वाराणसी (ब्यूरो)। कई दशक बाद शुद्ध सावन सोमवार और शुभ योग में नागपंचमी का महासंयोग 21 अगस्त को बना है। सनातन धर्म के संविधान में सावन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपूजन का विधान है। इसलिए इसे नागपंचमी कहते हैं। शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि सोमवार को रात्रि 09:54 मिनट तक रहेगी.
हर घर की ड्योढ़ी पर नाग देवता
सोमवार को मुंह अंधेरे ही गली हो या सड़क, परंपरागत मोहल्ले हों या शहरी कॉलोनी हर जगह से छोटे गुरु और बड़े गुरु्र की गूंज उठेगी। हर घर की ड्योढ़ी पर नाग देवता के चित्र सजेंगे और उन्हें दूध और लावा का भोग चढ़ेगा। इतना ही नहीं जगह-जगह होगा महुअर का खेला होगा और अखाड़ों में पहलवान ताल भी ठोकेंगे। मुहल्लों में नाग देवता का चित्र बेचने के लिए छोटे गुरु का बड़े गुरु का नाग लो भाई नाग लो की हांक लगाते बच्चों की टोली निकल पड़ेगी.
कौन है छोटे गुरु
कौन हैं यह छोटे गुरु और बड़े गुरु। बड़े गुरु यानि अष्टाध्यायी के रचनाकार महर्षि पाणिनि और छोटे गुरु यानि अष्टाध्यायी पर महाभाष्य लिखने वाले ऋषि पतंजलि। कहा जाता है कि महर्षि पाणिनि को शेषनाग ने व्याकरण की शिक्षा दी थी। इसी कथा को नागपंचमी से जोड़ा गया है.
नागकुंआ का होगा दर्शन-पूजन
काशी में नागपूजा कब से शुरू हुई, इसका कोई लिखित प्रमाण नहीं है लेकिन महाजनपद काल और बुद्ध के काल में भी नागों की पूजा का उल्लेख मिलता है। जैतपुरा स्थित नागकुआं पर मेला लगेगा। यहां दर्शन-पूजन के लिए भीड़ उमड़ेगी। वहीं, उत्तर प्रदेश नागकूप शास्त्रार्थ समिति द्वारा इस वर्ष भी राष्ट्रीय शास्त्रार्थ संगोष्ठी का आयोजन किया गया है। इसके अलावा संस्कृत पाठशालाओं में इस दिन शास्त्रार्थ भी होते हैं.
जैतपुरा स्थित नागकूप में सोमवार को भक्तों की भारी भीड़ होगी। इस दिन शास्त्रार्थ भी होगा। सुबह से कुंड के अंदर नागपूजा करने वालों की भीड़ आनी शुरू हो जाती है.
कुंदन पांडेय, आचार्य