वाराणसी (ब्यूरो)। काशी के लक्खा मेलों में शुमार नाटी इमली के विश्व प्रसिद्ध भरत मिलाप की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। जहां भरत मिलाप के लिए बने स्थान को पेंट करके तैयार कर दिया गया है, वहीं विराजने के लिए मखमल की टाट मंगाई गई है। मैदान में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए मैदान से मुख्य द्वार की ओर से बैरिकेडिंग का काम भी पूरा हो चुका हैै। साथ ही पूरे मैदान में साफ-सफाई भी कर दी गई है। लीला के अवसर पर कुंवर अनंत नारायण सिंह भी उपस्थित रहेंगे.
दशहरा के अगले दिन उत्सव
काशी में मनाए जाने वाले अनेक उत्सवों में सेे एक भरत मिलाप का आयोजन विजयदशमी के अगले दिन भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अपने प्रिय भाई भरत से पुनर्मिलन का उत्सव है। 462 वर्ष पूर्व गोस्वामी तुलसीदास के शिष्य मेघाभगत ने भरत मिलाप लीला मंचन के अंत में मूर्छित होकर प्राण त्याग दिया था। इस मार्मिक दृश्य से अभिभूत होकर काशी नरेश के भरत मिलाप के अवसर पर सम्मिलित होने की परंपरा बन गई। ऐसी लोक मान्यता है, कि स्वयं भगवान अपने स्वरूपों के माध्यम से शिवनगरी में प्रकट होकर अपने भक्तों को दर्शन देते हंै.
सालों से चल रही परंपरा
काशी में सालों से लगातार भरत मिलाप की परंपरा चली आ रही है। नाटी इमली का भरत मिलाप सिर्फ काशी में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैै। लीला के 474वें संस्करण के लिए भरत मिलाप मैदान सजना शुरू हो गया है। हालांकि पुलिस चौकी के बगल में कबाड़ पड़ा हुआ है और भरत मिलाप में बस दो दिन ही बचे हैं। समिति के व्यवस्थापक पं। मुकुंद उपाध्याय ने कबाड़ के लिए आपत्ति जताई है। तेज ध्वनि में गाना बजाने पर भी रोक है.
4:40 पर शुरू होती है लीला
लीला को देखने के लिए काशी नरेश भी पहुंचते हैं। मान्यता है कि भरत ने संकल्प लिया था, यदि आज मुझे सूर्यास्त के पहले भगवान राम के दर्शन नहीं हुए तो प्राण त्याग दूंगा, इसीलिए यह लीला सूर्यास्त के पहले 4:40 पर होती है। ठीक 4 बजकर 40 मिनट पर जैसे ही सूर्य की किरणें भरत मिलाप मैदान के एक निश्चित स्थान पर पड़ती हैं तो भगवान राम और लक्ष्मण दौड़ कर भरत और शत्रुघ्न को गले लगाते हैं। भरत मिलाप होने के बाद प्रभु राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, माता सीता और वानरी सेना को रथ समेत यदुवंशी नाटी इमली बड़ा गणेश अयोध्या पहुंचाते हैं.
यदुवंशी कंधे पर ले जाते हैैं वजनी रथ
हजारों किलो वजनी रथ को यदुवंशी अपने कंधे पर लेकर जाते हैं। इस परंपरा को पुण्य मानने वाले यादव समाज के सैकड़ों युवा भी विशेष परिधान और सिर पर साफा बांध कर पहुंचते हैं। हजारों किलों के इस रथ को नाटी इमली से बड़ा गणेश तक घुमावदार गलियों से लेकर जाते हैै। रास्ते भर लोग रथ पर फूलों की वर्षा भी करते रहते हैं.