ब्रॉन्क्रियल थर्मोप्लास्टी विकसित कर दी है, लेकिन चेस्ट स्पेशलिस्ट इसे महंगा उपचार मानते हैं। एसएस हॉस्पिटल बीएचयू के चेस्ट एंड टीबी डिपार्टमेंट के पूर्व एचओडी डॉ। एसके अग्रवाल का कहना हैं कि आज भी अस्थमा रोगियों को इन्हेलर का सही इस्तेमाल का तरीका नहीं पता है। ना इनका इलाज करने वाले उन्हें इसके इस्तेमाल के बारे में सही जानकारी देते हैं।
60 परसेंट यंग वीमेन को अस्थमा
बनारस में अस्थमा पेशेंट्स की संख्या घटने के बजाय बढ़ती जा रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह पॉल्यूशन और डस्ट है। महानगरों की तरह यहां भी पॉल्यूशन लेवल हाई ही रहता है। विकास कार्य के चलते शहर में हर तरफ मिट्टी और धूल का गुबार है, जिसका असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। एसएस हॉस्पिटल बीएचयू से लेकर मंडलीय और जिला अस्पताल के चेस्ट विभाग में डेली चार से 500 मरीज सांस और अस्थमा के इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। खास बात ये है कि इसमें महिलाओं की संख्या सबसे ज्यादा है। चेस्ट स्पेशलिस्ट डॉ। एसके अग्रवाल ने बताया, उनकी ओपीडी में आने वाले 100 में 50 पेशेंट अस्थमा के होते हैं। इसमें भी 60 फीसदी यंग वीमेन हंै। इन्हें ये बीमारी होती है और इनको पता तक नहीं होता। मैरिड वीमेन्स के हसबैंड भी उनकी समस्या को नहीं पहचान पाते। इसके अलावा 20 प्रतिशत यंग और 20 बुजुर्ग इस बीमारी की चपेट में है।
एयर वेज तक वही दवा जिनका साइज 1.5 माइक्रान
डॉ। अग्रवाल का कहना हैं कि 10 साल पहले ही उन्होंने अपने एक रिसर्च में दमा के मरीजों को लेकर सच एक सामने लाया था। जिसमें बताया गया था कि देश के 80 परसेंट लोग इनहेलर से निकलने वाली दवा को फेफड़े के बजाय पेट में पहुंचा रहे हैं। उनका दावा है कि आज भी लोग अस्थमा के इलाज में इन्हेलर का गलत ढंग से इस्तेमाल करते हैं और दवा को पेट में पहुंचा देते हैं। यही वजह है कि उनकी बीमारी समय पर ठीक नहीं हो रही, जबकि यह बीमारी ठीक हो सकती। उन्होंने बताया कि इनहेलर से जो दवा के कण निकलते हैं, वो 2 से 5 माइक्रान के होते हैं, जो मरीजों के लिए उतने कारगर नहीं होते। श्वास नली के स्माल एयर वेज तक वही दवा के कण पहुंच सकते हैं, जिनका साइज 1.5 माइक्रान के आस-पास हो। यही कण जब सही स्थान तक नहीं पहुंचते, तो बीमारी लगातार बनी रहती है। कभी-कभी स्वास नली में सूजन भी आ जाती है। आज 100 तरह के इन्हेलर मार्केट में आ चुके है, जिनसे दो माइक्रान से कम की दवा के कण निकल सकते है। लेकिन जो लोग इन्हेलर का सही इस्तेमाल नहीं कर पाते उनकी बीमारी बनी रह रही है।
अस्थमा से दूसरी बीमारियों का बढ़ता है खतरा
एक्सपर्ट बताते हैं कि बार-बार अस्थमा का अटैक आने से सांस नली का आकार बदल जाता है। इस स्थिति में सांस नली संकरी हो जाती है, उनमें सूजन आ जाती है और अतिरिक्त मात्रा में म्यूकस बनता है। जिन लोगों का बॉडी मास इंडेक्स ज्यादा होता है, उनमें सामान्य की तुलना में सांस नली में एलर्जन के प्रति संवेदनशीलता ज्यादा होती है, यह भी सांस नली के सिकुडऩे की एक और वजह होती है। गंभीर अस्थमा केवल सांस नली के सिकुडऩे से लेकर उसमें होने वाली सूजन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके साथ अन्य समस्याएं भी होती हैं, जैसे स्लीप एप्निया और मोटापा।
इन कारणों से भी अस्थमा
डॉ। अग्रवाल कहते हैं कि तंबाकू से होने वाला धुआं, एलर्जी, सांस संबंधी संक्रमण, गंभीर शारीरिक या मानसिक तनाव और पर्यावरणीय ट्रिगर्स, गंभीर अस्थमा होने के कुछ कारण हैं। गंभीर अस्थमा के मरीजों को कई बार दवाओं से फायदा नहीं पहुंचता, लेकिन अब इतने तरह की दवाएं आ गई है कि इसे दवाओं के सेवन से ठीक किया जा सकता है। हां बस मरीज को अपने दवा के कोर्स पर पूरा ध्यान रखने की आवश्यकता है। कितनी डोज लेनी और कब लेनी है ये भी एक बड़ा फैक्टर है। ज्यादा मात्रा में दवा नुकसानदायक हो सकता है।
गंभीर अस्थमा के लक्षण
- सांस फूलने की समस्या बढ़ते जाना.
- सीने में दर्द और जकडऩ बढऩा.
- बार-बार खांसी आना.
- इन्हेलर लेने के बाद भी आराम ना मिलना.
- सांस लेने के साथ आवाज आना, आदि.
ये भी है संकेत
- महिलाएं में लगातार खांसते खांसते प्रेशर पडऩे पर पेशाब बाहर आ जाता है। इसे मेडिकल की भाषा में स्ट्रेस इनकॉन्टिनेंस कहते हैं।
- पुरुषों में लगातार खांसी आने पर चक्कर आने लगता है और वे गिर जाते हैं।
- बच्चों में लगातार खांसी आने पर पेट का खाना बाहर आ जाता है। ऐसा होने का संकेत है कि आपको अस्थमा है।
फेफड़ों को स्ट्रॉन्ग बनाने के लिए खाएं ये फूड
अस्थमा अटैक से बचने के लिए फेफड़ों को मजबूत बनाना चाहिए। इसके लिए डाइट में विटामिन डी देने वाले फूड (सैल्मन मछली, अंडे, दूध), विटामिन ए वाले फूड (गाजर, शकरकंद, पालक, ब्रॉकली), मैग्नीशियम वाले फूड (पालक, कद्दू के बीज, डार्क चॉकलेट), सेब, केला खाना चाहिए। इसके साथ ही लाइफस्टाइल को चेंज करने के साथ डायट और एक्सरसाइज पर भी फोकस होना चाहिए।
आज भी ज्यादातर पेशेंट बिना स्पेसर के ही इन्हेलर का सेवन करते हैं। जल्दबाजी में झटके से इन्हेलर का इस्तेमाल करते हैं, जिसकी वजह से दवा फेफड़े के बजाय पेट में पहुंच जाती है। चिकित्सक की सही सलाह से स्पेसर का इस्तेमाल करना चाहिए। सिटी का जिस तरह का वातावरण है इससे यहां दमा के केसेस बढ़ रहे हैं। इसमें महिलाओं की संख्या ज्यादा है।
डॉ। एसके अग्रवाल, पूर्व एचओडी, चेस्ट एंड टीबी डिपार्टमेंट-बीएचयू