वाराणसी (ब्यूरो)। शहर में आबादी की रफ्तार से दिन-प्रतिदिन गाडिय़ों की संख्या भी बढ़ रही है। गाडिय़ों को खड़ी करने की जगह हो या न हो, लेकिन एक घर में दो से तीन वाहन देखे जा सकते हैं। यही वजह है कि बनारस आरटीओ में रजिस्टर्ड वाहनों की संख्या करीब 12 लाख तक पहुंच गई है।
एक लाख रोज आते हैं
इसके साथ शहर में हर दिन एक लाख से अधिक गाडिय़ां बाहर से भी आती हैं। निश्चित ही ये वाहन हमारी जरूरत हंै, लेकिन जिस तरह से इनकी संख्या में ग्रोथ रहा है, यह टै्रफिक जाम का मुख्य कारण बनकर सामने आ रहा है। पिछले दो दशक की बात करें तो शहर में कुछ फ्लाईओवर और आरओबी जरूर बने हैं, लेकिन सड़कों की संख्या वही है। ऐसे में जाम लगना लाजिमी है। जाम से निजात के लिए हर दिन नये जतन होते हैं, लेकिन वाहनों की संख्या के आगे सब फेल हो जाता है।
ई-रिक्शा बने मुसीबत
ट्रैफिक महकमे के आंकड़ों पर नजर डालें तो मौजूदा समय में बनारस की सड़कों पर 18,475 ई-रिक्शा दौड़ रहे हैं। गैर-सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इनकी तादाद 25 हजार से ज्यादा है। इनके अलावा 15 हजार से अधिक ऑटो वाले भी फर्राटा भर रहे हैं। इन्हें जब लाइसेंस और परमिट बांटा जा रहा था, तब तय किया गया था कि शहर में इनकी तादाद 6,500 से 7,000 से ज्यादा नहीं होगी। पुलिस और परिवहन अफसरों की चुप्पी के चलते बनारस की सड़कों पर वैध-अवैध ई-रिक्शा की बाढ़ आ गई है। चौक, मैदागिन, गोदौलिया, दशाश्वमेध घाट, विश्वेश्वरगंज, रेवड़ी तालाब, बीएचयू, लंका, सारनाथ, कमच्छा, अस्सी घाट, लंका समेत तीन दर्जन से अधिक इलाकों में आवागमन के प्रमुख साधन सिर्फ आटो और ई-रिक्शा हैं।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट तीन गुना
पब्लिक कनवेंस के लिए हम सभी ऑटो, कार, बस आदि का यूज करते हैं। निश्चित ही पॉपुलेशन बढऩे के साथ ही इनकी डिमांड भी तेजी से बढ़ी है, लेकिन इनकी संख्या जितनी तेजी से बढ़ी है वह शॉकिंग है। जी हां, जहां 2012 में मात्र पांच हजार ऑटो थे, वहीं अब इनकी संख्या तीन गुना से ज्यादा हो गई है, लेकिन आरटीओ के रिकार्ड में यह संख्या बहुत कम है। इसी तरह कार व बस की रफ्तार बढ़ी है.
एक दशक में दो गुना
दस वर्ष पहले 2012 में वाहनों की संख्या पर नजर डालें तो पाएंगे कि शहर में वाहनों की संख्या करीब पांच लाख थी, लेकिन आज का आंकड़ा देखें तो पाएंगे कि इस समय में शहर में करीब 12 लाख वाहन सड़कों पर दौड़ रहे हैं निश्चित ही यह संख्या दो गुना से ज्यादा है।
शहर की सड़कों और इंफ्रास्ट्रक्चर में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है, जबकि वाहनों की संख्या दोगुना से अधिक हो गई है। यह खुद ब खुद साबित करता है कि शहर का ट्रैफिक स्मूथ क्यों नहीं हो पा रहा है। इसके लिए ग्राउंड लेवल पर काम करने की जरूरत है। तभी यह समस्या हल होगी.
दिनेश पुरी, एडीसीपी