-संघ समागम में संघ प्रमुख ने स्वयंसेवकों को किया संबोधित

- कहा, हमारी राष्ट्रीयता किसी सत्ता से नहीं जुड़ी है, यहां से नहीं मिलता टिकट

- मुस्लिम महिलाओं ने स्वयंसेवकों पर की पुष्पवर्षा

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत रविवार को अपने आलोचकों को खुले मंच से जवाब देने के साथ ही स्वयंसेवकों को एक-एक शब्द में पूरा संदेश दिया। सरसंघचालक अपने वाराणसी प्रवास के दौरान संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय कैंपस में स्वयंसेवकों को संबोधित कर रहे थे। कहा कि इन दिनों हमारे बयानों की बड़ी चर्चा होती है। लेकिन हम इन चर्चाओं पर तो जरा भी ध्यान नहीं देते। हमे सिर्फ अपने काम पर ध्यान देना है।

संघ में केवल देने का काम

हम राष्ट्र भक्त हैं। हमारी राष्ट्रीयता किसी सत्ता से जुड़ी नहीं है। संघ में केवल देने का काम होता है। यहां टिकट-विकट नहीं मिलता। आप केवल खटते रहेंगे, कभी गले में एक माला क्या एक फूल भी नहीं पड़ेगा। हम स्वयंसेवक को कुछ मिलना जुलना नहीं है। हमें तो राष्ट्र की सेवा करनी है और हम करते ही रहेंगे। हमको किसी से भी कोई अपेक्षा नहीं है।

भारत का भाग्योदय करना है

हमें ऐसा भारत खड़ा करना है जो विश्व पटल पर अपनी शक्ति दिखा सके। हमको तो भारत का भाग्योदय करना है लेकिन ऐसा ना हो कि भारत ही बदल जाये। उन्होंने कहा कि भारत का बड़ा महत्व है। दुनिया में अच्छा डॉक्टर खोजना है तो लोग भारत के डॉक्टर ढूंढते हैं। हमारे साथ किसी को भी व्यापारिक संबंधों की निगरानी नही करनी पड़ती है। हम कर्म करते हैं।

रोजी-रोटी के लिए विरोध

कहा कि कुछ लोग संघ का विरोध इसलिए करते हैं कि उनकी रोजी-रोटी चले। पर ये विरोधी मुट्ठी भर ही हैं.अब अधिक सावधान होकर चलना पड़ेगा। क्योंकि जमीन उबड़-खाबड़ है। विरोध करने वाले भी हमारे हैं, उनको भी जोड़ना है। सम्पूर्ण समाज हमारा है। हिंदुत्व के आधार पर सारे देश को जोड़ना है। दुनिया के देशों को नई राह देना हमारा लक्ष्य है। किसी महापुरुष, अवतार और पार्टी विशेष होने के कारण कभी लाभ नहीं होगा। उत्थानकर्ता की आवश्यकता ही न पड़े। आपसी भेद और स्वार्थ को त्यागना ही होगा।

भारत ने ज्ञान, विज्ञान, गणित दिया

हम कभी दुनिया के सिरमौर थे। नौंवी सदी के बाद हम गिरते गए। हमने किसी देश की संस्कृति सभ्यता को नष्ट नहीं किया। उनको ज्ञान, विज्ञान, गणित दिया। भारत में पिछले 200 वषरें में जितने महापुरुष हुए उतने पूरी दुनियां में नही हुए। उन्होंने महात्मा गांधी की तारीफ की। भारत भाग्य उदय के प्रयास में भी भारत भारत ही रहे इसकी आवश्यकता है। क्या भारत नाम भर के लिए नाम है? क्या दुनिया के बाकी देश भी ऐसे हैं? जन, जंगल और जमीन मिलकर देश बनता है। नदी, गाय और तुलसी भी माता हैं, क्योंकि वो हमें देती हैं। हमारे पूर्वजों ने ऐसा नहीं कहा कि सारी दुनिया को जीतो। कहा कि जीवन जीने की कला पूरी दुनिया मे देना तुम्हारा काम है। सनातन धर्म को हिन्दू धर्म लोग कहते हैं। यह हमसे चिपक गया।

भारतीयों को चीनी आदर से देखते हैं

चीन के संग नोक-झोंक चलती रहती है, लेकिन वहां की जनता हमें आदर से देखती है। हमारे लोग उन दिनों जब यातायात के साधन से दूर थे। पैदल चल कर दुनिया के सुदूर देश तक चले गए। जहां-जहां हम गए वहां हमने ज्ञान प्रदान किया, संस्कृति का आदान-प्रदान किया, आयुर्वेद दिया। विविधता में एकता देखना यही जीवन का परम सत्य है। भारत के धर्म की संस्कृति जात-पात, खान-पान पूजा से कोई संबंध नहीं है। हम रामकृष्ण, बुद्ध महावीर, विवेकानन्द, डॉ अंबेडकर का स्मरण करते हैं, क्योंकि इन लोगों ने संस्कृति को कायम रखा है। कहा कि संघ में जाने वाला बालक भी अपनी पाठशाला में लोगों की नजर में होता है वो जैसा करेगा लोग भी वैसा करेंगे। इसलिए हमें अधिक सावधान होकर चलना पड़ेगा। समाज में हर हिन्दू हमारा भाई है, उसके दुख को दुख और सुख को सुख हम मानते हैं।

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मुस्लिम महिलाओं ने किया स्वागत

संस्कृत विश्वविद्यालय के ग्राउंड पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्यक्रम 'संघ समागम' रविवार को अपने नियत समय पर शुरू हो गया। इसके पहले मुस्लिम महिलाओं ने संघ के गणवेषधारी स्वयंसेवकों पर पुष्पवर्षा करके उनका स्वागत किया। वहीं भारत माता की जयघोष के बीच हजारों की संख्या में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता मैदान में उपस्थित हुए। इस दौरान सरसंघचालक मोहनराव भागवत ने स्वयंसेवकों के साथ शाखा लगायी। वहीं पूर्ण गणवेश (फुल ड्रेस) में तकरीबन 25 हजार की संख्या में संघ के स्वयंसेवकों ने योग और समता का प्रदर्शन किया। काशी प्रांत के स्वयंसेवक इस 'संघ समागम' के लिए काफी दिनों से अभ्यास में जुटे हुए थे।